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मेरी पत्नी और मेरा एक दोस्त एक ही ऑफिस में काम करते हैं।
कई बार ऑफिस से वापस आते वक्त मेरा दोस्त मेरी पत्नी को घर ड्रॉप करता है।
जिस दिन पत्नी को ऑफिस से आने में देर हो जाती है तो मैं उससे कहता हूँ कि मैं उसे पिक कर लूंगा तो वह कहती है कि आप परेशान मत होइए मैं उसके (मेरे दोस्त) साथ आ जाऊँगी।
मैं अपनी पत्नी पर शक नहीं कर रहा हूँ लेकिन आजकल मुझे यह बात खटकने लगी है।
उन दोनों का ऑफिस से साथ आना मुझे पसन्द नहीं आता, या यों कहूँ कि मैं उन दोनों के साथ साथ होने पर भरोसा नहीं कर पा रहा हूँ।
क्या मेरा इस तरह से सोचना सही है कि उन दोनों के बीच कुछ चल रहा है।
या मुझे इस बात को ज्यादा गम्भीरता से न लेते हुए भूल जाना चाहिए।
क्या यह मेरा वहम है?
क्या मैं अपनी बीवी को लेकर कुछ ज्यादा पोजैसिव हो रहा हूँ?
मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूँ?
अगर आपके पास कोई सुझाव, कोई सलाह हो तो जरूर बतायें।
हो सकता है, आपकी एक छोटी-सी राय हमारी जिंदगी की दिशा बदल दे।
मैंने शादी में देखा था कि मेरी मामी बहुत सुंदर लग रही थीं.
चूंकि वे काफी सीधी-सादी हैं तो उनकी सादगी उनकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी.
कहने का आशय यह कि खूबसूरत महिलाओं के नखरे आदि जैसी बात मामी में नहीं थी इसलिए उनकी सरल सी मुस्कान किसी का भी दिल मोह लेने के लिए काफी थी.
मेरे मामा का घर हमारे पास में ही था.
हम लोग उनकी शादी समारोह का मजा ले रहे थे.
शादी के बाद मामी जी घर में आ गईं और धीरे धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा.
जैसे-जैसे शादी को वक्त गुजरता गया, उन दोनों पति पत्नी के बीच झगड़े होने लगे.
चूंकि हम लोगों के घर एक ही मुहल्ले में थे तो मैं देखता था कि मेरे मामा के घर में आए दिन किसी ना किसी बात को लेकर लड़ाई होती रहती थी.
मामा अक्सर मामी पर गुस्सा होते रहते थे.
मेरी मामी बहुत सीधी-सादी होने के कारण उनसे कुछ नहीं कहती थीं.
जबकि मामा जी अक्सर गुस्से में मामी को पीट दिया करते थे.
यही सब देखते-देखते मैं 20 साल का हो हो गया था.
मुझे अपनी मामी पर बहुत तरस आता था.
और मुझे अपने मामा पर बहुत गुस्सा आता था, मगर मैं कुछ नहीं कर सकता था.
फिर मैंने मामी से नजदीकियां बढ़ाने की सोची और अक्सर जब मामा बाहर जॉब पर जाते थे तो मैं मामी से बात करने चला जाया करता था.
धीरे-धीरे मैंने मामी से दोस्ती कर ली और उनके साथ उनका दुख बांट लिया करता था.
वे अक्सर बात करते करते ही मेरे सामने रो दिया करती थीं.
धीरे-धीरे मुझे अपनी मामी से प्यार होने लगा था और शायद मामी को भी मुझसे.
फिर एक दिन मैंने अपनी मामी से पूछा- आप यह सब कैसे सहन कर लेती हैं?
इस पर उन्होंने कहा- मैं कर भी क्या सकती हूं!
मैंने कहा- क्यों आप जब तक कुछ विरोध नहीं करेंगी, तब तक मामा जी को कुछ भी समझ में आने वाला नहीं है!
वे कहने लगीं- मैं क्या कर सकती हूँ, मुझे कुछ समझ में ही नहीं आता है.
मैंने उनसे बोल दिया- मैं आपको बहुत पसंद करता हूं. आप विरोध के लिए एक कदम आगे बढ़ाएंगी, तो मैं आपके साथ दो कदम आगे चलूँगा. मैं आपसे प्यार करता हूँ.
मेरी इस बात को लेकर वे बहुत नाराज हो गईं और बोलीं- आज के बाद मुझसे कोई बात नहीं करना. मैं तुम्हें अपना अच्छा दोस्त मानती थी पर तुम मेरे बारे में यह सोचते हो. मुझे तुमसे ये उम्मीद नहीं थी!
मैं चुप रहा और वहां से चला आया.
कुछ दिन बाद ही दोबारा से मामा और मामी की लड़ाई हो गई.
मामा ने मामी को बहुत मारा.
यह सब होने के बाद में 2 दिन बाद गया.
मैं जब मामी के पास गया तो मामी अचानक से मेरे सीने से लग कर रोने लगीं.
पहले तो मैं सकपका गया कि यह क्या हुआ.
फिर मैंने उन्हें तसल्ली दी और उन्हें बहुत समझाया.
मेरे मनाने पर वे चुप हो गईं और मुझसे बात करने लगीं.
मैंने मौके का फायदा उठाकर उनसे फिर से कहा कि मैं आपको बहुत पसंद करता हूं, लेकिन आप हो कि मेरी तरफ देखती ही नहीं हो!
इस बात पर वे थोड़ी देर चुप रहीं, फिर बोली- पसंद तो मैं भी तुमको बहुत करती हूं, लेकिन तुम्हारे मामा से डरती हूं कि कहीं उन्हें पता लग गया तो मैं घर से भी निकाल दी जाऊंगी. मैं उस सूरत में अपने घर पर भी नहीं जा पाऊंगी, उधर क्या मुँह दिखाऊंगी सबको?
मैंने उनसे कहा- ऐसा कुछ नहीं होगा. मैं आपका बहुत ध्यान रखूंगा. आपसे हमेशा प्यार करता रहूंगा. आपको कभी धोखा नहीं दूंगा.
वे चुप हो गईं.
उसके बाद मैं अपने घर आ गया.
अब धीरे-धीरे हमारी फोन पर बातें होने लगीं.
मामी की बातों से मुझे यह मालूम चला कि मामा से सेक्स सही से नहीं हो पाता है.
जब मैंने मामी से मामा जी की चुदाई को लेकर कुछ खुल कर पूछना चाहा तो मामी जी चुप हो गईं और उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि वक्त आने पर तुम सब कुछ जान जाओगे.
तब मैं उनकी इस बात का मर्म समझ ही न सका.
मैं लगभग हर बार मामी जी से मामा के साथ हुई चुदाई को लेकर बात करने की कोशिश करता, पर वे हर बार उस बात का जबाव देने से बच जाती थीं.
एक दिन मैंने उनसे कहा- मुझे आपसे अकेले में मिलना है. जब आपके घर पर कोई नहीं हो, तब बता देना.
उन्होंने कहा- ठीक है.
फिर अगले दिन मामा जॉब पर गए, तब उनका मैसेज आया कि तेरे मामा जॉब पर चले गए हैं. मैं तुम्हारे लिए चाय बना रही हूं, आ जाओ.
मैं चला गया.
वहां पर जाकर बैठा, हम दोनों ने साथ में चाय पी और बातें करने लगे.
बातें करते करते मैंने उनका हाथ पकड़ लिया.
उन्होंने कुछ नहीं बोला.
कुछ पल बाद उन्होंने उठकर टीवी ऑन कर दिया.
टीवी में किसिंग वाला एक हॉट सीन आ रहा था.
उसे देखकर मैं उनकी तरफ देखने लगा.
मामी थोड़ा शर्माने लगीं.
मैं उनके थोड़ा नजदीक हो गया और उन्हें हग करने लगा और उन्हें प्यार करने लगा.
वे भी धीरे-धीरे मुझसे प्यार करने लगीं और मेरा विरोध ना करते हुए मेरा साथ देने लगीं.
मामी मेरी बांहों में एकदम से झूल सी गई थीं और वे काफी सुकून महसूस कर रही थीं.
मैंने मामी के गाल पर चुम्मी ली तो वे मदहोशी भरी नजरों से मेरी आंखों में देखने लगीं और उन्होंने अपने लरजते हुए होंठों को मेरे होंठों पर रख दिए.
हम दोनों लिप किस करने लगे.
किस करते-करते मामी गर्म होने लगीं और मुझे भी सेक्स चढ़ने लगा.
मैं उन्हें गोदी में उठा कर उनके ही रूम में ले गया और हम पागलों की तरह एक दूसरे को किस करने लगे थे.
मामी के होंठों को किस करते-करते मैं उनके बूब्स दबा रहा था.
वे और ज्यादा चुदासी होने लगीं और उनकी सांसें बहुत तेज चलने लगी थीं.
मैंने अब उनके कुर्ते को उतार दिया और वे मेरे सामने ब्रा में आ गई थीं.
फिर मैंने उनकी गर्दन को चूमते हुए उनकी ब्रा भी खोल दी और उनके बूब्स को पीने लगा.
मामी की सांसें और तेज होने लगीं.
वे मुझे अपने दूध पिलाती हुई सर को सहलाने लगी थीं.
मैं भी उनके एक दूध के निप्पल को अपने होंठों के बीच दबा कर खींचने लगा … साथ ही दूसरे दूध को हाथ से दबाते हुए उन्हें मीठा दर्द देने लगा.
वे भी मुझे अपने मम्मों से खेलने के लिए कहे जा रही थीं- आह आह … और जोर से दबा लो मेरे दूध चूस लो.
कुछ देर बाद मैंने उनके दूध से मुँह हटाया तो उन्होंने भी मेरे कपड़े उतारने चालू कर दिए.
मैंने भी देर न करते हुए उनकी सलवार उतार दी.
अब वे मेरे सामने सिर्फ पैंटी में थीं.
मैंने उनके बदन को जीभर के चूमना चालू कर दिया और मैंने उनके पूरे शरीर को चूम चाट कर गीला कर दिया.
कुछ देर बाद मैंने उनकी पैंटी भी उतार दी और उनकी चुत को किस करने लगा.
वे मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चुत पर दबाने लगीं.
कुछ देर बाद मैंने मामी से अपना लंड चूसने को कहा.
कुछ पल आनाकानी करने के बाद मामी मान गईं और वे मेरे लंड को चूसने लगीं.
वे लंड को बहुत अच्छी तरह से चूस रही थीं.
मैं बता नहीं सकता कि मुझे मामी से अपना लंड चुसवाने में कितना ज्यादा मजा आ रहा था.
मैंने उनकी चूचियों को दोबारा किस करना चालू कर दिया.
इस बार वे कहने लगीं- प्लीज अपने लंड को मेरी चुत में डाल दो, मुझसे अब रहा नहीं जा रहा है.
मैंने उनकी दोनों टांगों को फैला दिया और अपने लंड को उनकी चुत पर सैट करके जैसे ही धक्का मारा, मेरा आधा लंड उनकी चुत में घुस गया.
वे चिल्ला उठीं- आह मर गई … प्लीज रहने दो … बहुत दर्द हो रहा है आह ओह!
मामी दर्द भरी सिसकारियां ले रही थीं. यह देख कर मैं थोड़ा सा रुक गया और उन्हें दोबारा किस करने लगा.
थोड़ी देर बाद में वे सामान्य हो गईं और मैंने धीरे धीरे करके अपना पूरा का पूरा लंड उनकी चुत में उतार दिया.
इस बार वे पहले की तरह नहीं चिल्लाईं, पर उन्हें थोड़ा दर्द हुआ.
इंडियन लेडी सेक्स करती हुई आह आह कर रही थीं.
कुछ देर बाद जब वे लौड़े से मजा लेने लगीं.
तब मैंने उन्हें डॉगी स्टाइल में खड़ी करके पीछे से लंड पेल कर चोदा.
मैंने उन्हें बहुत देर तक चोदा.
काफी देर तक चले इस सेक्स में वे दो बार झड़ चुकी थीं.
मैं झड़ने के बाद शिथिल होकर लेट गया और अपनी सांसें नियंत्रित करने लगा.
थोड़ी देर आराम करने के बाद मामी जी उठ कर अपनी कुर्ती पहन कर मेरे लिए चाय बनाने चली गईं.
हम दोनों ने चाय पी और मैंने फिर से उनके साथ मस्ती करना शुरू कर दी.
मैंने जल्दी ही उन्हें गर्म कर दिया और दोबारा से चोदा.
वे मुझसे कहने लगीं- कहीं तुम मुझे धोखा तो नहीं दे दोगे?
मैंने उनसे कहा- मैं आपको हमेशा जिंदगी भर प्यार करूंगा, कभी धोखा नहीं दूंगा.
वे मुझसे कहने लगीं- मैं तुम पर बहुत भरोसा करती हूं और प्यार भी करती हूं. मेरा भरोसा कभी मत तोड़ना.
उसके बाद से अब हम दोनों रोजाना सेक्स करने लगे थे.
कामिनी की इस घटना को दो दिन बीत Hindi Porn Stories गये थे। इन दो दिनों में मैं विजय से दो बार मिल चुका था। कामिनी के कारण उससे मेरी भी दोस्ती थी। मैंने उसे यह नहीं मालूम होने दिया कि कामिनी की चुदाई के बारे में मुझे मालूम है। आज सवेरे ही मैंने विजय के घर जाने की योजना बनाई। इस बारे में मैंने नेहा को बता दिया था कि विजय की मां और बहन आई हुई हैं, उनसे मिलने जा रहा हूँ।
मैं कॉलेज जाने से पहले उसके घर चला गया। बाहर बरामदे में एक सुन्दर सी लड़की झाड़ू लगा रही थी। मैंने अन्दाज़ा लगाया कि यह विजय की बहन होगी। जैसे ही मैं फ़ाटक के अन्दर घुसा… उसने मेरी तरफ़ देखा और देखती ही रह गई।
मैंने उसे नमस्ते किया तो वो कुछ नहीं बोली। मैं सामान्यतया मुस्कुराता रहता हूँ,”मैं विजय का दोस्त हूँ …. “
“जी… आईये… ” वो कुछ शरमाती सी बोली। मुझे वो अन्दर ले गई और कहा-आप बैठिये… मैं पानी लाती हूँ।
“आप उसकी बहन है ना…” मैंने मुस्कराहट बिखेरते हुए कहा।
वो एकदम से शरमा गई… और मुझे तिरछी निगाहों से देखती हुई अन्दर चली गई। उसकी पतली छरहरी काया और उसके उभार और कटाव भरे पूरे थे। किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते थे। वो पानी ले कर आ गई।
“आपका नाम जान सकता हूँ ….?”
उसका अन्दाज़ कुछ अलग सा था। मुझे लगा कि वो उमर में विजय से बड़ी है।
इतने में एक मधुर अवाज और आई,”ये मेरी मम्मी है …. मै विजय की बहन हूँ …. दिव्या ….!”
मैं बुरी तरह से चौंक गया …. ये कैसे हो सकता है? “जी ….माफ़ करना …. आप तो इतनी छोटी लगती है कि …. मैं तो समझा कि ….!”
“आप ठीक कह रहे हैं …. मेरी कम उम्र में ही शादी हो गई थी …. फिर ये भी एक एक्सीडेन्ट में गुजर गये थे ….” (उसका मुझे घूरना बन्द नहीं हुआ।) वो एकटक मुझे देखे जा रही थी।
“ओह!!! …. माफ़ करना …. यह सुन कर दुख हुआ …. पर आप तो दिखने में किसी लड़की जैसी ही लगती हैं ….” वो फिर से शरमा गई ….
“आप चाय पीजिये …. इतने में विजय आ जायेगा ….!” उसके हाव भाव ये बता रहे थे कि मैं उसे अच्छा लग रहा हूँ …. मैंने सोचा कि और आगे बढ़ा जाये !
“आप अभी ही इतनी सुन्दर लग रही हैं तो जब बाहर जाती होगी तो और भी अच्छी लगती होंगी ….!” उसका चेहरा लाल हो उठा। बिल्कुल किसी कुंवारी लड़की की तरह वह अदाएँ दिखा रही थी। फिर से उसने मुस्कराते हुए मुझे देखा …. मेरी हिम्मत बढ़ने लगी। वो सामने किचन में चली गई। मैं भी उसके पीछे पीछे किचन में आ गया।
मैंने हिम्मत करके उसकी कमर पर हाथ रखा। उसने तुरन्त ही पलट कर मुझे देखा और बोली- “यह क्या कर रहे रहे हो ….”
“सॉरी मैं अपने आपको रोक नहीं पाया, क्योंकि आप में गजब का आकर्षण है !”
वो मुस्करा दी। मेरी हिम्मत और बढ़ गई।
“आप बहुत खूबसूरत हैं …. ” उसके चेहरे पर पसीन छ्लक आया।
“आप भी तो हैं …. हाय” उसके मुँह से निकल पड़ा। मेरे हाथ उसकी चिकनी कमर पर फ़िसलने लगे। उसका शरीर कांप उठा, वो लरजने लगी और झूठ में ही मेरे से दूर होने की कोशिश करने लगी।
“जी ….चाय ….” उसका चेहरा तमतमा रहा था ….हम चाय ले कर फिर से बैठक में आ गये ….”आपका नाम क्या है ….?”
“मेरा नाम जो हन्टर है ….और आपका ….?”
“जी ….म….मैं सरोज ….” वो हिचकती हुई सी बोली …. “आप दिव्या को रोज पढ़ाने आयेंगे ना …. ऐसा विजय कह रहा था ….!” मैं सकपका गया। क्योंकि पढ़ाने की बात मुझे नहीं पता थी।
“मै आपको सरोज ही कहूँगा …. क्योंकि आपको आण्टी कहना आपके साथ ज्यादती होगी !” सुनते ही उसने अपना चेहरा हाथों में छुपा लिया।
“पर वो दिव्या ….?”
“हां …. हां मैं आ जाऊंगा ….उसे भी पढ़ा दूंगा” मैंने मौके को हाथ से गंवाना उचित नहीं समझा। मैंने चाय समाप्त की और खड़ा हो गया। वो भी खड़ी हो गई और मेरे समीप आ गई। मैंने इधर उधर देखा कि कोई नहीं है तो मैंने सरोज का हाथ पकड़ लिया। वो खुद ही धीरे से मेरे सीने से लग गई। मैंने उसे लिपटाते हुए अपनी बाहों में कस लिया। उसने अपना चेहरा ऊपर उठा लिया और अपनी आंखे बन्द कर ली। मुझे कुछ समझ में नहीं आया पर मेरे शरीर में तरावट आने लगी थी, वासना जागने लगी थी। स्वत: ही मेरे होंठ आप ही उसके होंठो की ओर बढ़ गये। कुछ ही देर में हम दोनों एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे। मैंने अब उसके उरोजो को थाम लिया। वो कसक उठी।
“हाय …. मत करो …. सीऽऽऽ …. हाय रे” उसके मुख से सिसकारी निकल पड़ी। मैंने धीरे धीरे उसके स्तन दबाने और मसलने चालू कर दिये। उसकी बाहों का कसाव और बढ़ चला था। अब मैंने एक हाथ से उसके चूतड़ दबाने शुरू कर दिये थे। अब उसका भी एक हाथ मेरे लण्ड पर आ चुका था और कस कर पकड़ लिया था।
“हाय …. छोड़ दो ना …. आऽऽऽऽह …. क्या कर रहे हो ….?” इन्कार में इकरार था ….मेरा लण्ड उसने कस के पकड़ रखा था। कह तो रही थी छोड़ने को और बेतहाशा लिपटी जा रही थी। बाहर फ़ाटक की आवाज आई तो वो मेरे से छिटक के दूर हो गई ….
“कल सवेरे नौ बजे आना …. मैं इन्तज़ार करुंगी ….!” इतने में दिव्या अन्दर आ गई। एकबारगी तो वो ठिठक गई …. शायद उसने माहौल भांप लिया था। मैंने अब दिव्या को निहारा। वो एक जवान लड़की थी …. जीन्स पहने थी …. अपनी मां की तरह चुलबुली थी …. तो इसे पढ़ाना है …. लगा कि मेरी तो किस्मत अपने आप ही मेहरबान हो गई है …. आया था कि इन पर इम्प्रेशन जमा कर पटाऊंगा। पर यहां तो सभी कुछ अपने आप हो रहा था। मैं मुस्करा कर बाहर आ गया।
अगले दिन सवेरे नौ बजे मै विजय के यहाँ पहुंच गया। विजय कहीं जाने की तैयारी कर रहा था।
“थेंक्स यार …. तुमने दिव्या को पढ़ाने के लिये हां कर दी …. मैं जरा हेप्पी से मिलने यहीं पान की दुकान तक जा रहा हूँ ….” कह कर वो चला गया।
दिव्या मेज़ पर बैठी पढ़ाई कर रही थी। मुझे देखते ही उसने अपने पास ही एक कुर्सी और लगा दी।
अन्दर से सरोज ने मुझे देखा और शरमाती हुई मुस्करा दी …. दिव्या ने फिर से एक बार इस बात को देख लिया। मैं कुछ देर तक तो पढ़ाता रहा …. फिर मुझे महसूस हुआ कि उसका ध्यान पढ़ाई पर नहीं मेरी ओर था।
“मुझे मत देखो …. …. इधर ध्यान लगाओ ….” पर दिव्या ने सीधे वार करते हुए मेरी जांघ पर हाथ रख दिया ।
“आपने कल मम्मी को किस किया था ना ….” वो फ़ुसफ़ुसाई, मैं बुरी तरह से चौंक गया।
“क्या ??? ….क्या कहा ….” मैं हड़बड़ा गया.
“मम्मी ने मुझे बताया था …. मैं और मम्मी सब बातें एक दूसरे को बताती है …. मुझे भी किस करो ना ….” मुझे एक बार तो समझ में नहीं आया कि ऐसे मौके पर क्या करना चाहिये……उसके हाथ मेरे लण्ड की तरफ़ बढ रहे थे। मेरे शरीर में सनसनी फ़ैल रही थी। अचानक वो मेरे से लिपट पड़ी। दरवाजे से सरोज सब देख रही थी। मेरी नजर ज्योंही दरवाजे पर पड़ी सरोज ने अपनी एक आंख दबा कर मुस्करा दी। मैंने इसमें उसकी स्वीकृति को समझा और दिव्या का कुंवारा शरीर मेरी आगोश में आ गया।
उसकी उभरती जवानी पर मेरे हाथ फ़िसलने लगे। वो बेतहाशा अब मुझे चूमने लगी। मेरा हाथ उसकी स्कर्ट में घुस पड़ा। उसकी चूत गीली हो चुकी थी। मैंने उसकी पेन्टी में हाथ डाल कर उसकी चूत दबा दी। जवाब में उसने भी मेरा लण्ड दबा दिया। सरोज ने अन्दर से इशारा किया तो मैंने उसे छोड़ दिया। दिव्या लगभग हांफ़ते हुए अलग हो गई। उसकी आंखो में वासना के लाल डोरे लगे खिंच चुके थे। सरोज चाय बना कर ले आई।
“दिव्या ….कॉलेज में देर हो जायेगी …. तैयार हो जाओ ….” सरोज ने दिव्या को आंख मारते हुए कहा। दिव्या मुस्कराते हुए उठी और लहरा कर चल दी। वो समझ चुकी थी कि मम्मी अब गरम हो चुकी है अब उन्हें चुदाई चाहिये। मैंने चाय समाप्त की और प्याला मेज़ पर रख दिया।
“सरोज …. जरा सा और पास आ जाओ ….” मैंने आज मौके का भरपूर फ़ायदा उठाने की सोचते हुए अपनी मनमोहक मुस्कराहट बिखेर दी। उसकी आंखें झुक गई। पर उठ कर चुप से मेरी गोदी में बैठ गई। जैसे ही वो मेरी जांघो पर बैठी उसके चूतड़ो का स्पर्श हुआ। वो अन्दर पेन्टी नहीं पहने थी। उसके लचकदार चूतड़ का स्पर्श पा कर मेरा लण्ड फ़ुफ़कार उठा। हम दोनों अब एक दूसरे को चूम रहे थे। मेरा हाथ जैसे ही उसके बोबे पर पड़ा …. उसके बोबे बाहर छलक पड़े। उसके ब्रा भी नहीं पहनी थी ….यानि चुदने के लिये वो बिल्कुल तैयार थी। मेरा लण्ड उसके चूतड़ों पर लगने लगा था। कुछ ही देर में वो बैचेन हो उठी ….
“सुनो जी …. अब देरी किस बात की है ….”कह कर वो बुरी तरह लाल हो गई। मैं उसकी इस अदा पर मर गया …. मैंने उसे गोदी में से उतार कर खड़ा कर दिया और अपनी पेन्ट उतार दी …. वो शरम से सिमटी जा रही थी …. पर उसने बिस्तर पर आने की देर नहीं की। उसके मन की हलचल मैं समझ रहा था ….लगता था बरसों की प्यासी है ….।
मेरा लण्ड देखते ही वो मचल उठी। उसने मेरा लण्ड अपने हाथो में ले लिया और पकड़ कर दबाने लगी …. लण्ड की चमड़ी ऊपर नीचे करने लगी, इसके कारण मेरा सुपाडा रगड़ खाने लगा ….मुझे तेज मजा आया ….मीठी मीठी सी गुदगुदी उठने लगी । उसने मेरी तरफ़ देखा …. मैं उसे प्यार से देख रहा था ….
“हाय रे ….मेरी तरफ़ मत देखो ना …. उधर देखो ….” और शरमाते हुए मेरे सुपाड़े को अपने मुँह में भर लिया। दोनों हाथो से मेरे चूतड़ भींच लिये और पूरा लण्ड मुँह में भर कर अन्दर बाहर करने लगी। सुपाड़ा जोर से चूस रही थी ….एक तरह से अपने मुँह को चोद रही थी। मेरे मुख से आह निकल रही थी …. कुछ देर तक यही सिलसिला चलता रहा।
उसने फिर कहा-“सुनो जी ….अब देर किस बात की है …. ” फिर से एक बार शरमा गई और फिर वो कहने लगी, “तुम्हे देखते ही मुझे लगा कि तुम मेरे लिये ही बने हो ….तुम्हारे में गजब की कशिश है !”
“सरोज तुम बहुत सेक्सी हो …. देखो मुझे कैसे बस में कर लिया ….”
“मैं बहुत महीनों से प्यासी हूँ ….और मेरी बेटी …. उसकी नजरें भी भटकने लगी थी …. मैंने उसे रंगे हाथो पकड़ लिया था …. तब से मैंने उसे अपना राजदार बना लिया और अब हम सही लड़का देख कर दोनों ही अपनी प्यास शान्त करती हैं ….”
मुझे उसकी बातों से कोई सरोकार नहीं था …. मुझे तो एक बदले दो दो चूत बिना मांगे ही मिल रही थी।
वो कहती जा रही थी ….”विजय से मैं परेशान रहती हूँ ! वो जाने क्या करता है? जाने कहां से नशे की चीज़े लाता है और बेचता है …. हमारे मना करने पर वो हम दोनों को पीटता है ….।”
सरोज की सारी बातें मैं ध्यान में रख रहा था पर उसे यही दर्शा रहा था कि मैं सेक्स में ही रुचि ले रहा हूँ।
“बस सरोज अब चुप हो जाओ, मैं अब से तुम्हारे साथ हूँ …. मजे लो अब ….मेरा देखो न कितना बुरा हाल है ….” मैंने उसकी चूत पर अपना तन्नाया हुआ लण्ड का दबाव देते हुए कहा। उसका शरीर वासना से कसक रहा था। उसकी तड़प मुझे महसूस हो रही थी। मैंने उसके बोबे दाबते हुए नीचे जोर लगाया …. लण्ड चूत में उतरता चला गया। उसकी कसी हुई चूत मेरे लण्ड के चारों ओर मीठा सा घर्षण दे रही थी। उसने अपनी चूत को और ऊपर की ओर उभार ली। मेरा लण्ड अभी भी थोड़ा बाहर था। उसके मुख से सिसकारी निकलती जा रही थी। मुझे लगा कि मेरा लण्ड उसकी चूत की पूरी गहराई में घुस चुका था। पर लण्ड अभी भी बाहर था।
“अब धीरे से बाहर निकाल कर अन्दर और दबाओ ….” उसने सिसकते हुए कहा।
मैंने अपना लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और अन्दर और दबा दिया। उसे हल्का स दर्द हुआ …. फिर भी बोली,”ऐसा और करो ….”
“पर आपको दर्द हो रहा है ना ….?”
इसी दर्द में तो मजा है ….पूरा घुसेगा तो ही शान्ति मिलेगी ना ….!” उसने दर्द झेलते हुए कहा।
मैंने फिर से लण्ड दबाया …. पर इस बार झटके से पूरा डाल दिया। उसके मुख से हल्की सी चीख निकल गई।
“हाय रे ….! मर गई ….! ये हुई ना मर्दो वाली बात …. ! बस अब थोड़ा रुको ….!” वो अपने स्टाईल में बताते हुए चुदवाने लगी।
उसने कहा,”अब मेरी चूतड़ के नीचे तकिया रख दो …. फिर बस एक धक्का और ….”
“देखो बहुत दर्द होगा ….”
“आज होने दो ….बिना दर्द के मजा नहीं आता है ….”
मैंने उसकी गाण्ड के नीचे तकिया घुसा दिया , उसकी चूत ऊपर की ओर उठ गई और मैंने इस बार पूरा जोर लगा कर लण्ड को चूत में गड़ा दिया। दर्द से उसने दांत भींच लिये और मैंने अब उसके बोबे थामें और मसलते हुए धीरे धीरे पर गहराई तक चोदने लगा। वो पसीने में नहा चुकी थी। उसका सारा बदन उत्तेजना से कांप रहा था। मैं भी अपना आपा खोता जा रहा था। उसकी टाईट चूत मेरे लण्ड को लपेट कर सहला रही थी।
उसने कहा,”राजा …. तेजी से चोदो ना ….आज मुझे मस्त कर दो ….”
मेरे धक्के तेज होते गये। उसकी सिसकारियाँ बढ़ती गई। वो अपने पूरे जोश से अपने चूतड़ हिला हिला कर चुदवा रही थी। अचानक मुझे लगा कि उसका कसाव मेरे पर बढ़ गया है …. और वो झड़ने लगी।
मैंने उस ओर ध्यान नहीं दिया ….और चुदाई जारी रखी। झड़ कर भी वो उसी जोश में चुदवाती रही …. मैंने उसे चूम चूम कर उसका चेहरा अपने थूक से गीला कर दिया था। वो भी बराबरी से मुझे चाट रही थी। अचानक उसने मुझे इशारा किया और वो मेरे ऊपर आ गई। आसन बदल लिया। वो मेरे पर झुक गई और लण्ड चूत में घुसा कर जबरदस्त धक्के मारने लगी। उसके बोबे जोर जोर से उछल रहे थे। मैंने दोनों बोबे को कस के मसलना शुरू कर दिया। उसके धक्के इतने जबर्दस्त थे कि उसे भी शायद तकलीफ़ हो रही होगी। लगता था जन्म-जन्म की प्यास बुझाना चाहती थी।
कुछ ही देर में मैं भी चरमसीमा पर पहुंच गया और और चूत के अन्दर ही लण्ड ने अपनी पिचकारी छोड़ दी। वो कब झड़ गई मुझे पता नहीं चला। पर हाफ़ते हुए मेरे पर लेट गई। उसका जिस्म पसीने में तर था। हम दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए कुछ देर पड़े रहे। फिर मैं धीरे से उठा।
“सरोज तुम तो चुदाई में मस्त हो …. मेरा सारा माल निकाल दिया ….” सरोज फिर से शरमा गई।
“मैं तो दो बार झड़ गई …. हाय राम …. मेरा पेटीकोट तो दे दो ….” उसने झट से कपड़े पहन लिये।
मैंने भी कपड़े पहने और पूछा,”बाथरूम किधर है ….” उसने उंगली से इशारा कर दिया। मैं बाथरूम में गया और अपना मुख धो लिया ….तभी मेरी नजर हैंगर पर टंगे जैकेट पर पड़ी। वो विजय का था। मैंने तुरन्त उसकी तलाशी ली। उसमें कोई शायद नशे की कोई चीज़ थी। उसमें एक पिस्तौल भी था। सारी चीज़े यथावत रख कर मैं बाहर आ गया।
“अच्छा अब मैं चलता हूँ ….” उसने मुस्करा कर हामी भर दी ….
मैं जैसे ही बाहर निकला, मेरा मन एकदम धक से रह गया, दिव्या एक कुर्सी पर बैठी कोई मेग्ज़ीन देख रही थी।
“त् ….त् …. तुम ….कॉलेज नहीं गई ….?”
“और यहां की चौकीदारी कौन करता ….??? …. कल आओगे ना ….” उसने एक सेक्सी नजर डालते हुए कहा।
“कल ….तुम्हारी बारी है …. तैयार रहना ….!” मै धीरे से झुक कर बोला…
उसकी मुस्कान और झुकी झुकी नजरें उसकी स्वीकृति दर्शा रही थी ….।
समय देखा साढ़े दस बज रहे थे …. मैंने अपनी मोटर साईकल उठाई और सीधे पुलिस स्टेशन पहुंचा। अंकल मेरा ही इन्तज़ार कर रहे थे।
मैंने उन्हें एक एक करके सब बताना शुरु कर दिया,”अंकल, विजय के अलावा, हैप्पी, सुरजीत और मोन्टी है, चारों एक ही गांव के है …. हेप्पी टूसीटर चलाता है और नशे की चीजें बेचता है। मोन्टी किसी एजेन्ट से ये नशीली चीज़े लाता है। सुरजीत अवैध दारू के पाऊच लाता है और पानवाले के पास रखता है। विजय के पास भी घर पर ये नशे की चीज़े हैं और एक पिस्तौल भी है। और …. ….”सारी रिपोर्ट बताता रहा और रिपोर्ट देने के बाद मैंने उनसे एक दिन का समय और मांगा।
अंकल ने सारी बाते समझ ली थी। अंकल शहर के एस पी थे ….उन्हें शक तो पहले ही था पर नेहा के कहने पर उन्होंने कार्यवाही का वचन दिया था। उन्होंने जरूरी बातें अपनी डायरी में नोट कर ली।
मैं यहाँ से सीधा कामिनी से मिलने नेहा के घर चला आया था …. आज वो बहुत बेहतर लग रही थी …. चल फिर रही थी …. उसमें ताकत आ गई थी।
मैंने जब अपनी बात उसे बताई तो वह सन्तुष्ट नजर आई, पर खुद को रोने से नहीं रोक पाई। अंतत: वो फ़फ़क के फिर रो से पड़ी।
टूटा हुआ मन, आहत भावनाएं ! Hindi Porn Stories
मैं दमन में रहता हूँ। हमारे Sex Stories पड़ोस में मेरा दोस्त सुरेश रहता है। सुरेश अकेला रहता है उसके परेंट्स गांव में रहते हैं। एक बार उसकी मामीजान किसी अधिवेशन के सिलसिले से दमन आयी और उसके घर पर करीब दो महीने रही। सबसे पहले उसके मामी के विषय में आप लोगों बता दूं।
मेरे दोस्त की मामी का नाम सौम्या है वो करीब 40 साल की सांवली सुडौल शादीशुदा महिला है। वैसे तो वो हाउसवाइफ़ है लेकिन गांव में मशहूर समाज सेविका है। उसके चूतड़ और बूब्स काफ़ी बड़े बड़े और भारी हैं, शकल सूरत से वो खूब सेक्सी और 30 साल से कम लगती है।
अकसर में शनिवार या रविवार जो कि मेरे छुट्टी के दिन हैं, सुरेश के साथ गुजारता हूँ। जब से उसकी मामीजान आयी है तब से मैं मामी से दो तीन बार मिल चुका हूँ। वो जब भी मिलती तो मुझे अजीब निगाहों से देखती थी, मुझे देख कर उसकी नज़रों में एक अजीब नशा छा जाता था या यूं कहिये उसकी नज़र में सेक्स की चाहत झलक रही हो!
ऐसा मुझे क्यों महसूस हुआ यह मैं बता नहीं सकता हूँ लेकिन मुझे हमेशा ही लगता था कि वो नज़रों ही नज़रों से मुझे सेक्स की दावत दे रही हो।
मैं जब भी उनसे मिलता तो कम ही बातचीत करता था मगर जब वो बातें करती तो उनकी बातों में दोहरा अर्थ होता था, जैसे ‘हार्दिक तुम खाली समय में कुछ करते क्यों नहीं?’
मैंने कहा- मामी जी, क्या करूँ, आप ही बतायें?
वो बोली- तुम्हें खाली समय का और मौके का फायदा उठाना चाहिये।
मैंने कहा- जरूर फायदा उठाऊँगा अगर मौका मिले तो!
वो बोली- मौका तो कब से मिल रहा है लेकिन तुम कुछ समझते नहीं, न ही कुछ करते हो?
मैं उनकी बातें सुन कर चकराया और बोला- मामीजान, आप की बातें मेरे दिमाग में नहीं घुस रही हैं।
वो बोली- देखो हार्दिक, आज और कल यानि शनिवार और रविवार तुम्हारी छुट्टी होती है तो तुम्हें कुछ कुछ पार्ट टाइम जोब करना चाहिये ताकि तुम्हारी आमदनी भी हो जायेगी और टाइम पास भी होगा।
इसी तरह की दोहरे शब्दों में मामी जी बातें करती थी और वो जब भी मुझसे बातें करती तब सुरेश या तो बाथरूम में होता या फिर किसी काम में व्यस्त होता।
एक दिन जब सुबह करीब 11 बजे सुरेश के घर पहुंचा तो घर पर उसकी मामी थी, सुरेश मुझे कहीं नज़र नहीं आया।
मैंने पूछा- मामी जी, सुरेश नज़र नहीं आ रहा है, कहां गया वो?
मामी- वो बाथरूम में कब से नहा रहा है। मैं उसी के बाहर निकलने का इन्तज़ार कर रही हूँ।
मैं- लेकिन वो तो ज्यादा समय बाथरूम में लगाता ही नहीं, तुरंत पांच मिनट में आ जाता है।
मामी हंसते हुए- अरे भाई, बाथरूम और बेडरूम ही तो ऐसी जगह है जहां से कोई भी जल्दी निकलना नहीं चाहता है।
मैं कोई जवाब नहीं दे सका, वो भी चुप रही।
थोड़ी देर बाद सुरेश बाथरूम से नहा धो कर बाहर आया। उसके बाथरूम से आते ही मामी जी बाथरूम में गयी और मेरी तरफ़ नशीली नज़रों से देखती हुयी बोली- घबराना मत, मैं ज्यादा समय नहीं लगाऊँगी। आप लोग नाश्ते के लिये मेरा इन्तज़ार करना!
कहते हुए वो बाथरूम में घुस गयी, करीब 20 मिनट बाद वो तैयार होकर हमारे साथ नाश्ता करने लगी।
नाश्ता करते वक्त सुरेश ने कहा- यार, आज मुझे ओफ़िस के काम के सिलसिले में सूरत जाना है। और मैं कल रात को या सोमवार दोपहर को वापस लौटूंगा। अगर सोमवार दोपहर को लौटूंगा तो तुम्हें कल फोन कर दूंगा। अगर तुम्हें ऐतराज़ न हो तो क्या तुम जब तक मैं नहीं आता हूँ मेरे घर रुक जाना ताकि मामी को बोरियत महसूस नहीं होगी न ही मुझे उनकी चिंता रहेगी क्योंकि वो दमन में पहली बार आयी हुई हैं।
मैंने कहा- ठीक है, नो प्रॉब्लम!
और वो साढ़े बारह बजे वाली ट्रेन से सूरत चला गया। मैं भी उसे ट्रेन में बिठाने के लिये बोरिवली गया जब वापस लौट रहा था तो एक रेस्तराँ में जाकर 3 पेग व्हिस्की पी और लौट कर सुरेश के घर गया।
घर पर मामी जी हाल में बैठ कर कोई किताब पढ़ रही थी। मामीजान ने मुझे नशीली निगाहों से देखा और बोली- सुरेश को बैठने की सीट मिल गयी थी क्या?
मैंने कहा- हां… क्योंकि ट्रेन बिल्कुल खाली थी।
वो बोली- मैंने खाना बना लिया है, भूख लगी हो तो बोल देना।
मैंने कहा- अभी भूख नहीं है, जब होगी तो बोल दूंगा।
मामी की निगाहों में अजीब नशा देख कर मैंने पूछा- मामी जी, आप करती क्या हैं?
थोड़ी देर तक मेरे नज़रों से नज़रें मिलाती रही, फिर बोली- समाज सेवा!
यह सुनते ही अचानक मेरे मुंह से निकल गया- कभी हमारी भी सेवा कर दीजिये ताकि हमारा भी भला हो जाये।
वो हल्के से मुसकुराई और बोली- तुम्हारी क्या प्रोब्लम है?
मैंने कहा- वैसे तो कुछ खास नहीं है लेकिन बता दूंगा जब उचित समय होगा।
वो मेरे आंखों में आंखें डालती हुए बोली- यहां तुम्हारे और मेरे अलावा कोई नहीं है, बेझिझक प्रोब्लम कह डालो शायद मैं तुम्हारी प्रोब्लम हल कर दूं?
मैंने कहा- आप किस प्रकार की समाज सेवा करती हो?
वो बोली- मैं जरूरतमंद लोगों की जरूरत पूरी करने की मदद करती हूँ, उनकी समस्या हल करती हूँ।
मैंने कहा- कि मेरी भी जरूरत पूरी कर दो न?
वो बोली- जब वक्त आयेगा तो कर दूंगी!
फिर वो चुप रही और मैगज़ीन पढ़ने लगी।
थोड़ी देर बाद मैंने पूछा- मामी जी आप क्या पढ़ रही हैं? कुछ खास सब्जेक्ट है क्या इस मैगज़ीन में?
वो मुस्कुराते हुए बोली- इस मैगज़ीन में बहुत अच्छा लेख है पत्नी और पति के सेक्स के विषय में!
फिर वो पढ़ने लगी।
थोड़ी देर बाद उसने पूछा- हार्दिक ये उत्तेजना का क्या मतलब होता है?
मैं सोचने लगा.
वो मेरी ओर कातिल निगाहों से देखती हुयी बोली- बताओ न?
मेरी समझ में नहीं आया कि हिंदी में उसे कैसे बताऊँ।
वो लगातार मेरी और देख रही थी, उसकी आंखों में नशा छाने लगा। मैं उसे गौर से देख रहा था, उसके होंठ खुश्क हो रहे थे, वो अपने होंठों पर जीभ फेर रही थी।
मैंने सोचा अच्छा मौका है मामी को पटाने का।
वो इठला कर बोली- बताओ न क्या मतलब होता है?
उसकी इस अदा को देखते हुए मैंने कहा- शायद चुदास!
वो बोली- क्या कहा? क्या मतलब होता है?
मैंने कहा- क्या तुम चुदास नहीं समझती हो?
वो बोली- कुछ कुछ… क्या यही मतलब होता है?
मैंने कहा- हां शायद यानि कि… कैसे समझाऊँ तुम्हें मामीजी!
मैंने उलझ कर कहा।
वो हंसते हुए बोली- चुदास का मतलब सेक्स करने की चाहत तो नहीं?
मैं उसे एकटक देखने लगा, उसके होंठों पर चंचल मुस्कुराहट थी।
मैंने कहा- ठीक समझी आप!
वो मेरी आंखों में आंखें डाल कर बोली- किस शब्द से बना है चुदास?
मैंने उसकी आवाज में कंपकपी महसूस की। मेरे दिल ने कहा ‘गधे, वो इतना चांस दे रही है, तू भी बन जा बेशरम… वरना पछतायेगा।
मैंने कहा- चुदास चोदना शब्द से बना है!
वो खिलखिला कर हंसने लगी और मैगज़ीन के पन्ने पलटने लगी।
मैं सोचने लगा कि अब क्या कयूँ?
अचानक उसने पूछा- ये वेजिना क्या होता है?
मेरे दिल ने कहा ‘साली जानबूझ कर ऐसे सवाल पूछ रही है।’ मैंने बिंदास होकर कहा- योनि को वेजिना कहते हैं।
वो फिर पूछने लगी- यह योनि क्या होता है।
मैंने कहा- क्या आप योनि नहीं जानती हो?
वो बोली- नहीं।
मैंने कहा- चूत समझती हो?
मामीजान ने झट से मुंह पर हाथ रखा और मैगज़ीन के पन्ने पलटती हुयी बोली- हा…
मैंने हिम्मत कर के कहा- चुदास की बहुत चाहत हो रही है।
वो हल्के से मुस्कुराते हुए कहा- चुदास की प्यास?
मैंने कहा- वाकई चुदास की प्यास लगी है।
वो बोली- मैं भी दो साल से प्यासी हूँ क्योंकि दो साल पहले मेरा पति से तलाक हो गया था।
मैंने कहा- ओह… इसका मतलब कि दो साल से तुम्हारी चूत ने लंड का पानी नहीं पिया है।
वो सिर झुका कर बोली- आज तक तुम्हारे जैसा कोई मिला ही नहीं।
मैं बोला- अगर मिल जाता तो?
वो बोली- तो मैं अपनी चूत को उस लंड पर कुर्बान कर देती।
मैं बोला- आओ मेरा लंड तुम्हारी चूत पर न्यौछावर होने के लिये बेकरार है।
मैंने तुरंत उसे अपनी बांहों में ले लिया और उसके होंठ में होंठ डाल कर चुम्बन करने लगा, मैंने महसूस किया कि उसके हाथ मेरे लंड की तरफ़ बढ़ रहे थे और उसने पैंट की ज़िप खोल कर मेरे लंड को पकड़ लिया फिर धीरे धीरे सहलाने लगी।
मेरा लंड लोहे की तरह सख्त हो गया। मुझसे बरदाश्त नहीं हुआ और मैं पैंट और अंडरवीयर निकाल कर बिल्कुल नंगा हो गया।
अब मामी ने मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुंह में ले लिया और लोली पोप की तरह चूसने लगी।
मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।
कभी वो मेरे लंड के सुपारे को चूसती, कभी जबान से लंड को जड़ तक चाट रही थी.
ऐसा उसने करीब 15 मिनट तक किया।
आखिर में रहा न गया मैंने उसके मुंह में ढेर सारा वीर्य डाल दिया। फिर हम दोनो सोफ़े पर आकर बैठ गये। मेरा लंड फिर सामान्य हो गया।
वो अब भी साड़ी पहने हुयी थी, मैंने उसकी साड़ी में हाथ डाल कर जांघों को सहलाया फिर हाथ को उसकी चूत पर ले गया। उसकी पैंटी गीली हुयी थी, इतनी गीली थी जैसे पानी से भिगोयी हो। मैंने उसकी पैंटी के ऊपर से ही चूत को मसलना शुरु किया, वो बिन पानी की मछली की तरह तड़पने लगी।
फिर मैंने उसकी पैंटी में हाथ डाला, उसकी चूत फूली हुयी और गरम भट्टी की तरह सुलग रही थी। मैंने उसकी चूत की दरार में उंगली डाल कर चूत के दाने को मसलने लगा जिस कारण वो बेकरार होने लगी।
अब मैंने उसे सोफ़े पर लिटा कर उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर सरकाया। उसकी पैंटी चूत के अमृत से तर-बतर थी। मैंने पैंटी को पकड़ा और जांघों तक सरका दिया।
अब मामी ने खुद उठ कर अपनी पैंटी निकाल दी और फिर सोफ़े पर लेट गयी। उसके घुटने ऊपर थे और टांगें फैली हुयी थी। उसकी सांवली चूत अब बिल्कुल साफ़ साफ़ दिखायी दे रही थी।
मैंने अपने एक उंगली उसकी चूत में डाली तो मुझे लगा मैंने आग को छू लिया हो क्योंकि उसकी चूत काफ़ी गरम हो चुकी थी। मैं धीरे धीरे अपनी उंगली उसके चूत में अंदर बाहर करने लगा, उसके मुंह से आअह्ह ह्हाअ ऊफ़्फ़ की आवाज निकल रही थी।
अब मैंने दो उंगलियां उसकी कोमल चूत में घुसाई। चिकनी चूत होने से दोनो उंगलियां आराम से अंदर बाहर हो रही थी। लगभग पचास साठ बार मैंने अपनी उंगलियों से उसकी चूत की घिसाई की।
इधर मेरा लंड भी फूल कर तन गया था। अब मैं उठ खड़ा हुआ और उसे लेकर बेडरूम में ले गया। वो आंखें बंद किये मेरे अगले कदम का इन्तज़ार करने लगी। मैंने शर्ट निकाल कर उसकी साड़ी और पेटिकोट दोनो उतार दिये और हम बिल्कुल नंगे हो गये।
वो करवट लेकर लेट गयी, अब उसके चूतड़ साफ़ झलक रहे थे, मैंने उसकी गांड पर हाथ से सहलाया। क्या गांड थी… गोल मटोल गांड थी उसकी।
मैं करीब 5 मिनट तक उसकी गांड को सहलाता रहा फिर उसकी कमर पकड़ कर चित लिटा दिया और जितना हो सका उतनी उसकी टांगें फैला दी, फिर उसकी चूत की दरार को फैला कर अपनी जीभ से चूत चाटने लगा।
उसके मुंह से हाअ ऊऊफ़्फ़फ़्फ़ की नशीली आवाजें निकल रही थी। मैं अपनी जीभ से उसकी चूत के एक एक भाग चाट रहा था, बीच बीच में चूत को जीभ से चोद रहा था।
वो बिल्कुल पूरी तरह से गरम हो चुकी थी, वो बोली- अब हटो हार्दिक, मेरी चूत काफ़ी गरमा चुकी है। अपना लंड मेरी गरम गरम चूत में घुसेड़ दो राजा… उफ़्फ़… अपने लंड से मेरी चूत की गरमी और प्यास बुझा दो, मेरे हार्दिक, आज इतना कस कस कर चोदो कि मेरे पूरे अरमान निकल जाये।
जैसे ही मैंने उसकी चूत से अपना मुंह हटाया, उसने अपनी टांगें मोड़ ली, मैं उसकी उठी हुयी टांगों के बीच बैठ गया। मैंने उसकी टांगें अपने हाथ से उठा कर अपना लंड उसके चूत के मुंह में रखा जिस कारण उसके शरीर में झुरझुरी मच गयी।
लंड को चूत के मुंह में रखते ही चूत की चिकनाहट के कारण अपने आप अंदर जाने लगा। मैंने कस कर एक धक्का मारा तो लंड पूरा का पूरा उसकी चूत में घुस गया। गरमा गरम चुत के अंदर लंड की अजीब हालत थी।
अब मैं धीरे धीरे अपना लंड उसकी चूत के अंदर बाहर करने लगा। उसकी चूत के घर्षण से मेरा लंड फूल कर और मोटा हो गया। मेरे हर धक्के पर वो ऊऊफ़्फ़ आआह्ह ऊऊह्ह ह्हह की आवाजें निकालने लगी।
करीब बीस मिनट तक मैं उसके चूत में अपना लंड अंदर बाहर करता रहा, फिर मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी और दनादन लंड को चूत में मूसल की तरह घुसाता रहा.
मामी ने मुझे कस कर बाहों में जकड़ लिया, मैं समझ गया कि वो झड़ रही है।
मामी कराह रही थी, बोल रही थी- हाय! हार्दिक दो साल बाद मेरी चूत की खुजली मिटी है। वाकयी तुम पक्के चुदक्कड़ हो। चोदो मुझे जोर जोर से चोद।
मेरा लंड फच फच की आवाज के साथ अंदर बाहर हो रहा था। पूरे कमरे में चुदाई की फ़चाफ़च फ़चाफ़च की आवाजें गूंज रही थी। मेरा लंड उसकी चूत को छेदता जा रहा था. कुछ देर बाद उसके झड़ने के कारण मेरा लंड बिल्कुल गीला हो चुका था और वो निढाल होकर लम्बी लम्बी सांसें ले रही थी।
करीब 50-60 धक्कों के बाद मेरे लंड ने आखिर जोरदार फ़व्वारा निकाला और उसकी चूत में समा गया। जब तक लंड से एक एक बूंद उसकी चूत में समाती रही, मैं धक्कों पर धक्के लगाता रहा। आखिर में मैंने अपना लंड बाहर निकाला और उसके बाजु में लेट गया। हम दोनों की सांसें तेज चल रही थी, वो दाहिनी करवट से लेटी हुई थी।
करीब 15-20 मिनट तक हम ऐसे ही लेटे रहे।
फिर मेरी नज़र मामी की गांड पर पड़ी, गांड का ख्याल आते ही लंड फिर से हरकत करने लगा।
मैंने अपनी एक उंगली उसकी गांड के छेद पर रख कर घुसाने की कोशिश की। उसकी गांड का छेद बहुत टाइट था। मैंने ढेर सारा थूक उसकी गांड के छेद पर और अपनी उंगली पर लगाया और दुबारा उसकी गांड में उंगली घुसाने की कोशिश करने लगा। गीलेपन के कारण मेरी उंगली थोड़ी गांड में घुस गयी.
उंगली घुसते ही वो कसमसाहट करने लगी, वो तड़प कर आगे खिसकी जिस वजह से उंगली गांड के छेद से बाहर निकल गयी.
मामी मुड़ कर बोली- क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- मामी तुम्हारी गांड सचमुच खूबसूरत है।
वो बोली- उंगली क्यों घुसाते हो? लंड क्या सो गया है?
उसकी यह बातें सुनकर मैं खुश हुआ और उसे पेट के बल लिटा दिया और दोनो हाथों से उसकी चूतड़ को फ़ैला दिया जिस से उसकी गांड का छेद और खुल गया।
वो धीरे से बोली- हार्दिक, नारियल तेल, घी या कोई चिकनी चीज मेरे गांड और लंड पर लगा लो तो आसानी रहेगी।
मैंने कहा- मामीजान, इससे भी अच्छी चीज है मेरे पास… वेसलीन!
और मैं उठ कर ड्रायर से वेसलीन ले आया और ढेर सारी वेसलीन अपने लंड और उसकी गांड पर लगाई और उसकी गांड मारने को तैयार हो गया। अब मैंने अपना लंड उसकी गांड के सुराख पर लगाया और थोड़ा जोर लगा कर पुश किया, लंड का सुपाड़ा गांड में थोड़ा सा घुस गया। फ़िर थोड़ा जोर लगा कर और पुश किया तो सुपाड़ा उसकी गांड में समा गया।
सुपाड़ा गांड में घुसते ही वो बोली- हार्दिक, थोड़ा आहिस्ते आहिस्ते डालो, दर्द हो रहा है, दो साल हो गये गांड मरवाये।
अब मैं सिर्फ़ सुपाड़े को ही धीरे धीरे गांड के अंदर बाहर करने लगा। थोड़ी देर बाद ही उसकी गांड का छेद पूरा लंड खाने के काबिल हो गया। मुझे लगा अब मेरा लंड पूरा उसकी गांड में घुस जायेगा और ऐसा ही हुआ।
उसकी गांड का छेद चिकनाहट की वजह से लंड थोड़ा थोड़ा और अंदर समाने लगा।
दो तीन मिनट की मेहनत से मेरा लंड पूरा का पूरा उसकी गांड में घुस गया। मैं धीरे धीरे अपना लंड उसकी गांड से अंदर बाहर करने लगा। उसकी टाइट गांड होने से मुझे बड़ा मजा आ रहा था। उसे भी गांड मरवाने का मजा आ रहा था और मुंह से ऊफ़्फ़ आह्हा की आवाजें निकाल रही थी।
40-50 धक्कों के बाद मेरे लंड ने घुटने टेक दिये और उसकी गांड में ढेर सारा वीर्य छोड़ दिया, वो भी अपनी गांड को सिकोड़ने लगी।
अब हम दोनों निढाल होकर बिस्तर पर लेट गये।
जब तक मेरा दोस्त नहीं आया, मैंने उसकी मामीजान की कई बार चूत और गांड मारी।
जब मैं वापस अपने घर लौटने लगा तो मामी बोली- कैसी रही मेरी समाज सेवा?
और मैंने हंस कर कहा- मामी जी, आप सच्चे तन मन से समाज सेवा करती हो!
फिर मैं घर लौट आया.
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