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मैं रेलगाडी में मुंबई से हावडा जा रहा Sex Storiesथा. मेरे सामने वाली सीट पर एक सुंदर महिला बैठी थी. उसने नीली साडी पहनी हुई थी, वो पतली दुबली थी मगर उसके दूध बड़े बड़े थे, ऐसा लगता था मानो अभी ब्लाउज़ फाड़ कर बाहर आने को बेताब हैं। उसका रंग भी बिल्कुल दूध की तरह सफ़ेद था। उसकी उमर कोई 28 साल की होगी।
मैंने ध्यान दिया कि वो मुझे बहुत देर से देख रही है तो मैंने भी उसकी तरफ़ देख कर थोड़ा मुस्करा दिया।
फिर वो मुझसे अपनी टिकट दिखाते हुए पूछी कि ज़रा देखो मेरा रिज़र्वेशन है कि नहीं?
मैंने देखा उनका वेटिंग टिकेट था।
मैंने कहा कोई बात नहीं आप मेरे सीट में सो जाना।
फिर मैंने उसका नाम पूछा तो उसने बताया कि उसका नाम रूपा है।
रूपा की खूबसूरती देख कर मेरे मुंह और लंड दोनों ही जगह से पानी निकल रहा था।
मैं मन ही मन उसे चोदने का प्लान बनाने लगा। ये सरदी की रात थी इसलिये सभी लोग कम्बल ढक कर सो रहे थे।
रात को हम खाना खाने के बाद मैंने रूपा से कहा के आप सो जाओ मैं बैठता हूं।
उसने कहा नहीं तुम भी कम्बल ओढ कर सो जाओ। और फिर वो ट्रेन की उस छोटी सी सीट पर इस तरह से लेट गये कि उसकी गांड मेरी तरफ़ थी और चेहरा दूसरी तरफ़।
फिर मैं उसके सर की तरफ़ पैर को रख कर लेट गया और मैं उसकी गांड की तरफ़ मुंह घुमा कर सो गया। अब लंड बिल्कुल उसकी गांड की दरार में था उसकी गोल गोल गांड और मेरा लंड एक दूसरे से चिपके हुए थे।
रूपा के गोरे गोरे पैर भी बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने थे।
मेरे लंड को समझाना अब मुश्किल हो रहा था।
मैंने अपने हाथ उसके पैरों पर रख कर थोड़ा सहलाना शुरु किया और गर्म गर्म सांसो के साथ उसके पैरों को चूमने लगा।
थोड़ी देर बाद वो मेरी तरफ़ मुड़ गयी। अब उसका चेहरा भी मेरे पैरों की ओर था।
उसने मेरे पैरों को ज़ोर से पकड़ का अपने बूब्स से रब करना शुरु कर दिया।
फिर मैंने भी उसके पैरों को सहलाते हुए जांघ तक जा पहुंचा और जब मैं उसकी चूत पर हाथ रखा तो ऐसा लगा मेरा हाथ जल गया। उसकी चूत भट्टी की तरह गर्म हो रही थी और गर्म गर्म चूत बिल्कुल गीली हो रही थी।
मैंने उसकी चूत में अपनी ऊँगलियाँडालनी शुरु कर दी, उसकी चूत पर छोटे छोटे बाल थे जिनको मैं अपनी ऊँगलियों से सहला रहा था।
फिर धीरे धीरे कम्बल के अन्दर ही मैं अपना मुंह उसके चूत तक लेकर गया और उसकी चूत को पीने की कोशिश करने लगा।
उसने अपने एक पैर को उठा कर मेरे कंधे पर रख दिया। अब उसकी बुर बिल्कुल मेरे मुंह में थी मैं अपनी जीभ को उसके बुर के चारों तरफ़ घुमाना शुरु कर दिया वो भी अपनी कमर धीरे धीरे हिलाना शुरु कर दी।
मैंने भी अपने पैर को उठा कर अपना लंड उसकी तरफ़ बढ़ा दिया।
वो बड़े प्यार से लंड को चूसने लगी।
हम अब बिल्कुल 69 की पोजिशन में थे लेकिन ऊपर नीचे नहीं थे बल्कि साइड बाइ साइड थे और हम जो भी कर रहे थे धीरे धीरे कर रहे थे क्योंकि ट्रेन में किसी को पता न चले।
वो अब कुछ ज्यादा ही ज़ोर से अपने कमर को उठा का अपने बुर को मेरे मुंह में रगड़वा रही थी।
अचानक उसने मेरे सर को अपने हाथ से अपनी बुर में ज़ोर से दबा दिया और कमर को मेरे मुंह में दबा दिया और ढीली पर गयी।
मैं उसके बुर की गर्मी धीरे धीरे अपने मुंह से चाट चाट कर साफ़ किया। वो अब भी मेरे लंड को चूस रही थी। मैं भी अब जोर जोर से अपने लंड को उसके मुंह में घुसा रहा।
मेरे लंड का पानी भी अब बाहर निकलने वाला था मैंने ज़ोर से उसके बुर में अपना मुंह घुसा दिया और मेरे लंड से पानी निकलना शुरु हुआ तो 8-10 झटके तक निकलता ही रहा।
उसने मेरे लंड के पानी को पूरा अपनी मुंह में लेकर पी गयी।
थोड़ी देर के बाद मैं उठा और टोइलेट गया।
मैंने अपनी पैंट उतार दी फिर अपनी चड्ढी भी उतार दी। अपने लंड को अच्छी तरह से साफ़ किया और पैंट पहन ली।
वापस आकर मैंने अपनी चड्ढी बैग में डाल दी। फिर वो भी टोइलेट जाकर आयी।
और मेरी तरफ़ मुंह करके सो गयी और कम्बल ढक ली। अब उसके बूब्स मेरी छाती से लग रहे थे। मैंने उसके ब्लाउज़ के बटन खोल दिये। वो ब्रा नहीं पहनी थी। ब्रा को शायद टोइलेट में ही उतार कर आयी थी।
मैं उसके गोल गोल बूब्स को अपने हाथ से दबाने लगा और उसके निप्पल को मुंह में लेकर ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा।
उसने अपने एक हाथ से अपनी साड़ी को उठा कर कमर के ऊपर रख लिया।
अब उसकी कमर के नीचे कुछ भी नहीं था, मेरा हाथ उसके मक्खन जैसी जांघों को तो कभी उसके बुर को प्यार से सहला रहा था और रुपा अपने हाथों से मेरे लंड को सहला रही थी।
ऐसा काफ़ी देर तक चलता रहा।
मेरा लंड एक बार फिर से उसकी बुर की गहराई को नापने के लिये मचलने लगा था। मैंने धीरे से रूपा से पलट कर सोने को कहा। रुपा धीरे से पलट गयी। अब उसकी नंगी गांड की दरार मेरे लंड से चिपकी हुई थी।
मैंने धीरे से अपने लंड को हाथ से पकड़ कर पीछे से उसकी गांड के छेद में रखा और एक हल्का सा धक्का मारा। मेरा लंड उसकी गांड में आधा घुस गया लेकिन वो दर्द से कराह उठी।लेकिन वो चीखी नहीं। वो जानती थी कि ट्रेन में सब सो रहे लोगों को शक न हो जाये।
मैंने धीरे से एक और धक्का मारा और लंड पूरा का पूरा अन्दर घुस गया। फिर मैं एक हाथ से उसकी चूचियों को मसलने लगा। रूपा की चिकनी चिकनी गांड मेरे पेट से रगड़ खा रही थी। और मैं उसे चोदे जा रहा था।
फिर चार पांच मिनट के बाद मैंने अपनी चुदाई की स्पीड बढ़ा दी। और जोर जोर से रूपा को चोदने लगा।
रूपा भी अपनी गांड हिला हिला कर चुदवा रही थी।
अचानक रूपा अपनी गांड को मेरे लंड पे जोर से दबा कर रुक गयी। मेरा लंड भी पिचकारी की तरह पानी छोड़ना शुरु कर दिया। लंड और बुर दोनों का पानी गिर जाने के बाद दोनों शान्त हो गये।
लेकिन हमारी चुदाई सुबह तक चलती रही। हमने रात भर में सात बार चुदाई की। और किसी को पता भी नहीं चला।
फिर सुबह मेरा स्टेशन आ गया। और मैं उतर गया। उसे आगे जाना था तो वो चली गयी और जाते जाते अपना फोन नम्बर भी दे गयी। Sex Stories
आज मैं आपको अपनी ज़िन्दगी Antarvasna की वो दास्ताँ सुनाने जा रही हूँ जिसे अगर गलती से भी मेरे पति ने पढ़ लिया तो वो अपने ऑफिस के
हर मर्द को बारी बारी से बुलाकर मेरी मुलायम बिना झांटों वाली गुलाबी बुर को चुदवा चुदवा के भोसड़ी वाला कुआँ बनवा देगा।
मेरा मर्द बहुत बड़ा वाला चुदक्कड़ है। साला चोदता कम और चिल्लाता ज्यादा है।
खैर पहले मैं आपको अपने बारे में कुछ बता दूं। मेरा जन्म एक छोटे कस्बे में हुआ।
हम पांच बहनें हैं। माताजी को पांचवी के जन्म के बाद ही पिताजी ने घर से निकाल दिया। मेरी बड़ी बहन ने बहुत कोशिश की पर
पिताजी नहीं माने।
असल में पिताजी की नजर पड़ोस वाले कस्बे के किसी बनिए की विधवा बहू पर पड़ गई थी। माँ के जाते ही पिताजी उसे घर ले आये।
क्यूंकि पिताजी का रुतबा बहुत था उन दिनों तो किसी ने कोई आवाज़ नहीं उठाई।
खैर मैं इन सब दुनियादारी वाली बातों से अनजान अपने तरीके से बड़ी हो रही थी, क्यूंकि अपनी माँ की वो पांचवी बेटी मैं ही थी, तो
सारी बहने मुझे ही जिम्मेदार समझ कर मुझसे बातचीत नहीं करती थी।
पिताजी पर तो उस छम्मक छल्लो ने ऐसा जादू किया कि पिताजी दिन भर उसके कमरे में ही घुसे रहते।
इस तरह मैं बड़ी हो गई। पिताजी ने मुझे पढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित किया। हम सभी बहनें घर पर रह कर ही पढ़ाई करती रही।
परीक्षा देने स्कूल जाना पड़ता था।
जब दसवीं बोर्ड की परीक्षा आई तो पिताजी ने मुझे पढ़ने के लिए एक मास्टर का इंतजाम कर दिया। वो मास्टर रोज मुझे दिन में दो
बजे पढाने आता था। मास्टर जी की उम्र पैंतालीस थी और वो जोर से बोल नहीं पाते थे शायद किसी बीमारी की वजह से।
तो कहानी कुछ इस तरह है।
एक रात मुझे मेरी बड़ी बहन ने बहुत मारा। मुझे लगा शायद फिर वोही माँ की याद आ रही होगी। मेरी सभी बहनें माँ को याद करती
तो मेरी ही पिटाई करती।
पर उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा। मैं चुपचाप अपने कमरे में आकर रोने लगी। तभी मुझे कुछ अजीब सी आवाज आई। मैंने इधर उधर
देखा तो लगा कि आवाज पिताजी के कमरे से आ रही है। मैं दबे पाँव उनके कमरे की तरफ जाकर खिड़की से झाँकने लगी।
अन्दर का नजारा देख कर मैं दंग रह गई। अन्दर मेरी सौतेली माँ हमारे नौकर श्याम के होंठ चूम रही थी। श्याम का एक हाथ मेरी माँ
की गांड पर था और दूसरे हाथ से वो माँ की चूची मीस रहा था।
नजारा देखकर मेरे दिमाग में करंट सा लगा। तभी मेरी नजर बिस्तर पर पड़ी। मेरा तो सर घूमने लगा।
मैंने देखा मेरे पिताजी पूरे नंगे बिस्तर पर लेट कर अपने लुल्ले को हिला रहे थे।
मुझे थोड़ा धक्का सा लगा। मैंने कभी किसी के लुल्ले को इतना बड़ा नहीं देखा था। मेरी दोनों टांगों के बीच गुदगुदी सी होने लगी।
फिर माँ ने श्याम के होठों से होंठ चिपकाये हुए उसकी धोती खींचनी शुरू कर दी। श्याम भी मेरी माँ के ब्लाउज को जोर से खींचने
लगा।
मेरे पिताजी ने कहा- और जोर से खींच! फाड़ डाल!
इतना सुनते ही श्याम ने मेरी माँ का ब्लाउज बीच से फाड़ दिया। ब्लाउज के फटते ही मेरी माँ की चुचियाँ खुल के बाहर आ गई। श्याम
भूखे कुत्ते की तरह मेरी माँ की चूचियाँ चूसने लगा।
मेरी माँ भी बहुत ही जोर जोर से सिसकरियाँ ले रही थी। पिताजी का लुल्ला किसी डंडे की तरह खड़ा था।
मेरी माँ ने इस बार श्याम की धोती एक झटके में खींच दी। धोती खुलते ही श्याम का लुल्ला भी किसी सांप की तरह फनफनाता हुआ
ऊपर नीचे होने लगा।
मेरे तो होश उड़ गए थे। मेरी माँ ने तभी श्याम के लुल्ले को अपने हाथो से पकड़ लिया और सहलाने लगी। श्याम भी माँ की चुचियों
को हौले हौले दबा रहा था। फिर माँ ने पिताजी की तरफ देखा।
पिताजी ने कहा- चूस ले रांड! आज इस लंड को चूस ले!
तब मुझे पहली बार पता चला कि बड़े वाले लुल्ले को लंड कहते हैं।
फिर माँ श्याम के लंड को अपने मुँह में ले कर आइसक्रीम की तरह उसे चुम्लाते हुए चूसने लगी।
श्याम माँ के मुँह में धक्का लगा रहा था। तभी मैंने देखा कि माँ पिताजी के लंड को अपने हाथों में भींचकर तेजी से आगे पीछे करने
लगी। पिताजी हाय हाय करने लगे।
कुछ ही देर में पिताजी के लंड से एक पिचकारी निकली और पिताजी हाँफते हुए पीछे लुढ़क गए। फिर माँ ने श्याम को अपने ऊपर लेटने
कहा। श्याम माँ के ऊपर लेट गया और जोर जोर से उछलते हुए गाली बकने लगा। माँ उफ़ हाय! चोदो जोर से… कहते हुए नीचे से
धक्के लगा रही थी।
मेरी चड्डी पूरी गीली हो चुकी थी। मैंने देखना जारी रखा। कुछ देर बाद श्याम आया आया… कहते हुए माँ के ऊपर कस के लेट गया।
माँ भी आजा मेरे राजा कहती हुई कस के श्याम से लिपट गई।
तभी मेरी बड़ी बहन की आवाज सुनकर मैं वापस अपने कमरे की ओर भागी और कमरे में आकर रजाई में घुस गई।
मेरी चड्डी पूरी भीग चुकी थी और साँसे गर्म हो गई थी। पूरे बदन में चीटियाँ चल रही थी। मैंने किसी तरह चड्डी बदली और वापस लेट
गई।
पर नींद तो आँखों से बहुत दूर थी। मेरा हाथ अपने आप मेरी बुर में चला गया।
मैं श्याम के लंड के बारे में सोचते हुए अपनी बुर को सहलाने लगी। मेरी साँसे तेज चलने लगी। मेरे बदन में एक अजीब सी गर्मी चढ़
गई थी।
मैं हाय श्याम! हाय श्याम! कहती हुई अपनी बुर में हाथ फिराती रही।
तभी मुझे लगा कि मैं हवा में उड़ रही हूँ।
मैंने अपना हाथ तेजी से अपनी बुर में चलाना चालू किया।
कुछ पलों बाद मेरी बुर से एक पतली धार बहने लगी और मुझे इतना मजा आने लगा कि मैं बता नहीं सकती।
कुछ देर तक मैं वैसे ही पड़ी रही फिर मुझे नींद आ गई। उस रात मैंने पहली बार जाना कि जवानी किसे कहते हैं और फिर मैंने जवानी
के मदमस्त जीवन में कदम रखा।
अब मेरी शादी हो चुकी है पर शादी तक पहुँचने से पहले मैंने कितने प्यासे लोगों को पानी पिलाया यह मैं आपको गुरूजी के माध्यम से
बताती रहूंगी।
क्यों गुरूजी! आप मेरी कहानियाँ सब तक पहुँचाओगे न?
आपकी अंतरा
दोस्तो कैसी लगी मेरी कहानी! Antarvasna
हाय, मैं रेखा, फिर से आपके Hindi Sex Stories लिये अपनी जिंदगी का एक हसीन पल लेकर उपस्थित हुई हूँ, मेरी प्रथम कहानी के लिये मुझे आपका बहुत ढेर सारा प्यारा मिला, सभी को अलग अलग जवाब देने के लिये मेरे पास समय भी कम पड़ गया। आप सभी को को मेरा दिल से प्यार और धन्यवाद।
आइए, आपको अभी ही 3 अक्टूबर की सच्ची बात बताती हूँ।
2 अक्टूबर को मेरे पति के ऑफ़िस की गांधी जयन्ती की छुट्टी थी, पर काम के सिलसिले में उन्हें आज बाहर जाना था ताकि अगले दिन वो बैठक में भाग ले सकें। आप जानते ही हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है, मेरे सेक्सी दिमाग ने एक दम से ही एक योजना बना डाली। मैंने अपने बॉय-फ़्रेण्ड कुलदीप को फोन कर दिया। मैंने नीता से भी कहा, पर डर के मारे उसने कुछ नहीं कहा।
कुलदीप समय पर आ गया था। हम दोनों शाम को बाज़ार घूमने निकल पड़े। वहां कुलदीप ने मेरे लिये ब्रा और एक छोटी सी प्यारी पेण्टी ली। मैंने भी उसके लिये एक बढ़िया सा अंडरवियर लिया। इसका सीधा सा मतलब था कि हमें रात की चुदाई में ये सब ही पहनना है। यही हमारी दिवाली का तोहफ़ा भी था।
रात ढलते ढलते हम घर आ चुके थे।
रात को जब मैं खाना बना रही थी तो कुलदीप अपने घर जाकर जाने कब लौट आया। नीता को उसके आने के बारे में पता नहीं था। नीता मुझसे कुलदीप के बारे में ही पूछ रही थी कि हम दोनों ने क्या क्या मजे किये ?
मुझे लगा कि उसकी चूत भी यह सोच सोच कर गीली हो रही थी कि मैंने लण्ड कैसे लेती हूँ, वगैरह।
मैंने उसे बताया कि यदि मैं बताऊंगी तो फिर अपने आप को रोक नहीं पाऊंगी।
“अरे वाह, ऐसा क्या किया था तुम दोनों ने ? बता ना दीदी?”
“अच्छा तू अपना काम खतम कर फिर बताऊंगी तुझे !”
हम दोनों ने फ़टाफ़ट अपना अपना काम समाप्त किया … तभी मेरे मन एक प्यारा सा ख्याल आया कि क्यों ना नीता मेरे साथ मिलकर रात को चुदाई का मजा ले। मैंने नीता को कहा,”देख बात तो बहुत लम्बी है … रात को मेरे साथ ही सो जाना … मैं पूरी कहानी बता दूंगी !”
“हाय नहीं रे दीदी, तू कुछ ना कुछ गड़बड़ जरूर करेगी, मुझे तो शरम आयेगी !”
“तुझे सुनना है तो बोल वरना तेरी मर्जी …”
ये सब बातें कुलदीप सुन रहा था, उसे लगा कि आज रात की चुदाई तो गई, पर उसे क्या पता था था कि मैं उसी के लिये तो नई चूत का इन्तज़ाम कर रही हूँ ! और नीता के लिये एक सोलिड नया लण्ड तैयार कर रही हूँ। नीता ने कुछ सोच कर कहा कि मुझे पूछना पड़ेगा उन्होने हां कह दी तो मैं अभी आ जाती हूँ।
जैसे ही नीता जाने लगी तो मैंने उसे पीछे से आ कर उसकी कमर को पकड़ कर अपने से चिपका लिया और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ दबा दी … और उत्तेजना में मसल दी …
“उफ़्फ़्फ़्फ़, दीदी … हाय रे …” और वो हंस पड़ी
“सॉरी, नीता … जल्दी आना … मैं इन्तज़ार करूंगी” और हंस कर आंख मार दी।
“दीदी … अब तो बड़ी बेशरम हो गई है तू … अभी आती हूँ …” नीता चली गई।
बैचेन सा कुल्दीप बाहर आया और असमन्जस में बोला,”अक्षी, आज की चुदाई का क्या होगा …?”
“क्यों … क्या हुआ … तेरा लण्ड तो मस्त है ना … या कुछ …?”
“ओह्ह हो … तुमने नीता को बुलाया है ना …?”
“मेरे जानू, आज मैं तुम्हें वो मजा दूंगी कि हमेशा याद करोगे, बस अब देखते जाओ !”
कुलदीप के मुख पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट तैरने लगी, शायद उसे कुछ अंदाज़ा हो गया था। खाना बनाने के बाद मैं बैठक में आ गई। कुलदीप नहाने चला गया … कुछ ही देर में बाथरूम से उसने आवाज दी,”अक्सू, जरा यहाँ आना …!”
मैं बाथरूम के पास गई और दरवाजा खोला। उसे देखकर मैं सन्न रह गई, वो पूरा नंगा था … उसका मोटा और भारी लण्ड कड़क होकर सीधा तना हुआ था। मेरे मन में हलचल होने लगी। दिल धड़क उठा। उसे मैंने यों पहली बार देखा था। उसका नंगा और चिकना बदन, उस पर पानी की बूंदें उसे बला का सेक्सी बना रहा था। मेरे मन में वासना का उबाल आने लगा। मेरे चुचूक अकड़ गये, चूत से पानी रिसने लगा। वो खड़े खड़े अपना लण्ड हिला रहा था, उसका लाल सुपारा गजब ढा रहा था। मैं शर्माती हुई अन्दर चली आई, उसने मुझे आँख मार दी, मेरी नजरें झुक गई और मैंने धीरे से उसका फ़ड़फ़ड़ाता हुआ लौड़ा अपने हाथों में भर लिया।
“मेरी पीठ पर साबुन लगा दे … जरा रगड़ कर …” मैं उसकी पीठ पर साबुन मलने लगी, साथ ही साथ अपना हाथ उसके कड़े चूतड़ो पर भी फ़िसलने लगा।
उसके चूतड़ों की गहराई में हाथ घुस कर उसे मजे दे रहा था। दूसरे हाथ से मैंने उसकी चौड़ी छाती पर उसके जरा से निपल को मसलने लगी। मैंने उसकी छाती पर अपना सर रख दिया और साबुन वाले हाथ नीचे लण्ड पर उतर आये। उसके लण्ड पर साबुन मलते हुये उसका जैसे मुठ ही मारने लगी। कुलदीप ने अपनी आंखें बन्द कर ली … और उसके गीले हाथ मेरे उन्नत वक्ष पर आ गये। कुछ ही देर में उसने मेरी चूचियाँ बाहर निकाल ली और एक दूसरे को मसला-मसली का दौर चल पड़ा। उसका पूरा शरीर साबुन के झाग से ढक गया था। जाने कब हम दोनों के होंठ आपस में जुड़ गये … सच में बहुत आनन्द आ रहा था … स्वर्ग जैसा आनन्द … ।
लण्ड की घिसाई से वो बहुत आनन्दित हो रहा था। तभी उसने मुझे खींच कर शॉवर के नीचे कर लिया और पानी बरसा दिया। मेरे कपड़े भीग उठे, मेरे चिकने स्तन पानी से भीगे हुये थे। एकदम फ़ूल कर कड़े हो गये थे। मेरे गीले बदन को भोगने की नजर से देखने लगा … मैं समझ गई थी कि अब उसका लण्ड मुझे चोदने के लिये तैयार है। मेरे हाथ उसके लण्ड पर तेजी से मुठ मार रहे थे। उसने मेरे रहे सहे कपड़े भी उतार दिये। मेरी आंखों में नशा सा छा गया। वो मुझे बेहद सेक्सी लगने लगा था। चुदने को चूत लपलपाने लगी थी। मुझे एक झुरझुरी सी आई और मैं उससे एक दम चिपक गई। हमारे अधर एक दूसरे को पी रहे थे …
चूसने की आवाज यूं आ रही थी मानो आम चूस रहे हों … क्या रस भरा महौल था …
मेरा अंग अंग मसले जाने को बेताब हो रहा था। उसका लण्ड अब भी मेरी मुठ्ठी में था। उसने मेरे निपल को दांतो से काट सा लिया … मेरी चूत पर जैसे आग में घी के जैसा असर होने लगा। चूत में आग सी लग गई,”दीपूऽऽऽऽ अह्ह्ह् … मार डाला रे तूने तो …”
“मेरी रानी … तेरे अंग बहुत मद भरे हैं … आह्ह्ह्ह”
मुझसे रहा नहीं जा रहा था। इसका सुन्दर, मोहक लण्ड मेरे दिल को पिघला रहा था। अनजाने में मैं नीचे बैठती गई और अब उसका मनमोहना सुन्दर लण्ड मेरे होंठो के पास था। मैंने उसका लाल तड़पता हुआ सुपारा अपने मुख में भर लिया और चूसने और काटने लगी।
“हाय रे … मेरा लण्ड काट कर खा मत जाना … श्स्स्स्स्स्स्स् … निकल जायेगा रानी” उसकी सिसकी फ़ूट पड़ी। मैं अब जल्दी जल्दी उसके लण्ड को अपने मुख में अन्दर बाहर करने लगी, उसका लण्ड बुरी तरह से फ़ड़फ़ड़ा रहा था। वो भी झुक कर मेरे स्तनों को मरोड़ने और खींचने लगा। उसने मुझे अब प्यार से उठाया और खड़ा कर दिया। उसने मेरे मस्तक पर चूमा, फिर मेरे होंठो को, मेरे कंधे पर, फिर मेरे उरोज पर, नाभी पर … हाय राम …
वो तो मेरी चूत तक पहुंच गया। उसके होंठ मेरी गीली और चिकनी चूत के लबों में पहुंच कर उस रस का स्वाद लेने लगे … मेरी चूत की चिकनाई में वासना से भरे बुलबुले भी उभर आये थे, जैसे चूत में रस का मन्थन हो रहा हो। मेरा वो पहला प्यार था, उसके लिये मैं सब कुछ कर सकती थी … मेरे मन भी चूत चुसवाने को मचल रहा था। दिल को दिल से रहत होती है … वो मेरी अदायें समझता था। मेरी टांग अपने आप एक तरफ़ उठ गई और मेरी चूत का मुख खुल गया उसकी जीभ मेरी चूत के अन्दर तक चाट रही थी। दाना फूल कर लाल हो गया था। बार बार होंठो से चुसने के कारण मेरे तन की आग भड़कने लगी थी।
मैंने उससे कहा,”कुलदीप मुझे तेरा लण्ड चूसना है … बड़ा ही मस्त है रे …”
वो मुस्करा उठा और वहीं बाथरूम में सीधा लेट गया। वो जब मेरी चूत चूसता है तो मेरा मन करता है कि मैं अलादीन का चिराग बन जाऊँ और जो वो मांगे दे दूं।
मैं कुलदीप पर उल्टा लेट गई। हम अब 69 पोजीशन में थे। वो मेरी चूत के रस का स्वाद ले रहा था और मैं उसके मोटे और सुन्दर लण्ड को बड़े प्यार से चूस रही थी, कभी कभी काट भी लेती थी और फिर उसके सुपारे के छल्ले को कस कर और खींच कर चूस लेती थी। मेरे अंगों में तरावट सी आने लगी … जिस्म कंपकंपाने सा लगा … एक मीठी सी लहर उठने लगी …
“दीपू … मेरा पानी निकल जायेगा … हे मेरी मां … कैसा कैसा हो रहा है …”
“मेरी प्यारी अक्सू … निकाल दे पानी … तू मेरा रस पी सकती है तो क्या मैं तेरा रसपान नहीं कर सकता …?”
मैं अपनी उच्चतम सीमा को पार करने ही वाली थी … कि उसने चूसने की स्पीड बढ़ा दी और अपनी जीभ और दो अंगुलियाँ मेरी चूत में समा दी। मैं लहरा उठी और मेरी चूत उसके मुँह से भिंच गई और आग उगलने लगी … पानी छूट गया … मैं झड़ने लगी …।
अब मेरी बारी थी, मैंने उससे कहा कि अब अपना वीर्य भी मुझ पिलाओ …
उसने प्यार से मुझे सहला कर मुझे बैठा दिया और स्वयं अपना लण्ड मेरे सामने ले कर खड़ा हो गया।
“जानू आज अपने चेहरे को मेरे वीर्य से भिगा दो … मैं अपना ही माल चाट कर देखूंगा !”
मैंने उसका लण्ड मुख में भर लिया और अपने हाथों की ताकत का इस्तमाल किया, कस-कस के मुठ मारने लगी। वो तड़प सा गया। उसका जिस्म लहराने लगा, उसके अंगों में बिजलियाँ दौड़ने लगी। उसने छटपटा कर मेरे मुख से लण्ड निकाल लिया और एक भरपूर मुठ मार कर निशाना बांध लिया। एक तेज वीर्य की धार निकल पड़ी और निकलती ही गई … मेरा पूरा चेहरा जैसे नहा लिया हो … कुछ तो मैंने अपने मुँह में भर लिया पर दूसरे ही पल में कुलदीप मेरे चेहरे पर लपक कर आ गया और अपना ही वीर्य चाटने लगा। उसकी जीभ मेरे चेहरे को गुदगुदाने लगी, मुझे बहुत ही आनन्द आया। मैं खड़ी हो गई, कुलदीप को मेरे चेहरे को भरपूर चाटने को मिल गया था। अभी भी वो मुझे चाट कम रहा था चुम्मा अधिक ले रहा था।
मैंने प्यार में भर कर उसे चिपका लिया और उसकी गर्दन में बाहें डाल कर झूल गई।
कुछ ही देर हम दोनों बाथरूम से बाहर आ गये और मैं अपने कपड़े उठाने लगी।
कुलदीप ने मुझे रोक लिया और कहा,”जानू हमरे बीच में कोई परदा तो नहीं है फिर कपड़ों की क्या जरूरत है, आज ऐसे ही , नंगे ही हम केन्डल लाईट डिनर करेंगे !”
मैं शरमा गई, हाय ऐसे कैसे नंगे होकर हम खाना खायेंगे। अपना गीला बदन लिये हुये मैं अपने बेड रूम में आ गई और आईने के सामने अपने आपको निहारने लगी। मैंने ऊपर एक झीना सा गाऊन डाल लिया। मैं आईने में अपना ही अक्स देख कर शर्माने लगी। सच में बहुत सेक्सी बदन थ मेरा … मेरी उभरी हुई चूचियाँ फिर उस पर पानी बूंदें … कोई भी मुझे चोदने को लालायित हो सकता था।
मैंने अपना गाऊन अपने शरीर पर कस कर लपेट लिया। बदन गीला होने से मेरी गीली चूचियाँ बाहर से ही अपना नजारा दिखाने लग गई थी। मैंने अपना सर झटका …
हाय मैं ये क्या सोचने लग गई। मेरे गीले बदन से गाऊन चिपक गया था। मैंने गाऊन उतारा और नंगी ही बैठक में आ गई। कुलदीप सोफ़े पर लेटा सुस्ता रहा था … उसका लण्ड मुरझाया हुआ था। मुझे देखते ही उसने मुझे अपनी तरफ़ बुलाया।
मैं जैसे ही उसके पास गई उसने मुझे अपने ऊपर गिरा लिया। उसका लण्ड फिर से खड़ा होने के लिये फ़ुफ़कार उठा। मैंने नजाकत देखते हुये उसके लण्ड को थाम लिया और उसके होंठो से होंठ मिला दिये। मुझे इस तरह नंगी घूमते देख कर वो एक बार फिर से भड़क गया।
“चलो हटो ना … अब खाना खा लें …”
कुलदीप ने मुझे छोड़ दिया।
तभी दरवाजे की घण्टी बजी। हम दोनों घबरा से गए।
“कौन है …?”
“मैं नीता …”
रात बहुत हो चुकी थी।
“रुको जरा मैं आई …”
मैंने तुरंत ही कुछ सोच लिया और कुलदीप को बाथरूम में भेज दिया। मुझे नीता को हीट में जो लाना था।
“नीता साथ में और कौन है? रात में रुकेगी ना?”
“अरे बाबा, दरवाजा तो खोल, मेरे साथ कोई नहीं है … तेरे पास ही तो आई हूँ !”
मैंने धीरे से दरवाजा खोला और यहाँ-वहाँ झांक कर देखा। कोई भी नहीं था, तब मैंने उसे अन्दर खींच लिया। मुझे पूरी नंगी देख कर वो चौंक गई। उसने पहली बार मुझे नंगी देखा था।
“ये क्या अक्सू …”
“अभी नहा कर निकली थी कि तू आ गई … इसलिये ऐसे ही आ गई !”
“आह्ह रे अक्सू … तू भी ना ऽऽ”
“देख मैं अच्छी लगती हूँ ना, मेरे ये सब देख … और बता …”
वो झेंप गई और शरमा गई …
“दीदी …बस है ना … ओह दीदी … आप तो बला की सुन्दर हैं !”
“चल, आज मौका है … तुझे एक सेक्सी बात जाननी थी ना … आज तुझे लाईव दिखा दूँ !”
“मैं समझी नहीं दीदी … क्या दिखाओगी …?”
“सब कुछ समझ जाओगी … देखो शर्माओ मत … बता भी दो अब …”
वो शर्मा उठी और मुस्कराते हुये धीरे से हां में सर हिला दिया। वो सब कुछ समझ चुकी थी कि मैं उसके साथ कुछ करने वाली हूँ। वो कुछ ऐसे ही विचार में डूबने सी लगी उसके मन में वासना का गुबार उठने लगा।
मैंने उसे कहा कि वो मेरे बेडरुम में चली जाये और चुपके से बिना आवाज के दरवाजे से झांक कर देखते रहना। वो कुछ असमन्जस में उठी और बेडरूम में चली गई।
मैंने कुलदीप को बाथ से बुला लिया … वो कुछ आश्चर्य से बोला,”तुम ऐसे ही उसके सामने चली गई … नंगी … वो गई क्या?”
“अरे वो मेरी पड़ोसन है … गई वो तो … चलो खाना खा लें …”
हम नंगे ही खाना खाने बैठ गये। खाना खाते समय वो मेरे स्तन दबा देता था, चुचूकों को ऐंठ देता था। मैं भी उसका लण्ड सहला देती थी। उसका भी खड़े लण्ड के साथ खाना मुश्किल हो रहा था। हमारी ये सब मस्ती नीता देख रही थी। मैं नीता को बार बार आँख मार रही थी। नीता भी ये सब देख कर उत्तेजित हो रही थी। कुलदीप ने एक ब्ल्यू फ़िल्म की सीडी निकाली और उसे लगा दी। पहले ही सीन में दो लड़कियां एक लड़के से चुदवा रही थी।
“कुलदीप, तुम्हारा मन एक साथ दो चूतों को चोदने का नहीं करता ?”
वो शरमा गया “अरे नहीं, तू ये क्या कह रही है …”
“अरे बता ना … बेचारा लण्ड तो कुछ कहेगा नहीं …”
“देख बुरा मत मान लेना … दो चूत चोदने का किसका मन नहीं करेगा … फिर एक साथ दो लड़कियाँ क्युँ चुदवायेगी, खैर ! मेरे ऐसे नसीब कहाँ …”
“अच्छा … मेरे साथ तुम्हें चोदने को दो चूत मिल जायें तो …?”
नीता सब सुन रही थी और उसे शायद ये मालूम हो गया था कि दूसरी चूत उसी की होगी।
पहले तो वो मना करता रहा पर मैंने उसे मना ही लिया। नीता अपने होंठों पर जीभ फ़िरा रही थी और अब अपने होंठ काटने लगी थी। उसकी चूत में रस चूने लग गया था।
मैं नीता को उत्तेजित करने के लिये कुलदीप का लण्ड पकड़ कर उसे हिलाने लगी। उसका लण्ड मस्ती से झूमने लगा। कड़क हो उठा … नीता अपनी बड़ी बड़ी आंखों से उसे बड़े मोहक तरीके से निहार रही थी। मैं नीता को आंख मार कर मुस्करा रही थी। मैंने उसकी आंखों में उत्तेजना देखी और उसे इशारा किया लण्ड पकड़ने के लिये। उसने जल्दी से सर हिला कर मना किया। फिर मैंने उसे लण्ड मुँह में लेने का इशारा किया। वो शरमा कर हंस दी … यानी कि हंसी और फ़ंसी। मैं समझ गई उसे ये सब पसन्द है। मैंने कुलदीप का लण्ड मुँह में लिया और चूसने लगी और उसे देखने लगी। फिर मैं अपनी अंगुली अपनी चूत में डाल कर हिलाने लगी।
वो उत्तेजना से बेहाल थी। मैंने उसे फिर इशारा किया कि वो बाहर आ जाये।
उसने शर्म के मारे फिर ना कर दिया। मुझे लगा कि उसे समझाना पड़ेगा। मैं अन्दर गई और उससे कहा तो बोली कि शर्म आती है। मैंने उसके बोबे दबाये और कहा,”क्यूँ ! मन चुदने का नहीं हो रहा है क्या ?”
उसका शर्माना उसकी हां कह रहा था। वो शरमा कर नीचे देखने लगी। उसने धीरे से सर हिला कर हां कहा। पर फिर कहा कि वो मुझे देख लेगा तो। मैंने उसे स्कीम बताई, मैं लाईट बन्द करके अंधेरा कर दूंगी फिर जब मैं घोड़ी बनूं तो मैं उसे तेरे पास ले आऊंगी वो तुझे चोद देगा।
कुछ भी ना बोलना और हां वो लण्ड मेरा है, उसे हाथ भी मत लगाना। यह कह कर दोनों ही हंस पड़ी।
मैं वापस आकर उसके लण्ड से खेलने लगी और वो मेरे चुचूकों से खेलने लगा। फिर एक हाथ मेरी चूत पर रख कर उसे रगड़ने लगा। फिर चूत में अंगुली डाल कर अन्दर-बाहर करने लगा। उसका लण्ड मेरी चूत को मिसकॉल मारने लगा। मैं सोफ़े पर झुक गई और वो मेरी चूत खोलकर उसे चाटने लगा। मैं सिसकियाँ भरने लगी।
नीता सिसक उठी, मेरी नजरें उसी पर थी। कुलदीप ने अपना पूरा लण्ड चूत में घुसा दिया। मेरे मुख से उफ़्फ़्फ़्फ़ निकल गई। उसके लण्ड को चूत में से निकाल कर मैंने उसे अपने मुख में भर लिया और चूसने लगी। वो तड़प उठा और बोला,”अक्सू … आज तो अपनी गाण्ड प्यारी के दर्शन करा दे …”
मुझे भी बहुत समय हो गया था गाण्ड मरवाये सो मैंने भी लण्ड को गाण्ड का रास्ता दिखा दिया।
गाण्ड गीली होने से उसका लण्ड सट से छेद में घुस पड़ा। कुलदीप बोला,”अरे चूत इतनी टाईट कैसे हो गई?”
मैं हंस पड़ी। उसे मालूम था या वो अन्जान बन रहा था।
“सुनो जनाब, आपका लौड़ा मेरी गाण्ड में है, तुम्हें पता ही नहीं चला कि लौड़ा तुमने किस छेद में डाला?”
यह सुन कर वो खुश हो गया। मैं गाण्ड चुदाने के नशे में डूब गई। तभी मुझे नीता का ध्यान आया। मैंने घूम कर उसे देखा तो वो अपनी चूत दबा कर सिसकियाँ भर रही थी।
मैंने कुलदीप को देखा वो मस्ती में मेरी गाण्ड चोदे जा रहा था।
“सुनो बेड रूम में चलो, तुम्हें एक सरप्राईज देना है !”
” हाय, वो सब बाद में ! पहले पानी तो निकाल दूं !”
“नहीं, पहले आओ तो … चलो …!” मैं उसे धकेलते हुये बेडरूम में ले आई। तभी उसे नीता की एक झलक मिली, नीता तुरन्त ही परदे के पीछे छिप गई। उसे लगा कि शायद उसे भ्रम हुआ है। वो बिस्तर पर लेट गया। मैं उसके ऊपर लेट गई और उसकी आंखों पर अपनी चुन्नी बांध दी।
“अब रुको, मैं अभी आई …” मैंने लाईट बन्द कर दी। मैंने नीता को बुलाया और उसे सब समझा दिया। नीता ने उसके खड़े लण्ड को धीरे से अपने मुँह में ले लिया। पर उसकी स्टाईल अलग थी … उसका तरीका अलग था।
“जल्दी कस कर चूसो ना …” मैंने नीता को इशारा किया। उसने लण्ड मसलते हुए जोर से चूसने लगी। फिर भी उसमे मेरी वाली बात नहीं आ रही थी। पर नीता को तो मस्ती चढ़ने लगी थी। उसकी आंखें बंद हो चली थी। यह देख कर मैंने लाईट जला दी। लाईट जलते ही नीता ने मेरी तरफ़ देखा। मैंने इशारा किया … चूसे जाओ …
मैंने नीता के पूरे कपड़े उतार दिये और उसे पूरी नंगी कर दिया। मैंने जोश में उसकी चिकनी चूत में अंगुली डाल दी, वाह क्या चूत थी उसकी …बहुत ही प्यारी सी, चिकनी … गुलाबी उसमें काम-रस भरा हुआ। मैंने उसकी उसकी चूत में अपने होंठ चिपका दिए और उसकी रस भरी चूत का पान करने लगी।
“बस, अक्सू … अब चूत में लण्ड डाल दो …” मैंने नीता को इशारा किया तो वो उठ कर उसके लण्ड पर बैठ गई। उसका लण्ड नीता की चूत में घूत में घुसने लगा।
“आज क्या हो गया है … तुम्हारी चूत तो अलग सी लग रही है ?”
नीता के चेहरे पर शर्म की लालिमा तैर गई। मैंने जवाब दिया,”अच्छा मजाक कर लेते हो … जरा लौड़े का कमाल तो दिखाओ !”
नीता शरमाते हुये अपनी चूत ऊपर नीचे करने लगी और बड़े प्यार से चुदने लगी।
मैं भी कुलदीप के दोनों और टांगें करके खड़ी हो गई और अपनी चूत नीता के मुख से सटा दी। नीता चुदते हुये मेरी चूत चूसने लगी। बड़ी खूबसूरत चुदाई चल रही थी। नीता अब सम्पूर्णता की ओर बढ़ने लगी थी। उसने धीरे से कहा,”दीदी, मैं तो आह्ह्ह गई …”
“रुक जा तू धीरे से उठ जा ” मैं अब कुलदीप के लण्ड पर चढ़ गई और लण्ड पूरा घुसा लिया। नीता को सामने खड़ी कर लिया और उसकी चूत में दो अंगुलियाँ डाल कर उसकी चूत चोदने लगी। वो झड़ने लगी … उसका पानी निकल गया। वो शांत हो गई। अब नीता धीरे से वहां से हट गई। मैं घोड़ी बन गई और कुल्दीप मेरी चूत चोदने लगा। मेरी चूत अब रिसने लगी थी। मैं आनन्द से सराबोर हो चुकी थी।
मैं भी अब झड़ने के कगार पर थी। मजे लेते लेते मन कर रहा था कि कभी ना झड़ूँ …
पर आखिर में मेरा पानी छूट ही गया। मैंने जल्दी से उठ कर अपनी चूत कुलदीप के मुख से सटा दी … उसने मेरे रस का स्वाद लिया और जोर से चूत को चूसने लगा। मैं चूत चुसाने के बाद उल्टी हो कर उसके खड़े लण्ड का वीर्य निकालने के लिए उसे चूसने लगी। नीता की जीभ भी लपालपा उठी, मैंने नीता को पूरा मौका दिया चूसने का। कुलदीप कुछ ही देर में नीता के मुख में ही झड़ गया। नीता को थोड़ा अजीब लगा पर मैंने उसे पूरा पी जाने कहा। उसने पूरा लण्ड साफ़ किया और उठ कर बाहर चली गई। मैंने कुलदीप से कहा कि मैं अभी मुँह साफ़ करके आती हूँ …
उसकी आंखों से मैंने अपनी चुन्नी खोल दी। कुलदीप मन्द-मन्द मुस्करा रहा था।
मैं बाहर आई तो नीता का चिकना सुघड़ शरीर देख कर दंग रह गई। मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसकी चूत में अंगुली डाल दी। वो हंस पड़ी। फिर उसे हटते ही मैंने अपना मुख भी साफ़ कर लिया। नीता सोफ़े पर चादर डाल कर सो गई। मैं भी भीतर जाकर कुलदीप का लण्ड पकड़ कर सो गई।
सवेरे उठते ही मुझे झटका लगा। कुलदीप मेरे साथ नहीं था। मैंने धीरे से उठ कर परदे से झांका तो वो नंगा खड़ा था और नीता के नंगे बदन को देख कर मुठ मार रहा था। नीता की चादर नीचे गिर गई थी। मैंने धीरे से जाकर कुलदीप का हाथ लण्ड से छुड़ाया और बताया कि वो रात उससे चुद चुकी है। उसे कहा कि अब देर किस बात की है … अब खुल कर चोद डालो …
कुलदीप ने मेरी तरफ़ देखा और धीरे से उसके पास आ गया और उसकी चूत पर अपना लण्ड लगा दिया। थोड़ा सा जोर लगाते ही वो अन्दर उतर गया।
नीता जाग गई … और कुलदीप को अपने ऊपर पा कर जैसे धन्य हो गई। उसके हाथ कुलदीप की कमर पर लिपट गये, दोनों एक होने के लिये मचल पड़े। उसकी नजर ज्योंही मुझ पर पड़ी … वो सब कुछ समझ गई। मुझे आंखों ही आंखों में धन्यवाद कहा और अपनी आंखें बंद कर ली … नीता की शरम अब जा चुकी थी … उसने अपनी टांगें ऊपर कर ली और कुलदीप का एक नया सफ़र आरम्भ हो गया।
मैंने ईश्वर को अपनी इस सफ़लता पर धन्यवाद किया। और रोज़मर्रा के कार्य पर लग गई। आज तो चुदाई का आगाज था … आगे जो चुदाई होनी थी, उसे सोच सोच कर नीता बेहाल हुई जा रही थी। Hindi Sex Stories
मेरी नौकरी शहर में लगने Antarvasna Sex Stories के कारण मेरे भैया ने मुझे शहर में बुला लिया था। मैं एक प्राईवेट संस्था में था जबकि भैया एक फ़ेक्ट्री में ऊंचे पद पर थे। मैं गांव से शहर आ गया था। भाभी ने मुझे अपने घर में बहुत ही प्यार से रखा था। मेरी शादी की बात चल रही थी। लड़की गुजरात से थी, उसका नाम प्रेरणा था। उसकी फोटो तो बहुत ही आकर्षक थी। अक्सर भाभी मुझे लड़की के बारे में कुछ कह कर छेड़ती रहती थी। यूं तो देवर भाभी की मजाक तो चलती ही रहती थी पर उस लड़की का जिक्र आते ही जाने क्यूँ मेरे मन में कोमल भावनायें जाग जाती थी। कितनी बार तो यह सोच सोच कर ही लण्ड खड़ा हो जाता था कि जब मैं उसे अपने नीचे दबा कर चोदूंगा तो कैसा लगेगा, उसकी चूंचियाँ दबाऊंगा तो…. मेरे दिल में इस तरह के विचार आते रहते थे। कभी कभी तो ऐसा लगने लगता था कि काश एक बार भाभी मान जायें तो मैं भी चोदने का मजा भरपूर ले लूँ। बहुत पहले मेरी पास ही रहने वाली पड़ोसन ने मुझे पटा कर चुदवाया था तब मुझे बहुत मजा आया था। पर वो कुछ ही दिन बाद दूसरे शहर चले गये थे। पर वो पड़ोसन मुझे चोदने का एक चस्का लगा गई थी।
मुझे अब भाभी से सेक्स की बाते करने में बहुत मजा आता था। भाभी भी रस ले लेकर सेक्स की बातें करती थी। अक्सर मुझसे भाभी प्रेरणा के बारे में पूछती रहती थी। मुझे मुझे ऐसा मह्सूस भी होता था कि भाभी शायद मुझे पटाना चाहती हैं क्योंकि वो आजकल अपने नीचे गले के ब्लाऊज पहनने लग गई थी। जिसमें से उनकी चूंचियां छलकी पड़ती थी। उनके गोल गोल मस्त उभार मुझे बेचैन कर देते थे। पर वो हमेशा अपने को इससे अन्जान दर्शाया करती थी। मेरा लण्ड कई बार कड़क उठता था। अब तो भाभी का अंग अंग मुझे चुदने को बेताब लगता था। पर ये सब शायद मेरे मन का भ्रम था। वो सब इससे अनजान ही थी। बस मुझे छेड़ने के लिये मुझसे ऐसी बाते करती थी, जाने यह सच था या नहीं ?
मैंने अब कई बार भाभी से पूछा भी था कि भाभी सुहाग रात कैसी होती है, उसमें क्या करते हैं।
भाभी कहती थी कि समय आयेगा तब तुम खुद ही सीख जाओगे। मैं भाभी को खोलने में प्रयास रत था। यह भी पूछ लेता था कि मुझे कुछ तो बताओ ना…. रात को क्या क्या करते हैं।
भाभी मुझे यूँ ही टाल देती थी कि सब बाद में बताउंगी, थोड़ा सबर रखो।
उन दिनों भैया कुछ दिनों के लिये लखनऊ गये हुये थे। आज तो भाभी की उत्तेजक सेक्स की बातें मुझे रात को सोच सोच कर नींद नहीं आ रही थी। मन बहुत बेचैन हो रहा था। मेरा लण्ड रह रह कर कड़क उठता था और मेरा पजामा तम्बू बन जाता था। मुझे लगता कि यदि भाभी चुदने के राजी हो जायें तो मेरा पूरा रस ही उनकी चूत में उतार दूँ। मेरा मन डोल उठा, जाने मेरे मन में क्या आया कि मैं चुपके से भाभी के कमरे की ओर बढ़ गया।
दरवाजा हमेशा की तरह खुला हुआ था। धीमी लाईट जल रही थी। भाभी एक पेटीकोट में सो रही थी जो अभी काफ़ी ऊपर उठा हुआ था। ब्लाऊज की जगह एक ढीला सा टॉप पहना हुआ था। मेरा लण्ड बहुत ही अधीर हो उठा था, पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने अपना साहस बटोरा और कमरे में कदम रखा। तभी भाभी ने करवट ली, मेरी सांसे जैसे अटक गई। लण्ड ठण्डा सा होने लगा। पर कुछ ही पलों में मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा।
मैं भाभी के पलंग के पास आ गया, भाभी की चिकनी मांसल और गोरी जांघें कुछ हद तक दिख रही थी, उनके स्तन भी दोनों बाहों के बीच में भिंच कर बाहर आने को बेताब थे। मेरे हाथ बरबस ही उनकी जांघों पर आ गये और उन्हें सहलाने लगे। भाभी थोड़ी सी कसमासाई और दूसरी तरफ़ करवट ले कर सो गई। पेटीकोट फिर थोड़ा सा और उठ गया, मैंने नीचे झुक कर पेटीकोट के अन्दर झांका तो पीछे से उनकी चूत के दर्शन हो गये। मैं तो आंखे फ़ाड़े चूत को देखता ही रह गया।
“राजू, अरे वहां तू क्या कर रहा है….?” भाभी नींद से जाग गई थी, मैं घबरा गया।
“नहीं …. कुछ नहीं भाभी …. वो चू…. चू…. मेरा मतलब कोई कीड़ा था, हटा दिया मैंने !” मेरी मुख सूखने लगा था। पसीना छलक आया था।
“आ जा बैठ जा…. कुछ काम था क्या….”
“नहीं वैसे ही आ गया था।”
” मुझे तो नींद आ रही है…. तू भी मेरे पास ही लेट जा…. और जो तुझे कहना कह डाल !” भाभी ने फिर से दूसरी ओर करवट ली और पांव पसार कर लेट गई। भैया की जगह मैं लेट गया।
“चल लाईट बन्द कर दे …. और बता …. नींद नहीं आ रही है क्या?”
मैंने लाईट बन्द कर दी और भाभी की बगल में लेट गया। मैं भाभी को हल्के अंधेरे में देख रहा था। मेरा लण्ड फिर से तन उठा। कुछ देर तक तो मैं बेचैन सा रहा, फिर ना जाने मुझे क्या हुआ…. मैंने अपना सयंम खो दिया और पीछे से भाभी से लिपट पड़ा। भाभी इस अचानक हमले से घबरा गई। पर जल्दी ही सब समझ गई।
“राजू, क्या कर रहा है…. देख मैं तेरी भाभी हूँ ….!” भाभी ने कसमसाते हुये कहा।
“प्लीज भाभी, मुझसे रहा नहीं जाता है…. आप बहुत प्यारी लगती हैं…. !” मैं हांफ़ता हुआ बोला। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी थी, भाभी की चूंचियाँ दोनों हाथों से दबा डाली। भाभी कराह उठी।
“अरे छोड़ मुझे …. चल हट जा….!” भाभी मुझे हटाती हुई कहने लगी। पर मुझे कहाँ होश था। भाभी जैसे ही मेरी तरफ़ पलटी, मैंने उनका पेटीकोट ऊंचा कर दिया और अपना लण्ड निकाल कर उनकी चूत पर दबा दिया। भाभी के चूतड़ बुरी तरह से दबा कर अपने लण्ड की ओर खींच लिया। मैं भाभी से लिपट पड़ा और अपना लोहे जैसा लण्ड चूत के आस पास मारने लगा। एक बार तो लण्ड चूत में घुस भी गया था पर भाभी ने एक झटके से उसे निकाल दिया। तभी मुझे एक तमाचा मार दिया। भाभी तमतमा उठी।
“साला जंगली ….! शरम भी नहीं आती …. इतनी चोट लगा दी !” तमाचा पड़ते ही मुझे जैसे होश आ गया और मैं भाभी के ऊपर से हट गया। मैंने शरम के मारे अपना मुख छुपा लिया।
मेरी आंखों में आंसू निकल आये। भाभी ने हाथ बढ़ा कर लाईट जला दी…. मुझे रोता देख कर उन्हें दया भी आई।
“तू यह क्या करने लगा था…. भला ऐसे भी कोई करता है?” भाभी ने प्यार से मुझे झिड़का। मैं उठ कर जाने लगा ।
“भाभी, माफ़ कर देना, मन में पाप आ गया था….” मैंने रोते हुये कहा। फिर मैं अपने आप ही ग्लानि में डूब गया और भाभी के कमरे से भाग कर अपने कमरे में आ गया। मेरे दिल में धुकधुकी लगी हुई थी कि अब जाने भाभी क्या करेंगी और मुझे मार पड़ेगी। मुझे अपनी नई नौकरी छोड़ कर वापस जाना पड़ेगा। मैं सबकी नजरों में गिर जाऊंगा …. मैं अनायास ही फ़फ़क कर रो पड़ा- हाय मैंने ये क्या कर दिया।
तभी भाभी कमरे में आ गई। मुझे रोता देख कर भाभी ने हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर ही बैठा लिया। “तू तो पागल है…. रो मत …. मर्द कभी रोते हैं …. ?” भाभी ने मेरे सर को अपनी छातियों में भींच लिया, जानकर के अपनी चूंचियों में मेरा चेहरा दबा दिया और बालो में हाथ फ़ेरते हुये बोली,”राजू, मैं तुझे इतनी अच्छी लगती हूँ….?” भाभी ने जैसे मुझे प्यार से बहलाया।
” हां भाभी, आप मुझे बहुत प्यार करती हैं ना…. बस दिल में पाप आ गया….!” उनकी छाती ने मेरा मन फिर से विचलित कर दिया। अपना चेहरा मैं धीरे धीरे उनके स्तनो से रगड़ने लगा। यह मन भी बहुत अजीब है …. अभी ग्लानि से भरा हुआ था अब फिर से वासना छाने लगी थी।
“आह…. तुम फिर से देखो कुछ कर रहे हो ना …. राजू तुम सुधरोगे नहीं !” भाभी ने एक तड़प भरी आह सी भरी। मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो भाभी ने आंखें बन्द कर रखी थी। उनका वासना से भरा चेहरा देख कर मेरा डोल उठा। अनायास ही मेरे होंठ भाभी के होंठों से चिपक गये। इस बार भाभी ने मेरे मुँह को अपने होंठों से भींच लिया और प्यार करने लगी। वो सिसक उठी,”अरे पागल…. भाभी तो तेरी ही हूँ ना…. सभी कुछ प्यार से नहीं कर सकता है क्या…. देख तूने मुझे चोट लगा दी…. फिर वहां से भाग के भी आ गया !” भाभी ने शिकायत की।
“भाभीऽऽऽऽ, आप तो गुस्सा हो रही थी ना….?” मेरा मन अब खुशी से भर उठा था।
“हां जंगलीपने से नाराज हो रही थी…. ऐसे ही प्यार से कर ना….तुझे भी मस्ती आयेगी और मुझे भी सुख मिलेगा !” मेरा मन हल्का हो गया। मन में खुशी भरने लगी। मेरा बदन अब वासना से भरने लगा था। लण्ड ने एक बार फिर से अंगड़ाई ली और सीधा खड़ा हो गया। जैसे कि ग्रीन सिग्नल का इन्तज़ार कर रहा हो।
“भाभी सच में आप बहुत ही अच्छी हैं…. आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूंगा !” मैंने प्यार से भाभी की चूंचियां सहलाते हुये कहा। जीभ से बार बार भाभी के होंठो को चाट लेता था। भाभी की मस्त चूचियाँ कड़ी हो रही थी, चुचूक भी कठोर हो चुके थे।
“देवर जी, शरम आती है …. कहूँ क्या…. आप मेरी नीचे वाली को प्यार करेंगे?” भाभी वासना भरी आवाज में सकुचाते हुये बोली।
मुझे अब बदन में सनसनी सी होने लगी थी। मुझे भाभी की चूत देखने की तीव्र इच्छा होने लगी थी। भाभी के इस इशारे ने मेरा मन मोह लिया और मैंने भाभी का पेटीकोट ऊपर कर दिया और नीचे साफ़ और चिकनी चूत के पास अपने अधरों को धीरे से लाकर चूमने लगा। चूत में से एक महक आ रही थी, जैसे कि मुझे पास बुला रही हो, बुलावा स्वीकार कर के मैंने चूत को भी प्यार किया, दाना भी मुँह में लेकर चूसा। फिर जीभ चूत में घुसा कर नमकीन रस का आनन्द लेने लगा। भाभी ने अपना पेटीकोट ऊपर से खींच कर उतार दिया। मैंने भी अपना पजामा उतार दिया। वो अपनी चूत को धीरे धीरे आगे पीछे करके पूरा आनन्द ले रही थी। मेरी जीभ भी लपलपा कर सारी चूत को चाट रही थी।
फिर भाभी ने मुझे कहा,”देवर जी आपके केले में कितना रस भरा है…. जरा मुझे चखाओ ना….!” भाभी ने मेरे मोटे कड़क लण्ड की ओर इशारा किया। ये सब मैं पहली बार कर रहा था इसलिये एक नया मजा आ रहा था। मैंने अपना लण्ड देखा और पूछा,”भाभी…. साफ़ कहो ना …. क्या करना है….” मेरा लण्ड रह रह कर कड़क रहा था। भाभी ने अंगुली हिला कर मुँह में डाल दी। मैं शरमा गया। मैं धीरे से उठा और अपना लण्ड भाभी के मुख के पास ले गया। भाभी ने मेरे चूतड़ पकड़ कर अपनी ओर खींच कर लण्ड अपने मुँह में ले लिया। होंठो का नरम सा अहसास, जीभ की गुदगुदी मेरे सुपाड़े को आनन्द देने लगी। मेरा लण्ड और फ़ूल उठा।
भाभी ने मेरे लण्ड का डण्डा थाम कर पूरा सुपाड़ा मुँह में ले लिया और जोर से चूसने लगी। मेरे लण्ड में जैसे आग लग गई। मेरे चूतड़ आगे पीछे हो कर उनका मुँह चोदने लगे। मुझे बहुत ही मजा आने लगा,”भाभी…. आप सच में बहुत प्यारी हैं …. अब मुझे चोदने दो ना….!”
मेरी सीत्कार बढ़ गई थी। भाभी को भी चुदने की लगी थी, सो उन्होंने मुझे ऊपर से हटाया और अपनी दोनों टांगें ऊंची करके आंखें बंद करके चुदने का इन्तज़ार करने लगी।
जैसे ही मेरा लण्ड और भाभी की चूत मिली लगा आग से आग मिल कर और भड़क उठी…. लन्ड चूत को चीरता हुआ अन्दर जाने लगा और आग से जैसे पानी बरसने लगा…. दोनों मिलते ही जैसे एक दूसरे को निगलने लगे। मेरा लण्ड वासना भरी मिठास से भर उठा, और चूत मेरे लण्ड को जैसे लपेटने लगी। मुझे जैसे होश ही नहीं रहा। चूतड़ ऊपर उठ कर आगे पीछे चूत पर रगड़ खाने लगे। लण्ड जोर से अन्दर जाता और फिर बाहर आकर फिर से अन्दर जा कर अपना सर पटकता। भाभी सीत्कारें भरने लगी। मेरी भी सिसकारियाँ निकल पड़ी जैसे कि कमरे में कोई घमासान छिड़ा हुआ हो। भाभी ने मुझे कस कर लपेटा और मुझे नीचे धकेल कर खुद ऊपर आ गई और मेरे ऊपर चढ़ बैठी। ऊपर से भाभी ने बैठे बैठे ही एक जोरदार शॉट मारा और खुद ही चीख पड़ी। लण्ड को पूरा मजा आ गया था। भाभी की चूत में लण्ड गहरा बैठ गया था, शायद अन्दर तक चूत फ़ाड़ कर लण्ड का साईज़ ले लिया था। भाभी का ऐसा ही दूसरा धक्का आया और फिर से चीख उठी…. अरे ये तो आनन्द भरी चीख थी। मेरा लण्ड अन्दर तक ठूंस ठूंसकर ले रही थी, उसमें ही उनको मजा आ रहा था। उनके लगातार जोर से मचल मचक कर लण्ड लेने से मैं भी अति उत्तेजित हो गया था।
“देवर जी, अरे इतने दिन कहाँ रहे थे…. मेरी तो लगता है आज ही इच्छा पूरी हुई है !”
“भाभी…. और मारो ना झटके …. हाय मुझे तो देखो क्या हो रहा है…. और मारो चूत को!”
“साले, अब तो तुझे रोज ही चोदा मारुंगी…. हाय रे क्या लण्ड है…. खींच मेरी चूंची को खींच दे रे !” भाभी मस्ती में झूम रही थी। चुदने का पूरा मजा ले रही थी। मुझे भी ऐसा जोरदार मजा कभी नहीं आया था। अचानक भाभी मुझसे लिपट गई और चूत का पूरा जोर लण्ड पर लगाने लगी। जोर लगाते लगाते उनके मुँह से आह निकलने लगी और उनके होंठ मेरे होंठो से जोर से चिपक गये। इसका असर चूत पर हुआ और और उसमें लहरें चलने का अहसास होने लगा। वो बार बार चूत का जोर लण्ड पर लगाती और आह रे …. पानी छोड़ने लगी। भाभी झड़ रही थी।
मैं भी अपना लण्ड को चूत में पूरा घुसेड़ कर दबाने लगा और फिर अन्दर ही लण्ड ने अपना रस छोड़ दिया। अब हम दोनों आपस में जोर लगा कर अपना अपना वीर्य निकालने में लगे थे। भाभी मुझसे लिपटी हुई पड़ी थी और मैंने उन्हें अपनी बाहों में लपेट रखा था। दोनों ही अभी भी झड़ रहे थे, दोनों के चूतड़ एक दूसरे के चूत और लण्ड दबा रहे थे और अपना पूरा माल निकालने में लगे थे।
भाभी और मैं, दोनों ही नंग धड़ंग एक दूसरे से चिपके हुये बिस्तर पर पड़े हुये थे। कुछ ही देर में भाभी के खर्राटो से पता चल गया कि वो सो गई हैं। मुझे पूर्ण सन्तुष्टि हो चुकी थी, भाभी भी निहाल हो कर सो चुकी थी। मैंने भाभी के नंगे शरीर को देखा और मुस्करा उठा…. अब ये बदन मेरा था…. । मैं बिस्तर से उतरा और एक पतली साफ़ चादर भाभी के शरीर पर डाल दी और स्वयं कपड़े पहन कर सोफ़े पर जाकर सो गया। Antarvasna Sex Stories
मेरी कहानी में आपको रोमांच भरा सेक्स देखने को मिलेगा। मैं अपनी कार में जंगल से गुजर रहा था, बारिश हो रही थी और रात भी घिरने लगी थी. तभी सड़क पर कोई जानवर आया और मेरी कार खड्डे में उतर गयी.
मेरा नाम अरमान है. मैं राजस्थान के कोटा शहर का रहने वाला हूँ। मेरा कद 6 फीट और उम्र 22 साल है. अच्छी बॉडी वाला लड़का हूँ।
मैं दूसरों की तरह यह तो नहीं कहूंगा कि मेरा लण्ड 8 इंच का है, मगर यह जरूर कहूंगा कि मेरा लंड किसी भी औरत और लड़की को संतुष्ट कर सकता है।
वो बरसात के दिन थे. मुझे किसी काम से मेरे शहर से 200 किलोमीटर दूर जाना था। मैं शनिवार को आपनी कार से निकल पड़ा।
मौसम बहुत सुहाना था तो मैंने रास्ते में वाइन शॉप से एक बीयर ले ली और कार में ही उसे पीने लग गया और कार भी चला रहा था।
मैं अपने शहर से करीब 80 किलोमीटर दूर आ गया था. रास्ते में बरसात बहुत तेज हो गयी थी। बीयर भी अपना असर दिखा रही थी. हल्का नशा हो रहा था.
बरसात तेज होने के कारण मुझे रोड साफ़ दिखाई नहीं दे रहा था।
रास्ते में बहुत डरावना जंगल था. दूर-दूर तक सुनसान रास्ता था और रोड पर गाड़ियां भी बहुत कम चल रही थीं।
रात के करीब 8 बज चुके थे और मुझे भूख लग रही थी, मगर आस-पास दूर-दूर तक कुछ नहीं था।
तभी अचानक मेरे सामने जंगल में से भागता हुआ एक नीलगाय (हिरन जैसा जानवर) मेरी कार के सामने आ गया.
मैंने एकदम हड़बड़ा कर गाड़ी को साइड में घुमा दिया.
मेरी गाडी स्पीड में ही रोड से नीचे उतर कर झाड़ियों में घुस गयी और पीछे का टायर एक गड्ढे में फंस गया और गाड़ी बंद हो गयी।
मैंने मन ही मन ऊपरवाले को कोसा कि कैसे सुनसान रोड पर गाडी ख़राब करवा दी. अब आस-पास दूर-दूर तक इंसान तो दूर, कोई झोपड़ी भी नहीं दिख रही थी.
मैंने सोचा चलो जैसे तैसे रात कार में ही गुजारते हैं. सुबह किसी को ढूंढ कर निकलने का जरिया खोज लूंगा।
लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
मेरे दिमाग में आया कि चलो रात यहाँ बिताने से अच्छा है कुछ दूर तक चला जाये. क्या पता कोई घर या झोपड़ी मिल जाये?
मैंने कार को लॉक किया और चल पड़ा जंगल की ओर.
फिर अचानक से बहुत तेज बिजली कड़की और मुझे एक पुरानी फिल्मों की तरह की एक हवेली नजर आई मैंने सोचा कि चलो रात तो बिताई जा सकती है।
मैं उस हवेली की तरफ बढ़ चला.
अंधेरा होने की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था.
मैं हवेली के पास पंहुचा और मैंने आवाज लगाई पर अंदर से कोई आवाज नहीं आई.
फिर मैंने जोर से दरवाज़े को बजाया मगर फिर भी कोई आवाज नहीं आई.
मैंने सोचा यहाँ कोई नहीं रहता, तो मैं जैसे ही वापस जाने के लिए मुड़ा, अचानक हवेली की लाइट जली और अंदर से आवाज आई- कौन है?
वो आवाज़ इतनी मधुर थी कि मैं उस औरत की सुंदरता को सिर्फ कल्पना कर रहा था कि इसकी आवाज इतनी सुन्दर है तो यह कितनी सुन्दर होगी?
तभी फिर से अंदर से आती आवाज ने मेरी कल्पना को तोड़ा- कौन है?
मैंने जवाब दिया- मेरी कार पास में ही ख़राब हो गयी है और रात भी बहुत हो गयी है इसलिये मैं आपके यहाँ रात गुजार सकता हूं क्या?
अंदर से आवाज आई- मैं तुम पर यकीन क्यों करूं?
मैंने फिर अपनी कार ख़राब होने की दास्तान सुनाई.
तभी हवेली का दरवाजा खुला और तभी अचानक जो मैंने देखा उसे मैं कभी नहीं भूल सकता.
काली साड़ी में मेरे सामने खुद काम की देवी खड़ी थी. वैसी सुंदरता मैंने मेरी जिंदगी में कहीं नहीं देखी थी. जैसे स्वर्ग की अप्सराएं भी इसके सामने फीकी पड़ जायें।
उसके जिस्म को शब्दों में बयां करना नामुमकिन सा था. कद 5 फीट 8 इंच.
चेहरा ऐसा जैसे कोई भी देखते ही मोहित हो जाये.
होंठ सेब की फ़ांकों की तरह लाल, जिस्म का आकार 34, 30, 34 था.
उस काम की देवी के पास से ऐसी खुशबू आ रही थी कि बस मैं उसके वश में होता जा रहा था.
ऐसी तराशी हुई हुस्न की मूरत थी कि खुदा ने अपनी सारी सोच इसे बनाने में ही लगा दी हो।
मैंने मन ही मन ऊपरवाले को शुक्रिया कहा कि ऐसी सुंदरी के दर्शन करवाए जिसे असल जिंदगी में देखना ही जिंदगी धन्य कर दे।
तभी उसकी आवाज ने फिर से मेरी कल्पना की दुनिया से मुझे जगाया- यहाँ ही खड़े रहना है या अंदर भी आओगे?
मेरे गले से धीमी सी आवाज निकली- हाँ जी.
उसे देखते ही सारे अरमान जाग गए. मैंने मन ही मन ऊपरवाले को धन्यवाद दिया।
मेरे मन में कुछ और सवाल भी थे कि इतने सुनसान जंगल में यह अकेली और यहाँ कोई नहीं?
अचानक मुझे गीले कपड़ों की वजह से छींकें आने लग गयीं तो उसने कहा- जाइये कपड़े बदल लीजिये.
मैंने कहा- मेरे पास कपड़े नहीं है. उसने कहा कि मेरे पति के कपड़े दे देती हूं मैं आपको. आप जाइये फ्रेश हो जाइये।
मैं जाकर फ्रेश हो कर आ गया और मैंने उसके पति का पायजामा और टी-शर्ट पहन ली.
फिर भी मेरे मन में बहुत से सवाल थे तो मुझसे रहा नहीं गया. मैंने उनका नाम पूछा तो उन्होंने अपना नाम अक्षिता बताया और मैंने पूछा कि इस सुनसान जंगल में आप अकेली वो भी इतने बड़े घर में?
तो उन्होंने मुस्कुरा कर कहा- ये मेरे पति के पुरखों की हवेली है और वो एक वन विभाग में अफसर हैं उनकी पोस्टिंग इसी जंगल में हो गयी तो हम यहाँ आ गये.
उसने आगे बताया कि घर के नौकर अपने गांव गये हैं और मेरे पति मीटिंग करने कुछ दिनों के लिए बाहर गए हैं.
फिर मैंने उसको अपना नाम बताया।
उन्होंने कहा- मैं अभी खाना लगाती हूं. आप खाने की टेबल पर चलिये.
फिर हमने साथ में खाना खाया. फिर अक्षिता ने बर्तन किचन में रखे.
जब वो चलती थी तो ऐसे लग रहा था कि कोई हिरणी अपनी सुंदरता पूरे जंगल में बिखेर कर जा रही हो।
मैं बार-बार ऊपरवाले को इस रात के लिये धन्यवाद दिये जा रहा था।
अक्षिता ने फिर मुझसे पूछा- आप कुछ पीएंगे?
मैंने अचानक ही कह दिया- मेरे काम की चीज़ अभी यहाँ नहीं मिलेगी.
तो वो मुस्कुरा दी और उनके पति की एक रम की बोतल ले आयी। जिसे देखते ही ऐसा लगा कि प्यासे को रेगिस्तान में शरबत मिल गया हो।
फिर कुछ देर के बाद वो कपड़े बदल कर आई तो मैं उसे देखता ही रह गया.
ब्लैक कलर की जालीदार नाईटी में वो किसी नामर्द का भी लण्ड खड़ा करवा दे. उसके सेंट की खुशबू मुझे मदहोश कर रही थी.
एक तो बरसात की रात … ऊपर से काम की देवी मेरे साथ में … बहुत मुश्किल से खुद पर काबू करके बैठा था मैं। वो 2 गिलास ले कर आई और कुछ आइस क्यूब भी साथ में ले आई.
मैंने पूछा- आप भी ड्रिंक लेती हैं?
तो उसने कहा- हां कभी-कभी ले लेती हूं.
मैं खुद की किस्मत पर यकीन नहीं कर पा रहा था। बस कामदेव से यही कह रहा था कि कोई प्यार का तीर इस पर भी चला दीजिये।
उसने टीवी चालू किया और मैंने 2 छोटे पेग बनाये। हम दोनों ने ड्रिंक खत्म की और टीवी पर कोई रोमांटिक मूवी चल रही थी. दोनों पर रम अपना असर दिखा रही थी.
तभी अचानक बहुत तेज बिजली की आवाज आई और वो डर कर मेरी बांहों में आ गयी.
डर से दुबक कर उसका मुंह मेरी छाती पर आ गया था. मेरा एक हाथ उसकी कमर पर था।
मैं धीरे-धीरे उसकी कमर सहलाने लग गया और वो भी मेरे आगोश में आ रही थी। मेरी बढ़ी हुई धड़कन की आवाज बिल्कुल साफ़ सुनाई दे रही थी।
बड़े ही प्यार से मैंने उसे उठाया और उसके साथ खड़ा हो गया.
तभी अचानक फिर बिजली की आवाज हुई. वो फिर मुझसे चिपक गयी और मेरा लिंग महाराज, जो कि तन गया था, उसके बदन से सट गया था. वो भी उस पल का मजा ले रही थी।
मैंने उसके फूल जैसे कोमल चहरे को उठाया.
उसकी आँखों में कामवासना की झलक साफ दिख रही थी.
मैंने अपने होंठ उसके लाल होंठों पर धीरे से रखे और दोनों के होंठ एक दूसरे से रेस लगा रहे थे कि कौन किसे सबसे ज्यादा प्यार करता है!
मैं मन ही मन सोच रहा था कि बस ये समय यहीं रुक जाये और वो एक ऐसा सुखद अनुभव था जिसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता।
जैसे ही मैंने उसे खुद से अलग किया तो उसने एक सवाल वाली निगाह से मुझे देखा।
मैं उसकी नाइटी को धीरे-धीरे ऊपर करने लगा और मैं उसकी सुंदरता का गुलाम बनता जा रहा था.
मैंने उसकी नाइटी पूरी उतार दी.
वो अंदर लाल रंग की ब्रा और पेंटी में संगमरमर की मूरत के समान चमक रही थी।
मैं ऊपरवाले से मन ही मन कह रहा था कि मैं इस रात के लिए हमेशा तेरा गुलाम रहूँगा।
उसके वक्ष बिल्कुल सुडौल, गोल आकार के, सपाट पेट, गोल और गहरी नाभि. उसके तन पर कहीं भी अतिरिक्त मांस नहीं था. साक्षात प्रकृति की खूबसूरती का नमूना थी वो.
मैं सोच रहा था कि देवताओं के पास ऐसी ही अप्सराएं थीं जिनसे वो तपस्या में लीन मुनियों में भी कामवासना जगा देते थे। मैं सारी उम्र इसका गुलाम बन कर रहने को तैयार था.
कहने को शब्द नहीं हैं उसकी सुंदरता की तारीफ में … मैं सोच रहा था कि देवता भी इसे धरती पर भेज कर पछता रहे होंगे.
तभी उसकी आँखें मुझे फिर सवाल भरी निगाहों से देख रही थीं.
मैं फिर अपनी कल्पना से बाहर आया और धीरे से उसकी ओर बढ़ा. उसके पीछे जाकर उसके सुनहरे बालों को आगे कर दिया.
फिर मैंने एक किस उसकी गर्दन पर किया तो उसके मुँह से प्यारी सी आह्ह निकली।
मैंने फिर 3-4 किस उसके कंधों और गर्दन पर जड़ दिए. मैंने उसकी ब्रा की डोरी को धीरे से खोला और ब्रा को हटा दिया.
फिर मैं आगे की तरफ गया और उसके उरोजों को देखा तो बस मेरे मुँह से एक आह्ह निकली. बिल्कुल संगमरमर जैसे सफ़ेद गोल वक्ष थे. उन पर गुलाबी रंग के तने हुए निप्पल और उसका एलोरा भी गुलाबी कलर का. बस मन हुआ कि सारी उम्र इन्हें चूसता रहूं।
मैंने आगे बढ़ कर उन्हें अपने हाथों में पकड़ा.
इतने कोमल जैसे कोई स्पंज दबाया हो.
मैंने धीरे से उन्हें दबाया … अक्षिता के मुँह से एक आह्ह निकली।
अक्षिता ने मेरी टी-शर्ट उतार दी मैंने उसके एक उरोज के एलोरा पर अपनी जीभ फिराई तो अक्षिता के मुँह से फिर एक कामुक सिसकारी स्स्स … करके निकली. मैंने उसके निप्पल को होंठों में दबाया और एक छोटे बच्चे की तरह उसे चूसने लगा.
अक्षिता भी कामवासना के सागर में गोते लगाने लगी.
मैं जब उन्हें काटता तो अक्षिता के मुँह से सिसकारी निकल जाती.
अक्षिता भी जोर जोर से कह रही थी- जोर से चूसो … आह्ह …
मैंने चूस-चूस कर उसके दोनों उरोजों को लाल कर दिया था.
फिर मैं उसे उठा कर बेडरूम में ले आया. वहां मैंने उसे किसी फूल की तरह लेटाया और उसके ऊपर खुद भी लेट कर किस करने लग गया।
मैं किस करते-करते नीचे की ओर जाने लगा.
उसकी गर्दन पर किस किया. फिर दोनों उरोजों के बीच से उसके पेट को चाटते हुए उसकी गहरी नाभि पर पहुंचा. मैंने उसमें अपनी जीभ घुसा दी. अक्षिता ने फिर वही प्यारी सी सिसकारी भरी.
मैंने उसके पेट को चाट चाट कर गीला कर दिया।
अब मैं बेड से नीचे उतर कर खड़ा हो गया और उसके पैरों को हाथो में लेकर चाटने लगा.
वो लगातार वासना में बहती जा रही थी और सिसकारियां भर रही थी.
मैंने उसकी पैर की उंगलियों को चूसना शुरू किया. फिर धीरे-धीरे उसकी टांगों को चाटते-चूमते उसकी जांघों पर पहुंचा.
वहाँ भी अपने प्यार की निशानियां दे रहा था. हम दोनों अपनी वासना में बहे जा रहे थे।
अब मैं धीरे से उसकी पैंटी की तरफ बढ़ा. उसे जैसे ही मैंने छुआ तो अक्षिता ने फिर एक आहहह … भरी.
उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो गयी थी. उसके कामरस की बहुत ही मोहक गंध मुझे पागल किये जा रही थी।
फिर मैं धीरे धीरे उसकी पैंटी उतार रहा था और चूमता भी जा रहा था.
उसकी चूत के ऊपर की बालों वाली जगह बिलकुल क्लीन थी. वहाँ रोम छिद्रों के अलावा कोई निशान नहीं था.
मैंने उस जगह को चूमा.
मैं उसके हर हिस्से पर अपने प्यार की निशानी छोड़ रहा था।
फिर मैंने पूरी पेंटी उतार दी और उसकी चूत बिल्कुल छोटी सी, गुलाब की पंखुड़ियों की तरह लग रही थी.
उसकी फांकों को मैंने प्यार से किस किया और चुम्बनों की झड़ी लगा दी उसकी कोमल चूत पर.
अक्षिता मेरे इस प्यार से पागल होती जा रही थी।
मैंने अपनी उंगलियों से उसकी फ़ांकों को फैलाया. अंदर से ऐसी जैसे खून उतर आया हो.
बिल्कुल लाल थी उसकी चूत. ऐसी चूत मैंने कहीं नहीं देखी.
मैं धीरे से उसके पास गया और उसे चाटने लग गया.
अक्षिता जोर-जोर से आहें भर रही थी और अपने हाथ को मेरे सिर पर रख कर जोर से अपनी चूत पर दबा रही थी.
उसका दबाव मुझ पर बढ़ता जा रहा था. वो जोर-जोर से सिसकी भर रही थी.
वो झड़ने के करीब थी.
मैंने अपनी चाटने की स्पीड और बढ़ा दी और उसके क्लीट को भी चूसने लग गया.
उसकी सिसकारियां और तेज हो गयीं और उसने अपनी टांगों को मेरे सिर पर जोर से दबा दिया.
वह जोर से झड़ने लग गयी. उसकी चूत के अमृत रस से मेरा पूरा चहरा गीला हो गया।
वो अपनी सांसों पर काबू कर रही थी. मैं ऊपर जा कर उसे फिर किस करने लग गया।
अब उसने मुझे नीचे लेटाया और मुझे किस करने लग गयी. वह धीरे धीरे नीचे की ओर बढ़ रही थी. उसने मेरे पाजामे और अंडरवियर को एक साथ उतार दिया और मेरा लिंग महाराज पूरे जोश में उसे सलामी दे रहा था।
अक्षिता ने मेरे लिंग महाराज को एक प्यारी सी निगाह से निहारा. फिर उसने अपने कोमल से होंठों से किस किया. फिर मेरे लिंग महाराज को अपने मुँह में लेकर लॉलीपॉप की तरह चूसने लग गयी.
उसका यह प्यार मुझे दीवाना किये जा रहा था.
वो पूरा नीचे तक लिंग महाराज मुँह में लेती और फिर ऊपर आते वक्त मेरे लिंग के टोपे को जोर से चूसती.
उसकी इस अदा ने मुझे उसका गुलाम बना लिया. बस मैं मन ही मन कामदेव को धन्यवाद दे रहा था और कह रहा था कि अब मौत भी आ जाये तो कोई गम नहीं. ऐसी सुंदर काया वाली अप्सरा को पाकर मेरी जिंदगी तो धन्य हो गयी।
मैंने उससे कहा- मैं झड़ने वाला हूं!
तो उसने मेरी बात को नजर अंदाज किया और वो और जोर-जोर से मेरे फटने को हो चुके लौड़े को चूसने लग गयी.
मेरी वासना का ज्वार भी एक तूफ़ान की तरह फूट पड़ा.
पहले एक धार, फिर दो, फिर तीन-चार-पांच और न जाने कितनी ही बार मेरे लिंग ने मेरा वीर्य को पिचकारी दर पिचकारी करके उसके मुंह में उड़ेल दिया.
वह उसको पी गई.
कुछ वीर्य उसको उरोजों पर गिर गया और कुछ उसके मुंह पर लग गया.
इतना वीर्य मेरे लिंग से पहले कभी नहीं निकला था.
मगर हैरानी की बात ये थी कि अब भी मेरा लिंग बैठने को राजी नहीं था.
अब मैंने अक्षिता को वापस अपने नीचे लेटा दिया. अब बारी थी लिंग महाराज के मिलन की. मैंने अक्षिता के होंठों पर किस किया.
जैसे उसे इस सुख के लिए धन्यवाद कह रहा हूं. उसने भी किस में पूरा साथ दिया। अब अक्षिता का भी सब्र जवाब दे रहा था. वो बोली- जान … अब डाल दो अपने लण्ड को मेरी चूत में … अब और नहीं सहा जा रहा।
मैंने भी रुकना उचित नहीं समझा. उसकी टांगें फैलाईं और अपने लिंग महाराज को उसकी चूत की गुलाबी फ़ांकों पर रख कर एक धक्का मारा.
तो लिंग का मुंड अंदर फंस गया और अक्षिता के मुँह से एक हल्की चीख निकली- उइई माँ … मैंने सोचा कि ये काम की देवी तो नाम की तरह ही अक्षत है.
मैंने फिर अपने लिंग को बाहर निकाल कर एक जोरदार धक्का मारा.
उसकी एक जोर की चीख निकली- आआईई … उम्म्ह… अहह… हय… याह… मर गयी।
फिर मैंने उसे प्यार से किस किया और धीरे-धीरे धक्के लगाने लग गया.
उसकी चूत किसी भट्टी की तरह गर्म थी और मेरे लण्ड को अंदर की ओर खींचे जा रही थी, जैसे मुझे पूरा ही अपने अंदर समा लेना चाहती हो. अब उसकी सिसकारियां बढ़ गयीं. मैंने भी अपने धक्कों की रफ़्तार बढा दी.
वो जोर-जोर से ऊह्ह आह्ह … कर रही थी और बोल रही थी- और जोर से चोदो जान … बहुत मजा आ रहा है! और तेज … और तेज चोदो … और चोदो … आज मुझे अपनी बना लो. मैं भी तेज धक्के मार रहा था.
चुदाई का खेल अपनी पूरी रफ़्तार पर चल रहा था.
लेकिन मैं थक चुका था जिसे वो समझ गयी थी.
फिर मैं उसके नीचे आ गया और वो मेरे लिंग को हाथ में पकड़ कर उस पर कूदने लग गयी.
कुछ देर ऐसे ही रफ़्तार से चुदाई चलती रही. तभी उसकी आवाजें तेज हो गयीं और वो जोर से झड़ने लग गयी।
लेकिन मैं पहले लंड चुसाई से एक बार झड़ चुका था तो मेरा नहीं हुआ था. वो धम्म से मेरी छाती पर गिर गयी।
मैंने वापस अपना पोज़ बदला. मैं उसके ऊपर आ गया और वो भी एक कातिल निगाह से मेरी ओर देख कर मुस्करा दी.
उसका कहना था- तुम नहीं थके तो आ जाओ, मैं भी तैयार हूं जंग के लिये।
फिर मैंने अपना लिंग एक ही झटके में अंदर डाल दिया और अक्षिता के मुँह से फिर एक सिसकारी निकली.
हमने रफ़्तार पकड़ ली और दोनों एक दूसरे को बराबर टक्कर दे रहे थे. मेरा लिंग महाराज भी झड़ने को था तो मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी.
अक्षिता भी जोर-जोर से धक्के मार कर बोल रही थी- जोर से चोदो जान … मैं झड़ने वाली हूं. तेज चोदो जान … और तेज!
मैं भी झड़ने वाला था और उसके हाथ मेरी कमर पर दबाव बनाये जा रहे थे.
फिर अचानक ही दोनों का शरीर अकड़ गया और दोनों की वासना का ज्वार उमड़ पड़ा.
मैं भी थक कर उसके ऊपर गिर गया. मेरी पूरी ताकत खत्म हो चुकी थी. मैं उसके ऊपर ही लेट गया.
जब सुबह मेरी आँख खुली तो मैं अपनी ही कार में था.
अचानक मुझे एक झटका लगा कि जो भी बीती रात मेरे साथ हुआ वो क्या कोई सपना था?
लेकिन मेरी कमर पर जलन महसूस हुई तो मैंने कार के मिरर में देखा तो मेरी कमर पर नाखूनों के कई निशान थे.
मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया. मेरी कार भी सड़क किनारे सही सलामत खड़ी थी।
मुझे कुछ समझ नहीं आया कि ये कोई डरावना सपना था या हकीकत?
मैंने कार स्टार्ट की और अपनी मंजिल की ओर बढ़ चला. मगर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वहाँ ना कोई हवेली थी ना कोई मकान तो फिर मैं किस अक्षिता से मिला और कौन सी थी वो हवेली।
कैसी अजीब पहेली थी ये जो आज तक मेरे लिए एक सवाल बनी हुई है. आखिर उस रात मेरे साथ हुआ क्या था. मैं आज भी सोच कर सहम जाता हूँ.
तो दोस्तो, यह मेरी पहली कहानी थी. अगर कोई गलती हुई हो तो माफ़ कीजियेगा. फिर जल्द ही लौटूंगा एक नई कहानी लेकर. मुझे कमेंट करके बतायें कि आपको कहानी कैसी लगी।
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