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मैं भी अन्तर्वासना के लाखों Hindi Sex Stories चाहकों में से एक हूँ। मैंने यहाँ बहुत सी कहानियाँ पढ़ी हैं। कुछ तो इतनी लाजवाब हैं कि पढ़ते-पढ़ते किसी का भी लण्ड खड़ा/चूत गीली कर दे।
यह मेरी प्रथम सेक्स की कहानी है जो मैं आप सब को बताने जा रहा हूँ। एक प्यासी स्त्री की सच्ची कहानी।
अभी मेरी उम्र 30 वर्ष है पर यह कहानी 11 वर्ष पहले की है। यह मेरी पहली कहानी है, लिखने में कोई भूल हो तो माफी चाहता हूँ।
मेरा नाम जय है और मैं सूरत में रहता हूँ। बचपन से ही मैं अपने दादा-दादी और चाचा के साथ बैंगलोर में रहा और वहीं पढ़ाई की, वहाँ पर दादा की स्थाई नौकरी थी और चाचा दुबई में नौकरी करते थे।
चाचा की शादी को 8 साल हुए थे और उनकी 2 बेटियाँ थी। चाचा साल दो साल में एक बार आते और 1 महीना रहते थे।
जैसा कि मैंने आप को बताया कि चाचा दुबई में थे और साल दो साल में एक महीने के लिये आते थे। तो आप समझ सकते हैं कि चाची कि हालत क्या होती होगी जब चाचा वापस चले जाते होंगे। दादा -दादी साथ रहते थे इसलिए उन्हें कहीं बाहर जाने या किसी से मिलने का भी कोई मौका नहीं था, बस कभी कभी कुछ काम हो तो मेरे साथ जाती थी।
मेरी चाची के साथ अच्छी बनती थी, मैं काम में उनकी मदद भी कर दिया करता था। और जब चाचा दुबई जाते तो मैं चाची के कमरे में सोता था, सब कुछ सामान्य था। मैं चाची के साथ मस्ती भी बहुत करता था लेकिन कभी उन्हें वासना भरी नज़र से नहीं देखा था।
समय बीतता गया और मैं भी जवानी में कदम रख रहा था और कुछ दोस्तो के साथ मिलकर कभी कभी ब्ल्यू फिल्म देख लिया करता था और कुछ सेक्स की किताब भी पढ़ता था छुप-छुप कर और कभी कभी मुठ भी मार लिया करता था।
जैसे जैसे मुझे सेक्स के बारे में पता चलता गया मेरी नज़र बदलती गई और मेरी नीयत बदलती गई। अब मैं चाची के बारे में सोच सोच कर मुठ मारने लगा और मन में उन्हें चोदने की इच्छा जागी।
हमारे घर में दो बेड रूम थे, एक में दादा-दादी और चाची की एक बेटी सोते और दूसरे में मैं चाची और मेरी एक चचेरी बहन सोते थे। (मैं एक बेड पर और चाची और बहन एक बिस्तर पर सोते। मैं दस साल का था तब चाचा की शादी हुई थी और चाचा एक महीने के अंदर ही वापस चले गये थे, तब से मैं चाची के कमरे में ही सोता हूँ)
जिस दिन मैंने कोइ ब्ल्यू फिल्म देखी हो उस रात मुझे नींद ही नहीं आती, पूरी रात चाची को देखने में ही निकल जाती, कभी उनकी नाईटी ऊपर सरक आती और उनकी गोरी जांघ दिखाई देती तो कभी उनके स्तनों की झलक मिलती।
नाईट लेम्प की रोशनी में ही मजे लेने पड़ते थे। कई बार सोचा कि उनके स्तन दबाऊँ, गोरी जांघ पर हाथ फेरूँ, पर डर लगता था कि कही चाची ने शोर मचाया और दादा दादी को बता दिया तो अंजाम बहुत बुरा होगा।
समय बीतता गया और धीरे-धीरे अब मैं सेक्सी किताबें और ब्ल्यू फिल्म की केसेट घर पर ही लाने लगा और जब भी मौका मिलता, छुप-छुप कर पढ़ता और फिल्म देखता था।
जब भी मौका मिलता, मैं उनके गुप्त अंगों को देखने की कोशिश करता और मस्ती-मस्ती में उन्हें छू भी लेता था। चाची भी इसका कोइ विरोध नहीं करती थी, शायद उन्हें भी आनन्द आता था। लेकिन यह सब तभी होता था जब दादा-दादी कहीं बाहर गये हों।
तभी हमारे एक रिश्तेदार की मृत्यु हो गई और दादा-दादी को 15 दिनों के लिये सूरत जाना पड़ा। अब घर पर मैं, चाची और उनकी 2 बेटियाँ रह गये। दोनों बेटियों दे स्कूल दोपहर के थे और मेरी सुबह में! यानि मैं घर आता तो वो दोनों स्कूल गये होते थे और शाम को 5.30-6.00 बजे आते थे।
दादा-दादी को गए दो दिन हो गये थे और इन दो दिनों में मैंने देखा कि चाची कुछ बदली-बदली सी लग रही थी। मतलब एक दम बिंदास, मस्ती ज़्यादा और काम कम!
और घर पर कोई बुजुर्ग नहीं होने की वजह से उनके कपड़े भी अस्त-व्यस्त रहने लगे थे, लेकिन इससे मुझे भी आनन्द मिलने लगा और मैं उनके गोरे सेक्सी बदन को देखने और छूने का कोई मौका नहीं छोड़ता।
मैं अपने दोस्त से ब्ल्यू फिल्म की एक केसट ले आया और कमरे में ही छुपा दी, जो मुझे देख कर लौटानी थी। सोचा घर पर कोई नहीं हो और मौका मिले तो देख लूंगा।
अगले दिन मैं कॉलेज़ से लौटा, चाची ने कहा- चलो जल्दी से कपड़े बदल ले, मैं खाना लगाती हूँ और वो रसोई में चली गई। मैंने कपड़े बदले और खाना खाना खाने बैठ गया। खाना खाकर चाची पास ही कुछ सब्जी लेने चली गई और मैं घर पर अकेला!
मैंने सोचा कि मौका अच्छा है फिल्म देखने का, और मैं वो केसेट लेने कमरे में गया। वहाँ जाकर देखा तो केसेट वहाँ से गायब था। मैं एकदम चिन्ता में पड़ गया। एक तो केसेट दूसरे का और कहीं चाची के हाथ में आ गया तो दादा-दादी को बताने का डर!
मैंने सब सामान इधर उधर कर दिया पर वो केसेट नहीं मिला। थोड़ी देर में चाची वापस आ गई तो मैंने जल्दी-जल्दी सब सामान वापस रख दिया और कुछ बाहर ही रह गया।
चाची आई तो पूछने लगी- यह सब क्या कर रहे हो? और सामान क्यों निकाला?
मैंने कहा- कुछ नहीं! एक किताब रखी थी मैंने अंदर! वही ढूंढ रहा हूँ, मिल नहीं रही है।
मेरी चिन्ता मेरे चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी और चाची जिस तरह मुझे घूर रही थी वो देख कर मुझे लग रहा था कि वो केसेट उनके हाथ लग गई है।
वो वही बैठ गई और थोड़ी देर मेरी हरकतों को देखती रही, मेरी चिन्ता देख वो बोली- चिन्ता मत कर, तूने और कहीं रख दी होगी, बाद में आराम से ढूंढना, मिल जायेगी। अपने घर में से कहाँ जायेगी।
उस रात मुझे नींद नहीं आई, पूरी रात सोच में ही निकल गई कि अब क्या होगा?
खैर रात बीत गई और सुबह हुई। सुबह से ही मैंने चाची में कुछ बदलाव देखे! चाची बहुत खुश नजर आ रही थी और वो मुझमें भी बहुत दिलचस्पी दिखा रही थी। किसी न किसी बहाने से मेरे गाल पकड़ती तो कभी प्यार से बालों में हाथ फेरती।
खैर मैं कॉलेज़ चला गया पर वहाँ भी मन नहीं लगा। दोपहर 12.15 बजे घर वापस आया, चाची अपने काम में व्यस्त थी तो मैं फिर से विडियो केसेट ढूंढने मे लग गया क्यूंकि घर पर मेरे और चाची के अलावा और कोई नहीं था।
‘तुम क्या ढूंढ रहे हो? मैं कुछ मदद करूँ तुम्हारी?’
यह सुनकर मुझे थोड़ा और यकीन हो गया कि वो केसेट चाची के ही पास है, लेकिन डर के मारे कुछ बोल नहीं पाया। फिर चाची वहीं बैठ गई और मेरी हरकतों को देखती रही। थोड़ी देर बाद चाची ने फिर से पूछा- सच बताओ कि क्या ढूंढ रहे हो? जो है सच बताओ मैं कुछ नहीं कहूंगी। हो सकता है कि मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकू!
यह सुनकर मुझ में थोड़ी हिम्मत आई और मैंने कहा- मैंने यहाँ एक वीडियो केसेट रखा था, मिल नहीं रहा! वही ढूँढ रहा हूँ!
तो चाची ने पूछा- कौन सा केसेट? किस फिल्म का था?
मैंने डर के मारे कहा- मेरे दोस्त के भाई के शादी का था!
चाची ने तुरंत पूछा- कल से तू वही ढूंढ रहा है?
मैंने कहा- हाँ चाची!
‘तो कल क्यों झूठ बोला था तूने?
मैं कुछ नहीं बोल सका। फिर चाची मेरे पास आई और मुस्कुराते हुये मेरे गाल पकड़ कर कहा- इतना परेशान मत हो, मिल जायेगी! चल सब सामान वापस रख दे अभी!
इतना बोल वो वहाँ से चली गई और अपने काम में लग गई। चाची की बातें सुनकर मुझे थोड़ा डर भी लगा और कहीं थोड़ी खुशी भी हो रही थी, खुशी इस बात की कि अगर चाची ने वो वीडियो देख ली है और मुझसे नाराज़ नहीं हैं तो मेरा उन्हें चोदने का सपना सच हो सकता है। लेकिन मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी चाची से कुछ भी कहने की। मैं हाल में सोफे पर बैठा था, मन में कई प्रकार के सवाल जवाब चल रहे थे।
तभी चाची आई और मेरे बाजू में बैठ गई। तभी मैंने हिम्मत कर के कहा- चाची, अगर वो केसेट आप के पास है तो प्लीज मुझे दे दीजिये, वो वापस लौटानी है मुझे!
चाची- अरे तुझे कहा ना, टेन्शन मत ले, पहले जा और अपने कपड़े बदल ले!
मैं तुरंत उठा और दूसरे कमरे में कपड़े बदलने लगा। तभी मैंने अलमारी के शीशे में देखा तो मेरे पीछे चाची दरवाजे के पास खड़ी मुझे देख रही हैं। मैंने उन्हें लगने ही नहीं दिया कि मैंने उन्हें देख लिया है, और जैसे ही मैं कपड़े बदल कर मुड़ा, चाची वहाँ से जा चुकी थी।
वहाँ से मैं रसोई में गया, चाची खाना परोस रही थी, मैं खाना खाना खाने बैठ गया। हम दोनों आमने-सामने बैठे थे, मैंने चुपचाप सर झुकाये खाना खाया और बेडरूम में आकर अपनी किताब ले कर बैठ गया।
थोड़ी देर बाद चाची भी आ गई और एक मैगज़ीन लेकर मेरे पास बैठ गई। थोड़ी देर बाद चाची ने मस्ती शुरू कर दी, वैसे तो हम अकसर करते थे, पर जैसा मैंने कहा, उस दिन उनका मूड कुछ अलग ही था। वो मुझे गुदगुदी करने लगी।
मैंने कहा- प्लीज़ चाची, मत करो ऐसा, मैं करुंगा तो आप को पता चलेगा, फिर मत बोलना!
चाची तुरंत बोली- अच्छा तो क्या करेगा तू? हाँ? मैं भी तो देखूँ जरा?
आगे की कहानी आप अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डॉट कॉम पर शीघ्र ही पढ़ेंगे। Hindi Sex Stories
मैं अन्तर्वासना का Antarvasna Stories नियमित पाठक हूँ। कुछ कहानियाँ मुझे झूठी लगती हैं तो कुछ सच्ची भी लगती हैं।
जब मैं बिहार में मोतिहारी में रहता था तब कॉलेज़ में था तब मेरे मकान मालिक की बहु जो बांझ थी उसका नाम प्रतिमा ठाकुर था। वो थी तो पतली दुबली मगर थी मस्त भौजाई! ऐसी भौजाई जिसका कोई जवाब नहीं है। यह तब की बात है जब मैंने अपने जीवन में सेक्स को महसूस किया था। मोतिहारी में स्कूल जाते वक्त मैं अक्सर बुकस्टाल पर रुकता था और वहां पर रखी किताबें देखता था। उसमें मुझे खासकर हिंदी में आज़ादलोक, अंगड़ाई, हवस की कहानियाँ, मस्तराम मौलाना, जैसी किताबें देखता था, कभी लेने की हिम्मत नहीं पड़ती थी।
मेरा एक दोस्त था संजय! उसके साथ एक बार मैं उसके घर गया। वहाँ उसने मुझे वो किताब पढ़ने को दी। मैंने उसको घर में छिप कर पढ़ी, मुझे अच्छी लगी, मेरा लंड खड़ा हुआ, दर्द हुआ और बहुत कुछ। कुछ दिनों में मैंने किताबें पढ़नी चालू कर दी और खरीदी भी। तब मुझे लंड, बुर, चूची, मम्मे, गाण्ड जैसे चीज़ें पता चली और मेरा औरतों और लड़कियों को देखने का नज़रिया बदला, क्योंकि इसके पहले सब बहनें ही बनाता था। बस यहीं से कहानी शुरू होती है।
हमारे घर में वीसीआर था और हमारे मकान मालिक के बड़े बेटे से खूब दोस्ती थी और वो हमारे घर में पिक्चर देखते थे।
एक दिन मैं एक पिक्चर लाया। अंग्रेज़ी फ़िल्म थी ‘स्पैस्म’! उसमें तीन नग्न दृश्य थे। मुझे मालूम था कि अंग्रेज़ी फ़िल्म में सेक्स और चुम्बन तो होता ही है पर प्रतिमा भाभी को नहीं पता था। मैं घर आया तो मम्मी नहीं थी घर की चाभी भाभी के पास थी। मम्मी बाज़ार गई थी। मैंने खाना लिया और वीसीआर पर पिक्चर लगाने लगा।
तब भाभी बोली- क्या लगा रहे हो मिंटु?
मैं- ईंगलिश पिक्चर है स्पैस्म! साँपों की पिक्चर है।
भाभी- नागिन जैसी है क्या?
मैं- नहीं भाभी, इसमें एक नाग है जिसके तीन फन हैं जो सबको मारता है।
भाभी- मैं भी देख लूं?
मैंने कहा- नहीं आप मत देखो! कहीं डर गई तो ? कभी कभी कुछ अनाप शनाप होता है।
भाभी बोली- जब तुम नहीं डरोगे तो मैं क्यों डरुंगी? चलो लगाओ।
मैंने फ़िल्म लगाई और खाना खाते हुए फ़िल्म देखने लगा। तभी फ़िल्म में एक बाथ सीन आया जिसमे एक लड़की नंगी नहा रही थी और साँप आता है और उसको मार देता है। उसमें सांप ने लड़की की चूची पर काटा है।
देख भाभी बोली- हटाओ गंदी फ़िल्म है!
मैंने कहा- नहीं भाभी! आप जाओ यह एडवेंचर मूवी है!
भाभी बोली- यह कैसी फ़िल्म है, जिसमें लड़की नहा रही है और नंगी?
मैंने कहा- भाभी जाओ यार! मुझे देखने दो!
भाभी गई नहीं और देखने लगी।
15 मिनट में फिर एक चुम्बन दृश्य आया, भाभी कुछ नहीं बोली और आधे घंटे में एक नग्न चुम्बन दृश्य आया। फिर भी भाभी ने पूरी फ़िल्म देखी।
अन्त में भाभी डर भी गई जब साँप को मारते हैं।
फ़िल्म देख के भाभी बोली- हाय मिंटु बाबु! कितनी गंदी फ़िल्म थी, ऐसी फ़िल्म मत देखा करो!
पर भाभी आँखें नहीं मिला रही थी। बात आई गई हो गई।
कभी कभी भाभी मुझे पढ़ाती भी थी, एक दिन बायोलोजी याद कर रहा था और फ़्रोग सेक्स चैप्टर था। भाभी पढ़ा रही थी और जो ब्लाउज पहने थी वो सफ़ेद रंग का था, बिल्कुल भाभी की तरह सफ़ेद, गोरा, उजला। ब्लाऊज़ पर चिकन कढ़ाई थी जिसमें छेद छेद होते हैं। वो नीचे ब्रा नहीं पहने थी और मुझे उसमें से उनके चुचूक दिख रहे थे।
मैंने भाभी से पूछा- भाभी, सेक्स माने क्या होता है और इससे मेंढक बच्चे कैसे पैदा कर देते हैं?
भाभी घबरा गई और संभल कर बोली- यह एक क्रिया है जो वो करते हैं जिसके बाद मेंढक अंडे देता है।
मैंने पूछा- यह कैसे होता है?
भाभी बोली- किताब में पढ़ो, सब लिखा है।
मैंने पूछा- क्या आदमी भी सेक्स करके अंडे देता है?
भाभी हँसी- नहीं पागल, औरतें बच्चे पैदा करती हैं और मेरे गाल पर नौच लिया, बोली- बड़े बेवकूफ़ हो यार।
मैंने कहा- भाभी, बताइये ना कि कैसे आदमी सेक्स करता है।
भाभी बोली- धत्त! यह भी पूछा जाता है ? जब तू बड़ा होगा तो तुझे पता चल जायेगा।
मैंने कहा- भाभी आप ने क्या सेक्स नहीं किया ? आपकी तो शादी हो चुकी है पर आपने बच्चा नहीं दिया है।
भाभी भौंचक्की रह गई और उनके चेहरे पर दुःख आ गया और वो नीचे चली गई।
मैंने उनको एक हफ़्ते नहीं देखा और जब पढ़ने गया तो उनके नौकर ने वापस कर दिया।
फिर एक दिन मैं एक फ़िल्म ‘नाईटमेयर ऑन एल्म स्ट्रीट’ लाया। मैंने भाई साहब को बुला लिया साथ में भाभी भी आई।
सर्दी के दिन थे हम सब बिस्तर में थे।
अलग पलंग पर सब थे, भाभी मेरे और भाईसाहब के बीच थी। हम सब फ़िल्म देख रहे थे और बीच में भाभी सो गई और रज़ाई में ही उनकी टांगों पर से साड़ी हट गई। मैं फ़िल्म देख रहा था, मैंने लेटे लेटे करवट ली तो देखा भाभी सो रही है। मैं नीचे हुआ, मेरा पैर भाभी के घुटने से लगा मुझे भाभी का नंगा शरीर का आभास हुआ। मैंने हिम्मत कर पैर ऊपर किया, जांघों तक साड़ी आ चुकी थी। मैं हाथ अंदर कर भाभी की जांघों को सहलाने लगा।
भाभी गहरी नींद में थी, उनको पता नहीं चला पर मैं उनकी रानें सहलाते सहलाते झड़ गया और उठ कर बाथरूम गया कि मैंने पेशाब कर दी है पर वहां मैंने कुछ और देखा। पर जब मुड़ा तो देखा भाभी खड़ी थी और मुझे घूर रही थी। मैं घबरा गया।
तब भाभी आगे आई और मुझसे बोली- क्यों क्या हो रहा था? क्या हो गया है?
मैंने कहा- कुछ नहीं भाभी।
भाभी बोली- अभी मेरी टांगों पर सहला रहे थे, अभी तुम्हारी शिकायत करती हूं! चलो।
मैं रोने लगा माफ़ी मांगने लगा तो भाभी बोली- ठीक है आगे से ऐसा नहीं होना चाहिये। क्या बात है जो डर गये हो कुछ गड़बड़ है क्या?
मैंने कहा- भाभी मेरी पेशाब निकल गई है पर पता नहीं कैसी चिपचिपी है।
भाभी बोली- लाओ दिखाओ।
मैंने कहा- आपको कैसे दिखाऊं? मुझे शर्म आती है।
भाभी- जब टांगें सहला रहे थे तब शरमा नहीं रहे थे। अब शर्म आ रही है ? चल दिखा नहीं तो उनको बुलाऊं क्या?
मैंने तुरंत अपना अंडरवीयर उनको उतार कर दिखाया। भाभी ने हाथ लगाया और मेरा लंड पकड़ कर देखा, चिपचिपा था। तब भाभी ने उसको साफ़ किया और मेरा अंडरवीयर उतार कर धो दिया और मैं नीकर पहन कर वापस आ गया। थोड़ी देर बाद भाभी वापस आई। और मेरे पास लेट गई, पर अब जाग रही थी और मैंने उनको छुआ नहीं।
फ़िल्म खत्म हो गई और भाभी, भाई साहब चले गये।
अगले दिन भाभी ऊपर आई। मैं किताब पढ़ रहा था, भाभी ने देख लिया और पकड़ लिया और बोली- यह क्या पढ़ रहे हो भाई?
और मुझे डराने धमकाने लगी, मैं डर गया।
भाभी- बताओ और कितनी किताबें हैं कौन कौन सी हैं।
मैंने सब निकाल कर दिखा दी, भाभी ने सब ले ली और अपने कमरे में आ गई। फिर मैं डर के मारे सो गया कि अब मार पड़ने वाली है, भाभी मम्मी को बता देंगी और मेरी हड्डी तोड़ी जायेगी, मगर हुआ सब उल्टा, भाभी शाम को ऊपर आई और मुझे पास पढ़ने को बुलाया।
मैं डरते हुये नीचे गया, आज भाभी जरूरत से ज्यादा खुश थी और सुंदर लग रही थी। मैं गया और किताब खोल पढ़ने लगा, तो भाभी मेरे पास आई और बोली- क्या पढ़ रहे हो मिंटु?
मैंने कहा- साईंस।
भाभी बोली- और आज़ादलोक, अंगड़ाई कैसी लगती है?
मैं शरमा गया और बोला- अच्छी लगती है।
भाभी बोली- और जो मस्तराम है वो? और जिसमे फोटो हैं वो फोटो कैसी लगती है?
मैंने कहा- बहुत सुंदर और अच्छी लगती है खास कर वो जो पत्तों में फोटो है।
भाभी मुस्कुरा दी और बोली- बहुत आवाज़ निकल रही है साहब की? कल बंद हो गई थी आज़ खुल गई?
मैंने कुछ नहीं कहा।
भाभी बोली- मैं कैसी लग रही हूँ।
यह बिल्कुल अज़ीब सवाल था पर मैं बोला- भाभी आप बहुत अच्छी लगती हो और प्यारी भी!
भाभी बोली- क्या मेरे पैर सहलाना अच्छा लगता है?
मैंने कहा- हाँ!
भाभी ने अपनी साड़ी उठा दी और बोली- लो मिंटु सहलाओ!
और मेरा हाथ पकड़ कर टांगों पर रख दिया। मैं सहलाने लगा, दोनों टांगों को सहलाते हुये काफ़ी देर हो गई। भाभी मुस्कुरा रही थी मुझे मजा आ रहा था और मेरी तेज़ी बढ़ गई थी।
भाभी ने पूछा- क्युं मिंटु बाबु! कभी मन करता है कि अपनी भाभी को नंगी देखो।
मैंने जवाब दिया- भाभी करता तो है और कभी कभी आपको नहाते हुए जीने पर से झांक कर देखा है।
भाभी शरमा गई और बोली- हाय दैया! तुमने मुझे नंगी देखा है और मुझे मालूम नहीं चला? यह कैसे हुआ?
मैंने कहा- अरे, कुछ दिखा ही नहीं था! बस आप पेशाब के लिये बैठी और मैंने देख लिया ऊपर से कुछ नहीं दिखा था।
भाभी बोली- क्या तुम मुझे नंगी देखना चाहते हो सही में? तुम्हारी भाभी इतनी सुंदर है?
मैंने शरमाते हुये कहा- जी भाभी।
भाभी बोली- पहले मुझसे कहो तो कि भाभी आप मुझे अपना नंगा शरीर दिखा दो तो मैं दिखा देती तुम मेरा कुछ छीन थोड़े ही लोगे।
मैंने कहा- सच भाभी जी! क्या आप मुझे नंगी हो कर दिखा सकती हो? क्या आप अपने कपड़े मेरे सामने उतार देंगी? सही में प्लीज़ भाभी! मैं आपको नंगी देखना चाहता हूं, क्या मैं आपको नंगी कर सकता हूं ? प्लीज़ भाभी प्लीज़! मैं आपको नंगी करना चाहता हूँ।
भाभी खिलखिला का हँस दी और बोली- अरे मेरे भोले मिंटु देवर! तुम कहो तो लो टांगें छोड़ो! चलो करो अपनी प्रतिमा भाभी को नंगी।
बस इतना सुनना था कि मैं भाभी से लिपट गया और उनके सीने से चिपक गया। भाभी ने मुझे अपने सीने से चिपटा लिया और मेरा चेहरा अपने सीने में दबा कर बोली- जैसे चाहे भाभी को देखो और नंगी करो पर तुमको कसम है चोदना नहीं।
मैंने कहा- चोदना क्या होता है?
भाभी बोली- वो भी सिखाऊंगी! अभी सिर्फ़ नंगा करो और सहलाओ। बस और मज़ा लो।
मैंने भाभी की साड़ी उतार दी, भाभी ब्लाउज और पेटीकोट में थी। दूध सा सफ़ेद रंग और नीले पेटीकोट और ब्लाउज में भाभी मैचिंग में थी। फिर मैंने भाभी का ब्लाऊज का हुक खोला- एक, दो, तीन, चार, फिर आखरी पांचवां और मुझे बीच की लकीर दिखी। दो पहाड़ियों के बीच खाई मस्त लग रही थी। अंदर काली अंगिया नेट वाली थी जिसमें से चूचियाँ बाहर छलक रही थी। मस्त नज़ारा था! और खूबसूरती लाजवाब थी।
भाभी घूम गई और बोली- चलो, जल्दी से ब्रा का हुक तो खोलो।
और मैंने हुक खोल दिया। भाभी ने बिना घूमे ब्रा उतारी और मुझे दे दी। मैंने ब्रा पकड़ी और उसको टटोलने लगा। भाभी ने मुड़ कर देखा तो हँस पड़ी बोली- मेरे भोले राजा, इसमें कुछ नहीं है जो भी है मेरे पास है! लो देखो! आओ देखने की चीज़ है।
और मेरे सामने दो गोल गोल लडडू जैसे मस्त सफ़ेद सुंदर गोरे प्यारी चूची दिख रहीं थी जो कसी हुई थी और एकदम अकड़ी हुई थी, जरा भी लोच नहीं था। 35 साल की भाभी पूरी मस्त थी।
मैंने उनकी तरफ़ हाथ बढ़ाया तो भाभी बोली- नहीं पहले पेटीकोट तो खोलो यार।
मैंने पेटीकोट का नाड़ा बाहर निकाला जिसमें कुछ बाल खिंचे, भाभी बोली- आराम से निकाल! नहीं तो बाल टूट जायेंगे।
मैंने नाड़ा खोला और पेटीकोट नीचे फिसल गया और भाभी एकदम निर्वस्त्र मेरे सामने थी सामने से बाल ज्यादा थे और उनकी बुर नहीं दिख रही थी। भाभी एकदम दूध जैसी थी बस उनके चुचूक हल्के भूरे थे वरना बेदाग भाभी एकदम अंग्रेज़ी फ़िल्म की हीरोईन लग रही थी।
मेरा लंड एकदम तन चुका था, मैं अपना लंड कस के पकड़े था और दबा रहा था।
भाभी बोली- मेरे पास आओ।
मैं भाभी के पास गया तो भाभी ने मेरे सारे कपड़े उतार दिये और मुझे नंगा कर अपने से चिपका लिया और मुझे बिस्तर पर लिटा दिया। मैं लेटा था कि मेरा लंड ने धार मार दी जो भाभी की झांटों पर गिरी।
भाभी बोली- लो, तुम तो अभी ही निकल लिये और जगह भी देख कर मारी है।
और भाभी अपने ब्लाऊज से मेरा लंड और झांटें साफ़ करने लगी और साथ साथ मेरा लंड दबा रही थी। अभी मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि भाभी ने मेरा लौड़ा पकड़ा और अपने मुँह में ले लिया। मेरा पारा चढ़ गया और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी। भाभी मेरा लंड चूसती रही, 15 मिनट 20 मिनट लगातार चूसते चूसते मेरा लंड एक बार फिर उनके मुँह में झड़ गया।
भाभी बोली- थोड़ा रोका तो करो सब मेरे मुँह में कर दिया।
मैंने कहा- भाभी, आप ऐसा कर रही हो, मुझसे बर्दाश्त नही हो रहा है! क्या मैं आपका लंड चूस सकता हूँ।
भाभी बोली- धत्त! औरतों के लंड नहीं बुर होती है! और उसको चूसना है तो लो चूस लो! पर पहले क्या मेरा दूध पियोगे?
मैंने शरमाते हुए कहा- हाँ।
फिर भाभी मेरे पास लेट गई और अपनी चूची मेरे मुँह में दे दी। मैं लगातार बड़ी बड़ी चूची चूसता रहा।
भाभी बोली- देवर जी, जरा मुझे सहलाओ तो!
और मैं उनके शरीर को अपने हाथों से रगड़ने लगा। मैं इतनी तेज़ी से दबा रहा था और सहला रहा था कि कभी कभी भाभी हिनहिनाने लगती- और तेज़ मिंटु और तेज़।
मैं लगातार उनकी चूची चूस रहा था कि भाभी ने मेरा हाथ अपनी बुर पर रखा और बोली- अब इसको रगड़ डालो!
मैं बुर रगड़ने लगा, भाभी मस्त होने लगी, आवाज़ें निकालने लगी आऽऽ आऽऽऽआ ऊऊऽऽऊऊ ईईईऽऽऽईईइ! मेरे उंगली करो! मिंटु उंगली डालो बुर बुर में! जल्दी करो! कस के करो ईईऽऽ॥ ईईईआआ आआअ ईईईईए! कस के रगड़ो! नोचो ना! काट डालो।
मैं लगातार उंगली कर रहा था और 15 मिनट की उंगली चुदाई ने उनको झाड़ दिया और मेरा हाथ उनके झड़ने से गीला हो गया। भाभी ने मेरे होंठों पर चूमा और पूछा- मज़ा आया?
मैंने कहा- बहुत ज़्यादा, भाभी क्या मैं आपकी पप्पी ले सकता हूँ?
भाभी बोली- और क्या ले लो! जितनी चाहे और जहाँ चाहे।
मैंने तुरंत भाभी के होंठों को चूमना शुरू किया लगातार उनको चूमता रहा। 15 मिनट में फिर एक बार झड़ गया और इस बार भाभी बोली- धत्त पगले! तू जब-तब धार मार देता है! तेरा इंतजाम करना पड़ेगा।
और भाभी बोली- जब भी किसी को किस करते हैं तो उसको चूस कर करते हैं!
और भाभी ने मेरे होंठों को दो मिनट चूसा और बोली- ऐसे!
तो मैंने कहा- मैं भी ऐसे पप्पी लूंगा!
और मैंने तुरंत भाभी के होंठों पर अधिकार किया और पूरा 5 मिनट चूसा। जब छोड़ा तो भाभी बोली- अबे, ऐसे नहीं किया करो, सांस रुक जायेगी!
मैंने कहा- पर भाभी मुझे अच्छा लगा है।
भाभी हँस दी और बोली- मज़ा आ गया। अब तो मुझे तंग नहीं करोगे? जब प्यार करना हो, दिन में आ जाना और मुझे नंगा कर प्यार करना! चलो अब पढ़ाई करते हैं।
मैंने कहा- भाभी यह तो बताइये कि चोदा कैसे जाता है?
तो भाभी बोली- यह जो बुर है इसमें जो ये लंड तुम्हारे पास है, उसको धक्के से अंदर किया जाता है और फिर लगातार धक्के मार कर जो धार तुम मारते हो उसको अंदर गिरा देते हैं उसको चोदना या चुदाई कहते हैं।
मैंने कहा- क्या भाई साहब भी ऐसे ही चोदते हैं?
भाभी बोली- और क्या।
मैंने कहा- भाभी, मैं भी तुमको चोदूँगा प्लीज़!
भाभी बोली- नहीं, अभी नहीं! अभी ऐसे ही प्यार से काम चलाओ! ऐसे मज़ा आता है या नहीं?
मैंने कहा- आता है!
तो भाभी बोली- बस लो बुर को चाटो और पढ़ो!
मैंने 5 मिनट बुर चाटी और फिर हमने कपड़े पहने और भाभी मुझको चूची चुसा चुसा के पढ़ाने लगी और मैं रोज़ उनसे ऐसे ही पढ़ने लगा। कभी चूची चूसते हुये, कभी सहलाते हुये, कभी बुर में उंगली करते हुये, कभी गांड़ में उंगली करते हुये कभी लंड चुसाते हुये, कभी किस करते हुये और मैंने एक दिन उनको चोदा भी! पर उस चुदाई को अगली कहानी में!
अभी सिर्फ़ मेरी शुरुआत को पढ़िये!
मैं आंटी और लौंडियों का दीवाना हूँ पर मस्त मोटी भाभी और आंटी मेरी कमजोरी है। मुझे दूध पीना और गाण्ड मारना अच्छा लगता है। Antarvasna Stories
मैं Hindi sex stories अपने बारे में शुरु से बताती हूं। मैं अपने घर में अपने भाई बहनों में तीसरे नंबर, २० साल की हूं। सबसे बड़े भैया हैं जो आर्मी में हैं। उनकी शादी नहीं हुई है। मुझसे छोटा एक भाई है। मैं होस्टल में रह कर पढ़ती हूं।
एक दिन मेरे भैया मुझ से मिलने होस्टल आये। मैं उन्हे देख कर बहुत खुश हुई। वो सीधे आर्मी से मेरे पास ही आये थे। और अब घर जा रहे थे। मैंने भी उनके साथ घर जाने का मन बना लिया और कोलेज से ८ दिन की छुट्टी लेकर मैं और भैया घर के लिये रवाना हो गये।
जिस ट्रेन से हम घर जा रहे थे उस ट्रेन में मेरा रिज़र्वेशन नहीं था, सिर्फ़ भैया का था। इसलिये हम लोगों को एक ही बर्थ मिली। ट्रेन में बहुत भीड़ थी। अभी रात के ११ बजे थे। हम इस ट्रेन से सुबह घर पहुंचने वाले थे।
मैं और भैया उस अकेली बर्थ पर बैठ गये। सर्दियों के दिन थे। आधी रात के बद ठंड बहुत हो जाती थी। भैया ने बेग से कम्बल निकाल कर आधा मुझे उढा दिया और आधा खुद ओढ लिया। मैं मुस्कुराती हुई उनसे सट कर बैठ गयी। सारी सवारियां सोने लगी थीं। ट्रेन अपनी रफ़्तार से भागी जा रही थी।
मुझे भी नींद आने लगी थी और भैया को भी। भैया ने मुझे अपनी गोद में सिर रख कर सो जाने के लिये कहा। भैया का इशारा मिलते ही मैं उनकी गोद में सिर टिका और पैरों को फैला लिया। मैं उनकी गोद में आराम के लिये अच्छी तरह ऊपर को हो गई। भैया ने भी पैर समेट कर अच्छी तेरह कम्बल में मुझे और खुद को ढांक लिया और मेरे ऊपर एक हाथ रख कर बैठ गये।
तब तक मैंने कभी किसी पुरूष को इतने करीब से टच नहीं किया था। भैया की मोटी मोटी जांघों ने मुझे बहुत आराम पहुंचाया। मेरा एक गाल उनकी दोनो जांघों के बीच रखा हुआ था। और एक हाथ से मैंने उनके पैरों को कौलियों में भर रखा था।
तभी मेरे सोते हुये दिमाग ने झटका सा खाया। मेरी आंखों से नींद घायब हो गई। वजह थी भैया के जांघ के बीच का स्थान फूलता जा रहा था। और जब मेरे गाल पर टच करने लगा तो मैं समझ गई कि वो क्या चीज़ है। मेरी जवानी अंगड़ाइयां लेने लगी। मैं समझ गई कि भैया का लंड मेरे बदन का स्पर्श पाकर उठ रहा है।
ये ख्याल मेरे मन में आते ही मेरे दिल की गति बढ़ गई। मैंने गाल को दबा कर उनके लंड का जायज़ा लिया जो ज़िप वाले स्थान पर तन गया था। भैया भी थोड़े कसमसाये थे। शायद वो भी मेरे बदन से गरम हो गये थे। तभी तो वो बार बार मुझे अच्छी तरह अपनी टांगों में समेटने की कोशिश कर रहे थे। अब उनकी क्या कहूं मैं खुद भी बहुत गरम होने लगी थी।
मैंने उनके लंड को अच्छी तरह से महसूस करने की गरज़ से करवट बदली। अब मेरा मुंह भैया के पेट के सामने था। मैंने करवट लेने के बहाने ही अपना एक हाथ उनकी गोद में रख दिया और सरकते हुए पैंट के उभरे हुए हिस्से पर आकर रुकी। मैंने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि दबाव देकर उनके लंड को देखा। उधर भैया ने भी मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे अपने से चिपका लिया। मैंने बिना कुछ सोचे उनके लंड को उंगलियों से टटोलना शुरू कर दिया।
उस वक्त भैया भी शायद मेरी हरकत को जान गये। तभी तो वो मेरी पीठ को सहलाने लगे थे। हिचकोले लेती ट्रेन जितनी तूफ़ानी रफ़्तार पकड़ रही थी उतना ही मेरे अंदर तूफ़ान उभरता जा रहा था। भैया की तरफ़ से कोई रिएक्शन न होते देख मेरी हिम्मत बढ़ी और अब मैंने उनकी जांघों पर से अपना सिर थोड़ा सा पीछे खींच कर उनकी ज़िप को धीरे धीरे खोल दिया। भैया इस पर भी कुछ कहने कि बजाय मेरी कमर को कस कस कर दबा रहे थे।
पैंट के नीचे उन्होने अंडरवियर पहन रखा था। मेरी सारी झिझक न जाने कहां चली गई थी। मैंने उनकी ज़िप के खुले हिस्से से हाथ अंदर डाला और अंडरवियर के अंदर हाथ डालकर उनके हैवी लंड को बाहर खींच लयी। अंधेरे के कारण मैं उसे देख तो न सकी मगर हाथ से पकड़ कर ही ऊपर नीचे कर के उसकी लम्बाई मोटाई को नापा। ७-८ इंच लम्बा ३ इंच मोटा लंड था। बजाय डर के, मेरे दिल के सारे तार झनझना गये। इधर मेरे हाथ में लंड था उधर मेरी पैंट में कसी बुर बुरी तरह फड़फड़ा उठी।
इस वक्त मेरे बदन पर टाइट जींस और टी-शर्ट थी। मेरे इतना करने पर भैया भी अपने हाथों को बे-झिझक होकर हरकत देने लगे थे। वो मेरी शर्ट को जींस से खींचने के बाद उसे मेरे बदन से हटाना चाह रहे थे। मैं उनके दिल की बात समझते हुये थोड़ा ऊपर उठ गई। अब भैया ने मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेरना शुरू किया तो मेरे बदन में करेंट दौड़ने लगा।
उधर उन्होने अपने हाथों को मेरे अनछुई चूचियों पर पहुंचाया इधर मैंने सिसकी लेकर झटके खाते लंड को गाल के साथ सटाकर ज़ोर से दबा दिया। भैया मेरी चूचियों को सहलाते सहलाते धीरे धीरे दबाने भी लगे थे। मैंने उनके लंड को गाल से सहलाया भैया ने एक बार बहुत ज़ोर से मेरी चूचियों को दबाया तो मेरे मुंह से कराह निकल गई.
हम दोनो में इस समय भले ही बात चीत नहीं हो रही थी मगर एक दूसरे के दिलों की बातें अच्छी तरह समझ रहे थे। भैया एक हाथ को सरकाकर पीछे की ओर से मेरी पैंट की बेल्ट में अपना हाथ घुसा रहे थे मगर पैंट टाइट होने की वजह से उनकी थोड़ी थोड़ी उंगलियां ही अंदर जा सकीं। मैने उनके हाथ को सुविधा अनुसार मन चाही जगह पर पहुंचने देने के लिये अपने हाथ नीचे लयी और पैंट की बेल्ट को खोल दिया। उनका हाथ अंदर पहुंचा और मेरे भारी चूतड़ों को दबोचने लगा। उन्होने मेरी गांड को भी उंगली से सहलाया। उनका हाथ जब और नीचे यानि जांघों पर पैंट टाइट होने के कारण न पहुंच सका तो वो हाथ को पीछे से खींच कर सामने की ओर लाये।
बाकी फ़िर … Hindi sex stories
दोस्तों ! सबसे पहले मैं Antarvasna Sex Stories आप सभी का धन्यवाद करना चाहूँगा कि आपने मेरी पिछली कहानी “इब तो बाड़ दे” का पहला भाग बहुत पसंद किया । मैंने उस कहानी में आपको बताया था कि कैसे मैंने अपने साथ ट्यूशन पढ़ने वाली मोना को चोदा था। उसकी चुदाई करने के बाद जब हम घर से बाहर निकले थे तो हमें ट्यूशन पढ़ाने वाली मास्टरनी अनीता सांगवान सामने से आती मिली थी। जिस तरह से वो हमें घूर रही थी मुझे लगा उसे पूरा शक हो गया है कि हमने उस मौके का भरपूर फायदा उठाया है।
मैंने मोना को मज़ाक में कह तो दिया था कि साली मास्टरनी को भी पटक कर रगड़ दूंगा पर वास्तव में मैं अन्दर से बहुत डरा हुआ था। सच पूछो तो मेरी गांड तो इस डर से फटी जा रही थी कि अगर मास्टरनी ने वो गीली चद्दर देख ली तो मैं तो मारा ही जाऊँगा। अब तो बस गोपी किशन का ही सहारा बचा था। अगले 2 दिन मैं ट्यूशन पर ही नहीं गया।
तीसरे दिन जब मैं शाम को उसके घर गया तो मास्टरनी ड्राइंग रूम में ही बैठी जैसे हमारा इंतज़ार कर रही थी। काँता आंटी भी पास बैठी थी। जिस तरीके से वो दोनों खुसर फुसर करती मुझे घूर रही थी मुझे लगा जैसे उनकी नज़रें नहीं कोई एक्स-रे मशीन से मेरी स्क्रीनिंग कर रही हैं। काँता आंटी उठ खड़ी हुई और मेरी और रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए अपने घर चली गई। अब मास्टरनी मेरी ओर मुखातिब हुई।
“हम्म … तुम कल नहीं आये जीत ?”
“वो … वो …” मेरे गले से तो कोई आवाज ही नहीं निकल रही थी।
“हम्म …?”
“वो … दरअसल मेरी तबियत खराब थी “
“क्यों तुम्हें क्या हुआ था ?”
“ब…. ब … बुखार था ?”
“वाइरल तो नहीं था ?”
“हाँ हाँ वही था !”
“तो एक दिन में ठीक कैसे हो गया ?”
“वो…. वो …” मैं क्या बोलता। मैंने अपनी मुंडी नीचे कर ली।
“उस छोरी न के हुआ ?”
“कौन … ?”
“हाय मैं मर जावां ? मैं उस छमक छल्लो मोना की बात कर रही हूँ ?”
“ओह … वो… वो … ओह … मुझे क्या पता ?” मैंने सर झुकाए ही कहा। मैं सोच रहा था अगर मैंने नज़रें मिलाई तो मास्टरनी पहचान लेगी।
“तन्नै ते नी कुछ कर दीया था उसतै ?”
“न … नहीं … नहीं मैंने कुछ नहीं किया !”
मुझे लगा मेरा गला सूख गया है। मेरे चेहरे से तो हवाइयां ही उड़ रही थी। लगता है हमारी चुदाई की पोल खुल गई है।
“तन्नै किस बात का डर मार रया फ़ेर ? (तो तुम इतना डर क्यों रहे हो ?)” मास्टरनी ने फिर पूछा।
“न… नहीं तो … मैं भला क… क्यों … डरूंगा… ?” मैंने थोड़ी हिम्मत करके जवाब दिया। मैंने देखा मास्टरनी मेरी पतली हालत देख कर मंद मंद मुस्कुरा रही है।
“एक बात बता तू मन्नै !”
“क्या ?”
“यो चद्दर गील्ली कीकर होई ?”
“वो… वो …?”
अब शक की गुन्जाइश नहीं रह गई थी। मास्टरनी को पता चल गया है। मैं मुंडी नीचे किये खड़ा रहा।
“कहीं पानी का गिलास तो नहीं गिरा दिया था ?”
मैं चुप रहा। थोड़ी देर बाद मास्टरनी ने फिर पूछा “पानी ढंग से पिया या केवल चद्दर पर ही गिराया ?”
“वो … वो … ?
“केवल तुमने ही पिया था या उस कमेड़ी ने भी पिया था ?”
“हाँ उसने भी पिया था “
“हम्म… उसको भी पानी अच्छा लगा ?”
पता नहीं मास्टरनी क्या पूछे जा रही थी। मुझे लगाने लगा कि मैं थोड़ा बच सकता हूँ। मेरी जान छूट सकती है। एक बार अगर बच गया तो हे गोपी किशन फिर कभी उस कमेड़ी की ओर देखूंगा ही नहीं पक्की बात है। मैं अपने खयालों में खोया हुआ था।
मास्टरनी ने फिर बोली “या छोरी तो घनी चुदक्कड़ निकली रै? ….. इसके तो बड़े पर निकल आये साली अभी से लण्ड खाने लगी है आगे जाकर पता नहीं क्या गुल खिलाएगी ?”
मुझे बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि मास्टरनी इस तरह के शब्द प्रयोग कर रही है। वो अपनी चूत को पाजामे के ऊपर से मसल और खुजला रही थी। आज उसने पतला सा कुरता और पाजामा डाल रखा था। उसकी साँसें तेज हो रही थी और आँखों में लाल डोरे से तैर रहे थे।
“उस कमेड़ी को ठीक से रगड़ा या नहीं ?” वह मेरी और देख कर हंसने लगी फिर बोली “मैं जानती थी जिस तरीके से वो अपनी गांड मटका कर चलती थी जरुर लण्डखोर बनेगी”
अब मेरी जान में जान आई। इतना तो पक्का है की मास्टरनी यह सब घर वालों को तो कम से कम नहीं बताएगी। मैं चुप उसे देखता ही रहा।
उसने फिर पूछा “उसे खून निकला या नहीं ?””वो … वो … हाँ आया था चद्दर पर भी लग गया था इसीलिए … वो… गीली …”
“हम्म … तेरे तो मज़े हो गए रे जीत … मैं तो तने बड़ा भोला समझ रई थी तू तो गज़ब का गोला निकला रे ?”
“वो दरअसल मैं आपका ही तो चेला हूँ ना ?” मैंने कह दिया।
“रै बावले चेला इस तरह थोड़े ही बना जावे सै?”
“तो कैसे बना जावे है ?”
“पहले गुरुदक्षिणा देनी पड़ी सै ?’
“आप जो मांगो दे दूंगा ?”
“हम … लागे सै इब तू बावली बूच नई रिया बड़ा सयाना हो गया ?”
मेरा दिल तो जोर जोर से धड़कने लगा था। लगता है मास्टरनी के मन में भी जरुर कुछ चल रहा है। हे गोपी किशन अगर मास्टरनी पट जाए तो बस मज़ा ही आ जाए। फिर तो बस दोनों हाथों में लड्डू क्या पूरी कन्हैया लाल हलवाई की दूकान ही हाथों में होगी।
उसने इशारे से मुझे अपनी और बुलाया। मैं उसके पास सोफे पर बैठ गया। उसने मेरी जांघ पर हाथ रख दिया और बोली “अच्छा चल सारी बात शुरू से बता कुछ छुपाने की जरुरत ना है। कैसे उस कमेड़ी के साथ खाट-कब्बडी खेली ? मैंने तो तुम्हें पूरे ढाई तीन घंटे दिए थे मज़े करने को ?” और कहते हुए उसने मेरी और आँख मार दी। मेरा राम लाल तो उछलने ही लगा था। और उसका उभार पैन्ट के अन्दर साफ़ दिखने लगा था। मास्टरनी ने अपनी जांघें आपस में कस रखी थी और एक हाथ से अपनी चूत को जोर जोर से मसल रही थी।
मैंने पूरी बात बता दी। इस दौरान मास्टरनी ने मेरा लण्ड पैन्ट के ऊपर से ही मसलने लगी। मेरा लण्ड तो खूंटे की तरह हो चला था अब। मास्टरनी की साँसें तेज होने लगी थी और मेरा शेर तो जैसे पैन्ट फाड़ने को तैयार था। अचानक मास्टरनी ने मेरी पैन्ट की जिप खोल दी और नीचे फर्श पर उकड़ू होकर बैठ गई। मुझे बड़ी शर्म भी आ रही थी और मेरी उत्तेजना भी बढती जा रही थी। मास्टरनी ने फिर पैन्ट के अन्दर हाथ डाल कर मेरे खूंटे जैसे खड़े लण्ड को बाहर निकाल लिया। उसकी तो आँखें फटी की फटी रह गई। मेरा लण्ड 7’ लम्बा मोटा ताज़ा लण्ड देख कर वो तो मस्त ही हो गई। आप तो जानते ही हैं कि मेरे लण्ड में एक ख़ास बात है उसका टोपा (क्राउन) बहुत बड़ा है। बिलकुल मशरूम की तरह है। मेरी भी उतेजना बढती जा रही थी और राम लाल तो मास्टरनी के हाथों में ऐसे उछल रहा था जैसे कोई चूहा किसी बिल्ली के पंजों में फसा अपनी जान बचाने को तड़फ रहा हो।
“वाह जीत तेरा राम लाल तो बहुत बड़ा और शानदार है ?” इतना कहकर मास्टरनी ने उसका एक चुम्मा ले लिए। राम लाल ने एक ठुमका लगाया। मास्टरनी ने उसे कस कर अपनी मुट्ठी में जकड़े रखा। “साली वो कबूतरी कैसे झेल गई इस मर्दाने लण्ड को ?”
एक बार फिर से उसने उस पर पुच्च किया और फिर उसे गप से मुँह में ले लिया। मैं तो जैसे सातवें आसमान पर ही था। जिस तरीके से मास्टरनी उसे चूस और चूम रही थी मुझे लगता है ये मास्टरनी भी एक नंबर की चुदक्कड़ है। चलो मेरी तो पौ बारह है। मैंने अपनी पैन्ट को ढीला कर दिया और अपने कूल्हे थोड़े से उठा कर पैन्ट नीचे कर दी। इससे मास्टरनी को सुविधा हो गई। और वो जोर जोर से मेरा लण्ड चूसने लगी। कभी मेरे अण्डों को मसलती कभी उन्हें भींचती कभी पूरा लण्ड मुँह में ले लेती और कभी उसे मुँह से बाहर निकल कर ऊपर से नीचे तक चाटती। उसकी गर्म साँसें मेरे पेट और पेडू पर पड़ती तो मैं रोमांचित हो जाता और मेरा शेर ठुमके पर ठुमके लगाने लगता। मास्टरनी तो बिना रुके उसे चूसे ही जा रही थी पता नहीं कितने दिनों की भूखी थी।
“य़ा … ….” मेरी सीत्कार निकलने लगी और राम लाल झटके पर झटके खाने लगा। मुझे लगा कि मेरा तो मोम पिंघल ही जाएगा। मास्टरनी मेरी इस हालत को जानती थी। उसने मेरा लण्ड पूरा का पूरा मुँह में भर कर मेरे कूल्हे पकड़ लिए। मेरा तनाव अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका था। मैंने कस कर उसका सर पकड़ लिया। मेरी बंद आँखों में तो सतरंगी तारे से जगमगाने लगे थे और फिर मेरी पिचकारी छूट गई। गर्म लावे से उसका मुँह भर गया। मास्टरनी गटागट उसे पीती चली गई। उसने तो जैसे मुझे पूरा का पूरा निचोड़ लेने की कसम खा रखी थी। उसने एक भी बूँद इधर उधर नहीं गिरने दी।
लण्ड अब सिकुड़ने लगा था। मास्टरनी ने एक आखिरी चुस्की लगाई और अपने होंठों पर जीभ फिराती हुई बोली,”वाह जीत, आज तो मज़ा ही आ गया एक कुंवारे लण्ड की गाढ़ी और ताज़ी मलाई तो बड़ी ही मजेदार थी। वाह … जियो मेरे सांड …?” कहकर मास्टरनी ने मुझे चूम लिया।
मुझे बड़ी हैरानी हुई कि इस नाम से तो मुझे मोना डार्लिंग पुकारा करती है इसे कैसे पता ?
“मैडम आपने तो मज़ा ले लिया पर मैं तो सूखा ही रह गया ना ?” मैंने उलाहना दिया।
“रे बावली बूच क्यूं चिंता कर रिया सै… अभी बड़ा टेम बाकी सै ? चिंता ना कर !” कहते हुए मास्टरनी बाथरूम में चली गई। मैंने अपनी पैन्ट पहन ली और उसका इंतज़ार करने लगा।
मास्टरनी कोई दस मिनट के बाद बाथरूम से बाहर आई। उफ़ … उसके बाल खुले थे। उसने अपने वक्ष पर लाल रंग का तौलिया लपेट रखा था जो उसकी चिकनी मोटी मोटी संग-ए-मरमर जैसी जाँघों और अमृत कलशों के अनमोल खजाने को छिपाने की नाकाम कोशिश कर रहा था। बस अगर तौलिया एक दो इंच छोटा होता तो उसकी रस भरी (चूत) का नज़ारा साफ़ दिख जाता। उसने तौलिये को नीचे से कस कर पकड़ रखा था। धीरे धीरे अपने नितम्बों को मटकाती और अपने दांतों में निचला होंठ दबाये मेरे पास आकर खड़ी हो गई। उसके होंठ काटने की कातिलाना अदा और चूतड़ों की थिरकन से तो मेरे राम लाल को जैसे फिर से जीवनदान मिल गया । वो तो फिर से सर उठाने लगा था। मैं तो उसके इस अंदाज़ को बस मुँह बाए देखते ही रह गया। उसका गदराया शरीर तो ऐसे लग रहा था जैसे कोई सांचे में ढली मूर्ति हो। वैसे तो मैं उसे रोज़ ही देखता था पर इस रूप में तो आज ही देखा था। उसके शरीर की गर्मी मैं अच्छी तरह महसूस कर रहा था। मुझे लगा जैसे मैं किसी आग की भट्टी के सामने खड़ा हूँ। मेरी तो जैसे साँसें ही जम गई मुझे लगा मेरा पप्पू फिर से घुड़सवारी के लिए तैयार होने लगा है।
“ओह … तन्नै फ़ेर या पैन्ट सी पऽऽन ली ? इब इसका के काम सै ? तार दे इसने !”
“आपने भी तो तौलिया लपेट रखा है ?”
“ओह …. रै मेरी बात और सै चल … सैड़ देसी अपणी पैन्ट और कमीज नै तार दे !”
मैंने थोड़ा शर्माते हुए पैन्ट कमीज उतार दी पर अपने राम लाल के ऊपर हाथ रख लिया। मैंने बनियान और कच्छा तो पहना ही नहीं था। मास्टरनी बोली “तुमने कभी सहस्त्रधारा का जल पिया है?”
सच पूछो तो मेरे कुछ समझ नहीं आया। मैंने गंगाजल और ब्रह्म सरोवर का जल तो सुना था पर यह नया जल पहली बार सुना था। जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने अपनी मुंडी ना में हिला दी।
मुझे लगा मास्टरनी मुझे फिर से मोटी बुद्धि का कहेगी या फिर ताऊ तो जरुर ही कहेगी पर मास्टरनी हंस पड़ी। मोती जैसे चमकते दांत और उसकी कातिलाना मुस्कान और होंठो को काटने की अदा ने तो मुझे अन्दर तक रोमांच से भिगो दिया था। मेरा मन कर रहा था कि उसे कस के अपनी बाहों में भर लूं और पटक कर अपना किल्ला गच्च से उसकी रसीली चूत में ठोक दूं पर मैं रुका रहा।
“हाय मैं मर जावां … मेरे बुद्धू बालम …” कह कर मास्टरनी ने मेरी और अपनी बाहें फैला दी। ऐसा करने से उसके चूंचियों पर अटका तौलिया खुल कर नीचे गिर गया और उसके मोटे मोटे कसे हुए गोल गोल चूचे अनावृत्त हो गए। उसकी घुन्डियाँ मूंगफली के दाने जितनी गुलाबी रंग की थी और एरोला कोई दो इंच का गहरे लाल रंग का। गोल गोल चूचे थोड़े से नीचे लटके से थे वर्ना तो वो मोना को भी पानी भरवा देती।
मैंने झट से उसे बाहों में भर लिया। उसकी साँसें तेज हो रही थी। उसने मेरा सर अपने हाथों में पकड़ लिया और मेरे होठों से अपने होंठ लगा दिए। मैं तो उन गुलाब की पंखुड़ियों को चूसने में मस्त ही हो गया। मेरा एक हाथ उसकी पीठ पर था और एक हाथ से उसके नितम्ब सहला रहा था।
वो तो बेसाख्ता मेरे होंठों को चूसे ही जा रही थी। मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी तो वो उसे कुल्फी की तरह चूसने लगी। यह तो अनोखा आनंद था। कभी वो अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देती कभी मैं अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता।
मैं तो इस चूसा-चुसाई में इतना खो गया था कि मेरा ध्यान उसकी चूत की ओर गया ही नहीं। यह तो भला हो मेरे राम लाल का कि वो अपनी तंद्रा से जग कर उसे सलाम बजाने लगा था। अब मैंने अपना एक हाथ उसके चूत पर फिराया। छोटे छोटे बालों से ढकी उसकी चूत पूरी गीली हो चुकी थी। मैंने जैसे ही उसकी चूत में अपनी एक अंगुली डालने की कोशिश की वो थोड़ा सा चिहुंकी।
“ऊईइ … मां …”
“क्या हुआ ?”
“ओह…. ऐसे नहीं चलो, उस पलंग पर चलो !”
“ओह…. हाँ …”
मुझे फिर अपनी बुद्धि पर तरस आने लगा। हम दोनों अब पलंग पर आ गए। पलंग पर नई चद्दर बिछी थी। मास्टरनी पलंग पर लेट गई। पर पता नहीं क्यों उसने अपनी चूत पर दोनों हाथ रख लिए और अपनी जांघें कस कर बंद कर ली। मुझे बड़ा अटपटा लगा कि अब शर्माने की कहाँ गुन्जाइश रह गई है। पर सयाने ठीक कहते हैं औरत कितनी भी काम के वशीभूत हो अपनी स्त्री सुलभ लज्जा नहीं छोड़ती।
खैर अब उसे चुदना तो हर हाल में ही था, थोड़ी देर या नखरे और सही। मेरा राम लाल तो हिलोरें ही मारने लगा था। मैं उसकी बगल में लेट गया और उसके चूचों पर हाथ फिराने लगा। मैंने एक चूची के अग्र-भाग पर अपनी जीभ फिराई तो उसकी हल्की सीत्कार ही निकालने लगी। अब मैंने उसे चूसना चालू कर दिया। एक हाथ से उसकी एक चूची को दबाता और दूसरे को जोर जोर से चूसता।
वो तो मस्त ही हो गई। आंखें बंद किये सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। मैंने एक एक करके दोनों आमों को चूसना चालू रखा। फिर मैंने धीरे से अपना एक हाथ उसकी चूत की तरफ बढ़ाया। मोटी मोटी फांकें सूजी हुई सी लग रही थी। मैंने थोड़ा नीचे खिसकते हुए अब अपनी जीभ उसके उरोजों की घाटियों से लेकर नीचे पेट और नाभि तक चाटना चालू कर दिया।
जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी चूत को छुआ तो उसकी एक किलकारी ही निकल गई। उसकी बंद जांघें स्वतः ही खुलने लगी और रस भरी दो पंखुड़ियां मेरी आँखों के सामने फ़ैल गई। उसके अन्दर वाली पत्तियाँ जरुर काली सी थी पर बाहरी फांकें गोरी गोरी थी जिन्हें छोटे छोटे काले घने झांटों ने ढक रखा था। मैंने एक चुम्मा उस पर ले ही लिया। मेरे नथुनों में एक मादक गंध भर उठी। और मास्टरनी की एक मादक सीत्कार निकल गई।
मास्टरनी आँखें बंद किये लेटी आह उन्ह… करने लगी। अब मैंने दोनों हाथों से उसकी चूत की फांकों को चौड़ा किया। अन्दर से चूत एक दम गुलाबी रंग की थी और उसके अन्दर का गीलापन तो ऐसे लग रहा था जैसे इसमें से पानी की सैंकड़ों धाराएं निकल रही हों। ओह … अब मेरी मोटी बुद्धि में सहस्त्रधारा का अर्थ समझ आया था।
मैंने अपने जलते होंठ उसकी फांकों के बीच लगा दिए। आह … नमकीन और कसैला सा स्वाद तो ठीक वैसा ही था जैसा मोना की चूत का था बस थोड़ी सी गंध अलग थी। मैंने अपनी जीभ को नुकीला बनाया और उसकी चूत की दरार पर ऊपर से नीचे तक फिराया। उसका दाना तो चेरी की तरह बिलकुल लाल था। मैंने अपनी जीभ उस पर फिराई और फिर उसे हल्का सा दांतों से दबाया तो मास्टरनी की उत्तेजना में एक चींख सी निकलते निकलते बची।
“रे ताऊ … ओह … जीत … चूस….. और जोर से चूस….. आह … य़ाआअ ईईईईईईईईई………………”
मैंने झट से उसकी चूत को मुँह में भर लिया और जोर जोर से चूसने लगा। मास्टरनी रोमांच में कांपने लगी थी। कभी वो अपने पैर उठाती और कभी नीचे पटकती। उसने मेरा सर कस कर अपने हाथों में पकड़ा था। और जोर जोर से अपनी चूत की ओर दबाने लगी। वह तो सीत्कार पर सीत्कार किये जा रही थी।
उसका शरीर एक बार थोड़ा सा अकड़ा और उसने मेरा सर इतने जोर से अपनी चूत पर दबाया कि मेरी तो साँसें ही कुछ क्षणों के लिए रुक सी गई। इसके साथ ही उसकी चूत ने 3-4 चम्मच गाढ़ा सा तरल द्रव्य छोड़ दिया। मैं तो उस सहस्त्रधारा के जल को पीकर निहाल ही हो गया।
मास्टरनी पता नहीं नशे जैसी हालत मन क्या क्या बड़बड़ा रही थी। पता नहीं उसे अचानक क्या सूझा वो मुझे परे धकेल कर उठ खड़ी हुई और इस से पहले कि मैं कुछ समझूं उसने मुझे धकेलते हुए चित लेटा कर अपने दोनों पैरों को मेरे कूल्हों के दोनों तरफ कर के एक हाथ में मेरा तना हुआ लण्ड पकड़ लिया और अपनी चूत पर घिसने लगी।
जैसे ही मेरे लण्ड का सुपड़ा उसकी चूत के छेद से टकराया मास्टरनी ने बिना देरी किये एक झटका सा लगाया और गच्च से मेरे लण्ड के ऊपर बैठ गई। पूरा का पूरा लण्ड जड़ तक एक ही झटके में उसकी चूत में समां गया। मास्टरनी की एक चीत्कार सी निकल गई।
“आईईईईईईईईईईईईईईई…………………………………………”
मास्टरनी ने लण्ड पूरा का पूरा अन्दर तो ले लिया पर मुझे लगा वो ज्यादा जोश में गलती कर बैठी है। उसे थोड़ा सा दर्द भी जरुर हुआ होगा पर वो मेरे सामने कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी। उसने अपनी आँखें बंद कर ली और चुपचाप ऊपर ही बैठी रही। कुछ समय बाद जब वो थोड़ी सामान्य हुई तब उसने नीचे झुक कर मेरे होंठों को चूमा और बोली,”रे जीत … तू तो पूरा सांड सै मेरी तो जान ही काड़ दी तन्नै !”
“क्यों … मास्टरजी का इतना बड़ा नहीं है क्या ?”
“अरै छोड़ …. वो तो पूरा नन्दलाल ही है। किसी काम का नहीं है। मैं तो इस चूत में अंगुली कर कर के कमली ही हो गई हूँ और वो देहरादून के जंगलों में फोरेस्ट अफसर बना अपनी गांड मरवा रहा है साला चूतिया कहीं का !”
मास्टरनी को ज्यादा जोश आ गया और फिर उसने जोर जोर से ठुमके लगाने शुरू कर दिए। उसके गोल गोल कसे हुए चूतड़ तो उसके झटकों के साथ थिरकने ही लगे थे। मैंने उसकी चूचियों को पकड़ कर मसलना चालू कर दिया तो वो थोड़ा सा नीचे हो गई और अपने उरोज मेरे मुँह पर लगाने लगी। मैं इतना भी मोटी बुद्धि का नहीं था मैंने झट से उसे मुँह में ले लिया और चूसने लगा। मास्टरनी की फिर से सीत्कार निकालने लगी।
“आह … आज कितने दिनों बाद एक मस्त लण्ड मिला है … या … जीवो मेरे सांड तूने तो मुझे निहाल ही कर दिया उम्म्म्म …” और एक बार फिर मास्टरनी ने मेरा सर पकड़ कर होंठों को चूम लिया।
ऐसा नहीं था कि सिर्फ वो ही धक्के लगा रही थी। मैं भी नीचे से अपने चूतड़ उठा उठा कर उसके धक्कों के साथ ताल मिलाने की कोशिश कर रहा था। मैंने अपने हाथ उसके नितम्बों पर फिराने चालू कर दिए। मास्टरनी कभी ऊपर उठती कभी झटके के साथ नीचे आ जाती। कभी थोड़ी देर के लिए मेरे ऊपर लेट सी जाती। तब मुझे उसके नितम्ब सहलाने का मौका मिल जाता।
मेरी बड़ी इच्छा हो रही थी कि एक बार अगर मुझे ऊपर आ जाने दे तो मैं इसके इन नितम्बों और कमर को पकड़ कर ऐसे झटके मारूं कि इसकी तो बस टैं ही बोल जाए। अचानक मेरी एक अंगुली उसकी गांड के छेद से टकरा गई। मैंने मस्तराम और अन्तर्वासना की कई कहानियों में गांड मारने के बारे में भी पढ़ा था। मैंने मन में सोचा मास्टरनी अगर एक बार मुझे भी गांड मार लेने दे तो हे गोपी किशन मैं तो बस सीधा बैकुंठ ही पहुँच जाऊं।
पर मास्टरनी तो अपनी ही धुन में अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिसे जा रही थी। पता नहीं उसे मेरे हलके हलके नुकीले झांटों से अपनी फांकों को रगड़ने में क्या मज़ा आ रहा था। मैंने उसकी गांड में अपनी तर्जनी अंगुली डाल दी। शायद उसकी चूत का रस फ़ैल कर उसकी गांड को भी गीला कर चुका था। अंगुली गच्च से अन्दर चली गई और मास्टरनी की हलकी चीत्कार निकल गई,”रे… ओह….. रे ताऊ यो के कर रिया सै …?
“क्यों क्या हुआ ?” मैंने पूछा।
“न … ना इस छेद को इबी ना छेड़ … इसका नंबर बाद मैं ? तू चिंता ना कर मैं दोनों छेदों में एक साथ भी डलवाऊँगी?”
चलो ठीक है। मुझे तसल्ली हुई कि बाद में ही सही मौका तो जरुर मिलेगा। मास्टरनी ने अब जोर जोर से धक्के लगाने चालू कर दिए। वो अपनी चूत को इस तरह से सिकोड़ रही थी जैसे अन्दर से चूस रही हो। मैंने सेक्स स्टोरीज में पढ़ा था कि बहुत ही अनुभवी और चुद्दकड़ औरतें ऐसा करती है। इससे उनको और अपने साथी को दुगना आनंद आता है और ढीला लण्ड भी अन्दर ठुमके लगाने लगता है। और मास्टरनी तो पूरी उस्ताद थी इस मामले में।
हमें कोई 20-25 मिनट तो जरुर हो ही गए थे। मुझे लग रहा था अब मैं खलास होने वाला हूँ। मैं ऊपर आने की सोच रहा था पर मास्टरनी ने मुझे नीचे दबोच रखा था। अब मास्टरनी ने जोर जोर से सीत्कार करना चालू कर दिया था और मुझे लगा मेरा लण्ड उसकी चूत ने इतनी जोर से अन्दर भींच लिया है जैसे गन्ना पेरने वाली मशीन गन्ने का रस निचोड़ लेती है। उसने एक किलकारी मारी और मेरे ऊपर ढेर हो गई।
मैंने उसकी कमर पकड़ ली और एक पलटी मारी तो मास्टरनी नीचे और मैं ऊपर हो गया। अब मुझे थोड़ा सांस आया। मैंने दोनों हाथों से उसकी कमर पकड़ कर दनादन धक्के लगाने चालू कर दिए। मास्टरनी आँखें बंद किये लेटी रही। मैं भी अंतिम पड़ाव पर था कितनी देर रुकता। मेरा भी ज्वालामुखी फट पड़ा और वीर्य की फुहारें अन्दर निकलती चली गई। मास्टरनी की ठंडी आहें निकलने लगी और उसकी अकड़न मंद पड़ने लगी। पर उसने अपनी बाहों की जकड़न ढीली नहीं होने दी।
कोई 10 मिनट हम इसी अवस्था में पड़े रहे। अब मेरा लण्ड सिकुड़ गया था और बाहर फिसल आया। उसकी चूत से वीर्य और कामरज बाहर निकल कर चद्दर को भिगोने लगा था। मास्टरनी ने मुझे उठ जाने का इशारा किया तो मैं उठ बैठा। मेरे लण्ड के चारों और भी वीर्य और उसकी चूत से निकला कामरज लगा था। मैं उसे धोने बाथरूम में चला गया।
जब मैं अपने लण्ड को साफ़ करके और उस पर थोडा सा सरसों का तेल लगा कर वापस आया तब भी मास्टरनी उसी मुद्रा में लेटी थी। वो अपनी चूत धोने बाथरूम में नहीं गई। मैंने उसे बाथरूम जाने को पूछा तो उसने मना कर दिया और बोली,”एक बार और मज़ा लेना है अभी !”
मेरा राम लाल तो दो बार निचुड़ चुका था। पर मेरा भी मन अभी नहीं भरा था। सच पूछो तो मास्टरनी ने मुझे चोदा था। मज़े तो उसने लिए थे। मैं एक बार उसे घोड़ी या डॉगी स्टाइल में चोदना चाहता था। मैं उसके नजदीक जाकर पलंग पर बैठ गया तो वो सरक कर मेरी जाँघों पर सर रख कर लेट गई और मेरे राम लाल को हाथ में पकड़ कर एक चुम्मा ले लिया। राम लाल तो अलसाया सा था। मुझे डर लगाने लगा था कि यह दो बार निचुड़ चुका है कहीं धोखा ही ना दे जाए।
पर कहते हैं औरत के हाथ में जादू होता है। जो लण्ड तीन इंच का होता है खूबसूरत औरत के हाथों में आते उम्मीद से दुगना हो जाता है भला मेरा क्यों ना होता। मास्टरनी ने उसे मसलना चालू कर दिया और फिर से अपने मुँह में लेकर चूसने लगी। राम लाल धीरे धीरे अपने रंग में आने लगा।
मेरे सारे शरीर में सनसनी सी होने लगी और लण्ड तनकर अपनी औकात में आ गया। मास्टरनी ने उसे मुँह से निकाल कर आज़ाद करते हुए कहा,”रे जीत, ले तेरा घोड़ा तो फेर तैयार हो गया सवारी करने को ?”
मुझे डर लगाने लगा कहीं मास्टरनी फिर से मुझे ना दबोच कर अपने नीचे ले ले। मैंने कहा,”तो आप घोड़ी बन जाओ ना मैं सवारी करता हूँ ?”
उसने मेरी और टेढ़ी आँखों से इस तरह देखा जैसे मैं मोटी बुद्धि का ना रह कर कालिदास बन गया हूँ। मास्टरनी झट से अपने घुटनों के बल हो गई और अपने गांड हवा में ऊपर उठा दी। उसने अपना सर तकिये पर रख लिया। अब मैं उसके पीछे आ गया। गोरी गोरी मुलायम जाँघों के बीच उसकी चूत की फांकें सूज कर मोटी मोटी हो गई थी। गांड का सुनहरा सा छेद कभी खुल और कभी बंद हो रहा था। उसकी दर दराई सिलवटें तो मुझे उसी में अपना लण्ड डाल देने का आमंत्रण दे रही थी।
मैंने अपने लण्ड को उसकी फांकों के बीच लगाया और उसकी कमर पकड़ कर जोर से एक धक्का लगा दिया। चूत पहले से ही गीली थी पूरा का पूरा लण्ड बिना किसी रुकावट के अन्दर चला गया।
मास्टरनी की चींख सी निकल गई। वो बोली “रे ताऊ थोड़ा सबर कर धीरे … के जल्दी सै ?”
मैं अब कहाँ रुकने वाला था। मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। धक्कों के साथ उसके भारी चूतड़ हिलते तो मेरा उत्साह दुगना हो जाता। मैंने उन पर जोर जोर से थप्पड़ लगाने चालू कर दिए। मास्टरनी तो सीत्कार पर सीत्कार करने लगी। मैं कहीं पढ़ा था कि जब कोई औरत उम्र में थोड़ी बड़ी हो तो उसे चोदते समय अगर उसके चूतड़ों पर हलकी चपत लगाई जाए या उसके होंठ या चूत की फांकों को दांतों से काटा जाए तो उसे दर्द के स्थान पर मीठी कसक के साथ और भी मज़ा आता है।
मैंने अपनी घुड़सवारी और एड लगानी चालू रखी। हर धक्के के साथ मेरा लण्ड उसकी बच्चे दानी तक चला जाता और मास्टरनी की आह … उन्ह … निकलने लगती।
“या … आह … उइईई ……मा … और जोर से … आज सारे कस बल निकाल दे इस चूत के … आह … बहोत तंग किया है इसने मुझे … आह …”
मेरा शेर तो इस समय खूंखार बना था। मैंने धक्कों की गति बढ़ा दी। 10-15 मिनट की इस दूसरी चुदाई में ही मास्टरनी के पसीने निकलने लगे। मेरा भी यही हाल था। पर राम लाल तो उसी तरह खड़ा था। सच कहूं तो चुदाई का असली मज़ा तो मुझे आज ही मिला था। उस कमेड़ी की चुदाई के समय तो हम दोनों ही डरे हुए थे और वो भी बस सारी चुदाई में आह…. उईइ…. हाई…. करती कसमसाती रही थी।
मास्टरनी की आँखें बंद थी। मास्टरनी जब निढाल हो गई तो उसने अपना जानामाना फ़ॉर्मूला आजमाया और अपनी चूत का संकोचन करने लगी। आप तो अनुभवी हैं जानते ही हैं कि जब चुदाई के दौरान औरत ऐसा करती है तो आदमी बहुत जल्दी अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। हमें 15-20 मिनट तो इस बार भी हो ही गए थे। मैं मास्टरनी की हालत जानता था इसलिए अब मैंने भी जोर जोर से धक्के लगा कर अपना तनाव ख़तम करने का सोच लिया।
उसके चूतड़ों की खाई और गांड के छेद को देख कर मुझ से रुका नहीं गया और मैंने अपनी एक अंगुली उसकी गांड में डालने की फिर से कोशिश की तो मास्टरनी बोली,”रे ताऊ, इब खिलवाड़ बंद कर … बस निकाल दे अपना माल मैं तो गई … उईईईइ…… म़ा …?”
मुझे लगा मास्टरनी झड़ गई है। अब तो उसकी चूत बिलकुल ढीली पड़ गई थी। मैंने 4-5 धक्के बिना रुके लगा दिए और उसके साथ ही मेरे लण्ड ने भी मुक्ति की राह पकड़ ली। मास्टरनी धीरे धीरे नीचे होती गई और मैं उसके ऊपर ही पसर गया। हम दोनों ने ही ध्यान रखा कि लण्ड बाहर ना निकले। मैंने अपने हाथ नीचे करके उसके चुचों को पकड़ लिया और अपनी टांगें उसके चूतड़ों के गिर्द कस ली।
पता नहीं कितनी देर हम इसी तरह लेटे रहे। मेरा लण्ड धीरे धीरे बाहर निकल आया। उसकी चूत से वीर्य और कामरज का मिलाजुला मिश्रण बाहर निकल कर चद्दर पर फ़ैल गया। हम दोनों ही अब उठ खड़े हुए। हमने देखा 8-10 इंच के गोल घेरे में चद्दर पर वो मिश्रण फैला है।
मास्टरनी ने मेरी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली,”रे हरियाने के सांड ! देख तूने चद्दर को फिर से खराब कर दिया। जा इब इसे बाथरूम में गेर दे !” “वो क्यों ?””रे ताऊ ! वो हरामजादी कान्ता कभी भी आ सकती है पूरे दो घंटे हो गए हैं ?””ओह … ?” मेरी भी हंसी निकल गई।
“वो कल का क्या प्रोग्राम है ?” मैंने पूछा।
“कल की कल देखेंगे !”
मास्टरनी चद्दर उठा कर बाथरूम में चली गई और मैं अपने कपड़े पहन कर घर की ओर भागा। मैं सोच रहा था कि मास्टरनी की दोनों छेदों में एक साथ लण्ड डलवाने वाली बात का क्या मतलब था ?
मै एक गाना एक गाना गुनगुनाता हुआ अपनी मस्ती और ख़ुशी में जा रहा था कि
आज मैं ऊपर आसमान नीचे
जल्दी से घर पहुंचा और नहाया और खाना खा कर पलंग पर लेट कर सोचने लगा आज जो हुआ और कल क्या होगा उसका इन्तजार करने लगा।
अगले दिन जब मैं मास्टरनी के घर पहुंचा तो किसी के बात करने की आवाज आ रही थी मास्टरनी किसी से बात कर रही थी मैं जब अन्दर पहुंचा तो वहां का नजारा देख कर तो मेरे पाँव के नीचे से जमीन ही निकल गई….
कहानी अभी बाकी है दोस्तो ! मैंने मास्टरनी के घर ऐसा क्या देखा यह आपको अगली कहानी मैं लिखूंगा. लेकिन तब जब आप लोग मुझे मेल करेंगे. लेकिन इतना बता देता हूँ कि जो भी देखा वो कम से कम मेरे लिए किसी 1000 वाट के कर्रेंट से कम नहीं था।
मेरी यह चुदाई आपको कैसी लगी ? मुझे यह तो जरुर बताना। Antarvasna Sex Stories
मैंने बहुत सारी कहानियाँ Antarvasna अन्तर्वासना पर पढ़ी, सभी कहानियाँ मुझे अच्छी लगी. खास तौर से अगम्यागमन भाग पसंद है.
मैं भी अन्तर्वासना डॉट कॉम के माध्यम से अपना अनुभव आप के सामने रखता हूँ.
सबसे पहले मैं आप लोगों को पात्र-परिचय करा दूँ!
संजय : 25 साल, शादीशुदा युवक
मनोहर : संजय के पिताजी
सीता देवी : संजय की माताजी
सुष्मिता : संजय की बुआ
सुरेन्द्र : संजय के फ़ूफ़ा (सुष्मिता बुआ के पति)
सविता : 22 साल, संजय की बहन
निर्मला : 22 साल, संजय की बुआ की लड़की
अशोक : 27 साल का संजय की बुआ का लड़का
सुधा : 26 साल की संजय की भाभी (अशोक की बीवी)
सब लोग मुंबई में ही रहते हैं : संजय का परिवार मीरा रोड पर और बुआ का परिवार रहता है अंधेरी वेस्ट पर!
यह बात छः महीने पहले की है जब संजय के पिताजी मनोहर ने सुरेन्द्र से दो लाख रुपए कुछ महीने पहले उधार लिए थे.
तो एक दिन पिताजी ने संजय को दो लाख रुपए से भरा बैग देकर कहा- ज़ाओ अपनी बुआ के घर जा कर यह दे आओ.
संजय नाश्ता करके बैग लेकर सीधा अपनी बुआ के घर पहुँच गया. समय दोपहर का एक बजा होगा.
आगे की कहानी संजय की जुबानी!
मैंने डोर-बेल बजाई लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला. मैंने 3 बार कोशिश की लेकिन किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला. मैंने दरवाज़े को धक्का दिया तो दरवाज़ा खुल गया, मैं जूते निकाल कर दरवाज़े को बंद करके सीधा अंदर गया और बुआ को आवाज़ देने लगा.
फिर मैं सीधा किचन में गया. वहाँ पर भी कोई नहीं था. फिर मैंने बुआ के बेडरूम के पास जा कर देखा कि बेड रूम लॉक है. मैं वहाँ से निर्मला के बेडरूम के पास गया और दरवाज़े को धकेला, दरवाज़ा खुला ही था. मैं अंदर गया और देखा कि निर्मला सिर्फ़ लाल रंग की पेंटी पहने हुए थी और अपने बाल तौलिये से सुखा रही थी.
वाह! क्या नज़ारा था! क्या मम्मे-चूची थी- एकदम दूध की तरह सफेद और गोल-गोल और कड़क और उसका फिगर- वाऽऽह! 32-34 मम्मे, 25 कमर और 34 गाण्ड!
और मेरा लंड पैन्ट में खड़ा होने लगा. मेरे अंदर की वासना जाग गई क्योंकि मैंने एक महीने से चुदाई नहीं की थी क्योंकि मेरी पत्नी की तबीयत खराब चल रही थी और डॉक्टर ने साफ मना किया था.
मैंने सोचा- मस्त माल है क्यों ना मजा ले लूं! मैंने बैग को नीचे रखा और सीधा निर्मला के पीछे गया और चूचियों पर हाथ रख कर गर्दन पर चुम्बन करने लगा.
निर्मला एक दम घबरा गई और मेरा हाथ पकड़ कर चिल्लाई- कौन हो तुम? यह क्या कर रहे हो? निकल ज़ाओ मेरे कमरे से बाहर!!
तो मैंने उसके कान में धीरे से कहा- मैं हूँ तुम्हारा संजू! ( सब लोग मुझे संजू कहकर बुलाते थे)
संजू!! (उसने मेरी आवाज़ से पहचान लिया था) तुम यह क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- कुछ नहीं!
तुम अंदर कैसे आए?
मैंने कहा- दरवाज़ा खुला था और मैंने जब बुआ और तुमको आवाज़ लगाई तो किसी ने जवाब नहीं दिया तो मैं तुम्हारे कमरे में देखने आया कि तुम हो या नहीं! और अंदर आकर देखा तो तुम नंगी खड़ी हो.
इतना कहते ही मैंने फिर निर्मला को अपनी बाहों में लिया और चूची पर हाथ रख कर धीरे धीरे मसलने लगा और उसकी तारीफ करने लगा- तुम कितनी सुंदर हो! ऐसी सुंदर लड़की मैंने आज तक नहीं देखी. गले पर चूमने लगा और लंड को उसकी गाण्ड पर रगड़ने लगा.
निर्मला छटपटाने लगी और बोली- मुझे छोड़ दो भैया!
मैंने कहा- निर्मला, प्लीज़!
और एक हाथ नीचे ले जा कर उसकी पेंटी में डालने लगा और बोला- निर्मला तुम असल में अप्सरा से भी बहुत सुंदर हो! अगर तुम मेरी पत्नी होती तो मैं तुमसे ही चिपका रहता! एक पल भी अलग नहीं होता.
इतने में निर्मला ने मुझे धक्का दिया और कहने लगी- नहीं भैया! यह पाप है आप मेरे साथ ऐसा नहीं कर सकते! तुम अपनी बहन के साथ ऐसा नहीं कर सकते!
मैंने कहा- मैं तुम्हारा भाई नहीं हूँ, हम आज से हम दोस्त हैं बॉय फ्रेंड और गर्ल फ्रेंड की तरह! और दोस्ती में यह सब ज़ायज़ है.
मैं अपने दोनों हाथों से निर्मला के चेहरे को पकड़ कर चूमने लगा और एक हाथ से बाईं बूब को मसलने लगा. मैंने फिर निर्मला को बेड पर लिटा लिया और निर्मला के उपर आकर चूची को मुँह में लेकर को चूसने लगा और एक हाथ को चूत के ऊपर रख कर मसलने लगा.
दोस्तो, अब निर्मला ने साथ देना शुरू कर दिया और धीरे धीरे बोलने लगी- नहीं भैया! प्लीज़ मत करिए!
और मैंने खड़े होकर जल्दी से अपने कपड़े उतारे और पूरा नंगा हो गया. फिर मैं निर्मला के ऊपर आया और उसको बाहों में लेकर आंख से आंख मिलाकर कहने लगा- वास्तव में तुम बहुत सुंदर और सेक्सी हो! आई लव यू! निर्मला आई लव यू! निर्मला आज मैं बहुत खुश हूँ कि एक अप्सरा जैसी लड़की के साथ मस्ती कर रहा हूँ!
वो अपनी आँखें बंद करके बोली- भैया आप बहुत गंदे हो! मैं आपके साथ कभी भी बात नहीं करूंगी!
मैंने कुछ नहीं कहा और एक हाथ से चूची की घुंडी को ज़ोऱ-ज़ोऱ से मसलने लगा और वो छटपटाने लगी और सिसकारी निकालने लगी- ओइए माआआआ ओइए! माआआआआआ!
मैंने भी उसे चूमना चालू कर दिया और वो भी साथ देने लगी. मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाली तो वो भी मेरी जीभ को चूसने का प्रयास करने लगी. करीब 5 मिनट के बाद मैंने उस का हाथ लेकर मेरे लंबे और मोटे लंड पर रख कर कहा- लो मेरे लंड से खेलो!
वो शरम के मारे आंख बंद करते हुए हाथ छुड़ाकर बोली- नहीं! मैं नहीं खेलूंगी, तुम मुझे छोड़ दो!
मैंने कहा- एक बार हाथ में लोगी तो फिर कभी नहीं छोड़ोगी!
और उसको ज़बरदस्ती हाथ में पकड़ा दिया और उसका हाथ पकड़ कर हिलाने लगा. मेरा लंड करीब 9 इंच का है और हाथ लगने से और भी टाइट और लंबा होकर तड़पने लगा. निर्मला उसको देख कर घबरा गई और बोली- यह तो बहुत ही बड़ा है! मैं नहीं लूंगी अपने हाथ में! मुझे डऱ लगता है!
मैंने कहा- कैसा डर? तुम एक जवान लड़की हो! इस लंड को आज कल की लड़कियाँ अपनी चूत में लेने के लिए तड़पती हैं तुम इतनी बड़ी हो कर भी डरती हो? कल जब तुम्हारी शादी होगी और तुम्हारा पति तुमको सुहागरात में चोदेगा तो तुम क्या करोगी? डर के मारे तुम वापस अपने मायके आओगी या फिर पति से चुदवाओगी?
निर्मला बोली- तुम इतनी गन्दी बात क्यों कर रहे हो? मुझे तो बहुत शरम आ रही है, प्लीज़ ऐसी गंदी बात मत कऱो!
मैंने कहा- निर्मला तूने कभी अपनी मम्मी और डैडी की चुदाई देखी है?
दोस्तो, मैं उसकी शरम को हटाना चाहता था और उसको पूरी तरह से उकसा रहा था और मैं उसका हाथ अपने लंड पर रख कर धीरे धीरे से सहलाने लगा था.
तो वो बोली- नहीं!
इसलिए तो तुम को मालूम नहीं है कि चुदाई करते समय किस किस तरह की बातें होती हैं!
उसने मुझसे पूछा- भैया, आप भी भाभी के साथ ऐसे ही बातें करते हो?
मैंने कहा- हाँ! इससे भी ज्यादा गंदी!
तो वो आश्चर्य-चकित होते हुए बोली- आपको शरम नहीं आती?
मैंने कहा- पहले बहुत शरम आती थी, अब नहीं! क्योंकि हम लोगों आदत पड़ गई है और हमको सिखाने वाली कौन है, तुमको पता है? नहीं? अगर बता दिया तो तुम पागल हो जाओगी सुन कर! और शायद तुम मेरा विश्वास भी नहीं करोगी!
तो वो बोली- कौन है?
मैंने कहा- पहले तुम अन्दाज़ा करो! बाद में मैं तुम्हें बताऊँगा!
वो बोली- तुमको बताना हो तो बताओ, नहीं तो भाड़ में जाओ!
मैंने कहा- बताता हूँ.
और बोल पड़ा- तुम्हारी मम्मी! मेरा मतलब- बुआ!
तो बोली- मेरी मम्मी?
मैंने कहा- हाँ! तेरी मम्मी!
मैं नहीं मानती!
मैंने कहा- मत मानो! लेकिन मैंने तुम्हें अगर सबूत दिया तो तुम मुझे क्या दोगी?
वो बोली- पहले सबूत, बाद में मैं तुझे क्या दूँगी, तुम को बाद में पता चल जाएगा!
तो मैंने कहा- तुम को एक काम करना पड़ेगा!
क्या, कैसा काम? मैं कोई काम नहीं करूंगी!
मैंने कहा- ऐसा वैसा कुछ नहीं बस मेरी आइडिया मानो और मैं जो कहूँ, तुम वैसा करो!
दोस्तो, मैं बातें करते हुए उसकी चूत में अंगूठाअ और उंगली डाल कर दाने को मसलने लगा था, वो बातें करते हुए तड़प रही थी और मेरे को बोल रही थी कि छोड़ दो भैया प्लीज़! आप ऐसा मत करो! मुझे बहुत दर्द हो रहा है! आप बहुत खराब हैं!
मैंने उसे कहा- आज रात को जब सब लोग सो जाए तो तुम बिना आवाज़ किए ही मम्मी के कमरे के दरवाजे पर अपना कान लगा कर उनकी बातें सुनना! तभी तुम को पता चलेगा कि कौन सच्चा है और कौन झूठा है!
तो बोली- ठीक है! मैं आज ही पता कर लूंगी!
मैं चूत में उंगली डाल कर चूत के दाने को मसलने लगा और अब वो मेरे काबू में आने लगी और मीठी मीठी सिसकारी लेने लगी. उसकी चूत से पानी भी बहने लगा था. मैंने अब नीचे आकर उसकी चूत को हाथों से खोला और चूत के पास मुँह रख कर चूत को सूंघने लगा.
वाह! क्या मीठी सुगंध थी! ऐसी सुगंध तो मोंट ब्लांक के पर्फ्यूम में भी नहीं आती होगी! मैं तो पूरा मदहोश हो गया और स्वर्गलोक के कमल के फूल की कल्पना करने लगा.
तभी निर्मला बोली- भैया, वहाँ मुँह लगाकर क्या कर रहे हो?
मैंने कोई ध्यान नहीं दिया और मैं चूत सूंघने में मस्त था. तो निर्मला मेरे बाल खींच कर बोली- भैया, क्या कर रहे हो?
मैंने सिर उठा कर कहा- कुछ नहीं डार्लिंग! तुम्हारी चूत ने तो मुझे पागल कर दिया है! यह कह कर मैं उसकी चूची चूसने लगा और उंगली को चूत में डाल कर आगे पीछे करने लगा. तभी वो बोली- भैया, मुझे कुछ हो रहा है! प्लीज़ आप मुझे छोड़ दो!
मैंने कहा- क्या हो रहा है?
तो बोली- मेरी चूत से कुछ आने वाला है!
मैंने कहा- प्लीज़ रुको! और मैं मुँह को नीचे ले कर चूत में जीभ डाल कर चूत को चाटने लगा औऱ एक हाथ से उसकी चूची को मसलने लगा और वो पूरी पागलों की तरह होकर बोली- प्लीज़ भैया! जल्दी कऱो! नहीं तो मैं मर जाऊँगी!
मैं जल्दी जल्दी उसकी चूत को चाटने लगा और हाथ से उसकी चूची मसलने लगा. करीब पाँच मिनट में ही वो ज़ोऱ से आऽऽऽऽ आऽऽऽऽऽ कर के झड़ गई और सारा चूतरस (प्रेमरस) मेरे मुँह में छोड़ दिया. मैंने पूरा माल चाट चाट कर साफ किया.
तभी मैंने उससे पूछा- मजा आया या नहीं?
तो शरमाते हुए बोली- भैया प्लीज़!
मैंने कहा- अब आगे का खेल खेलें या नहीं?
तो बोली- इससे आगे का खेल कौन सा है?
मैंने उसे सीधे ही कहा- अब मैं तुझे चोदूँगा!
तो बोली- कैसे?
मैंने लंड हाथ में लेकर हिलाते हुए उसकी चूत पर हाथ रखकर कहा- मैं इसे तुम्हारी चूत में डाल कर ज़ोऱ से चोदूँगा!
तो बोली- भैया, प्लीज़ आप अभी मुझे छोड़ दो! आप कल कर लेना!
मैंने कहा- क्यों?
तो बोली- मुझे कहीं जाना है! और मैं पहले ही लेट हो गई हूँ! प्लीज़ मुझे जाने दें, मैं आपसे वादा करती हूँ!
तो दोस्तो, मैंने भी कोई जबरदस्ती न करते हुए उसके चूचुक को मुँह में लेकर हल्का सा काट कर कहा- मैं तुझे बहुत प्यार करता हूँ, मैं तेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं करूंगा! तुम जब तुम्हारी मर्जी हो, मुझे बुला लेना, मैं हाज़िर हो जाऊँगा!
मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर आकर हाल में बैठ कर टीवी. चला कर सोफ़ा पर बैठ गया. तभी वो पाँच मिनट के बाद निर्मला बाहर आई, मुझसे बोली- तुम आए क्यों थे?
मैं भी भूल गया था कि मेरे पास कैश का बैग था. मैंने कहा- तुम्हारे कमरे में मेरा कैश का बैग पड़ा है, मैं कैश देने आया था. लेकिन बुआ घर में नहीं थी तो मैंने सोचा कि तुम को दे दूँ. तो बोली- बैग कहाँ है?
मैंने कहा- तुम्हारे कमरे में कुर्सी के पास रखा है, तुम मुझे बैग ला कर दे दो.
निर्मला बैग लेने कमरे में गई. मैं भी पीछे गया और निर्मला को पकड़ कर घुमाया और उसके वक्ष मसलते हुए चूमने लगा. वो भी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर घुमाने लगी. करीब़ पाँच मिनट के बाद हम अलग हुए और मैंने बैग निर्मला के हाथ में देकर कहा- यह बैग अपने पापा को दे देना और सेल पर बात करा देना! और मैंने अपना सेल नम्बर उसे दे दिया.
और मैंने भी उसका सेल नम्बर ले लिया. उसको कहा- यह बात तुम किसी से मत करना और मैं भी किसी से नहीं कहूँगा, क्योंकि इसमें तुम्हारी और मेरे खानदान का इज़्ज़्त का सवाल है.
निर्मला बोली- मैं नहीं कहूँगी!
मैंने कहा- तुम्हारी फ्रेंड्स को भी नहीं बताना!
वो बोली- नहीं बताऊँगी भैया! आप मुझे इतना भी बेवकूफ़ मत समझो!
मैंने कहा- ठीक है! तुम मुझे फोन करोगी या मैं तुझे फोन करूँ?
तो बोली- मैं तुझे फोन करूंगी!
मैंने कहा- प्रॉमिस?
तो बोली- प्रॉमिस!
मैंने कहा- बाय!
और मैं घर से निकल गया और सीधा घर आकर सो गया. कब रात के नौ बजे, मुझे पता ही नहीं चला. मम्मी ने मुझे जगाया. मैं खाना खाकर घूमने चला गया, रात को ग्यारह बजे घर आकर सो गया.
अगले दिन मैं फोन का इन्तज़ाऱ करने लगा.
कहानी के अगले भाग की प्रतीक्षा करें! शीघ्र ही अन्तर्वासना पर प्रकाशित होगी. Antarvasna
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