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उस गांव से मेरा ट्रांसफर 45 किलोमीटर दूर एक गांव में हो गया था।
यह गांव थोड़ा बड़ा था और यहां के लोग थोड़े पढ़े लिखे और सुखी सम्पन्न थे।
गांव के लोगों के पास खेती के लिए काफी बड़ी जमीनें थी और लोग राजकीय पहुंच भी रखते थे।
खैर जहां समृद्धि होती है वहां टकराव भी होता है.
तो इस गांव में ताकतवर लोगों के गुट बने हुए थे और ये गुट आपस में अक्सर लड़ते रहते थे.
तो यह गांव किसी भी कर्मचारी के कठिन पर माल वाला पोस्टिंग माना जाता था।
मुझे मेरे साथी कर्मचारियों ने इस गांव के बारे में यह सब बताया था- तुम जैसे सीधे सादे आदमी को इस गांव में नौकरी करना मुश्किल है। यहां के लोगों की पहुँच ऊपर तक होने से वे हमारे जैसे छोटे कर्मचारियों को दबा के रखते हैं।
अब मेरा इस गांव से पाला पड़ ही गया था तो सोचा कि जो होगा देखा जायेगा।
मैंने वहां के पुराने पटवारी से चार्ज लिया और काम देखने लगा।
दूसरे दिन गांव के सरपंच से मेरी मीटिंग थी।
सरपंच एक महिला थी.
उसने मिठाई का डिब्बा देकर मेरा स्वागत किया और कहा- आपको हम यहां कोई परेशानी नहीं होने देंगे. हम सब साथ मिल कर काम करेंगे. आप भी हमारा साथ दीजिएगा।
मुझे काफी अच्छा लगा और मैंने महसूस किया कि सरपंच काफी होशियार महिला थी।
बाद में जानने को मिला कि सरपंच तो भले दिल की और अच्छी है पर उसका पति गांव का बाहुबली था और सरफिरा भी!
उसका गुट काफी बड़ा और ताकतवर था और काफी लड़ाई झगडे के बाद उसे सरपंच का पद दिलवाया था।
अगले कुछ दिनों में गांव के बाकी गुट वाले भी मुझसे मिलने आये और उन सबकी मुझसे समर्थन के लिए मांग थी तथा अप्रत्यक्ष रूप से धमकी भी थी की मैं उन्हें ही समर्थन करूं।
इस गांव में शुरु से ही मैंने अच्छे से कामकाज चालू किया तो लोगों के काम समय से होने लगे।
मेरे पहले के पटवारी गांव के कोई ना कोई गुट में मिल जाते थे और काम कराने के पैसे भी लेते थे तो आम लोगों में नाराजगी रहती थी।
वैसे भी गांव के गुट वाले अपनी पसंद का ही पटवारी का गांव में पोस्टिंग करवाते थे।
मैं सभी का काम अच्छे से समय पर और बगैर पैसे लिए करने लगा तो एक दो महीने में ही मेरी गांव में काफी अच्छी छवि उभर आई थी।
दूसरी तरफ दो महीने से मुझे कोई चूत नहीं मिली थी तो मेरा बुरा हाल था।
रश्मि की बहुत याद आती थी, साथ में नम्रता की गोरी और फातिमा की काली चूत भी मुझसे भूली नहीं जा रही थी।
मैंने रश्मि को वचन दिया था तो मैं उस गांव की तरफ जाना नहीं चाहता था।
हालांकि नम्रता और फातिमा की चूत तो मुझसे चुदाने को आज भी तैयार थी।
पर मैंने अब इसी गांव में चूत ढूँढना का तय किया।
यह इस गांव के हिसाब से मुश्किल और मेरे लिए ख़तरनाक भी था क्योंकि पकड़ा गया तो इस गांव के लोग जान से भी मार सकते थे।
पर मेरे लिए इस गांव में किस्मत ने पहले से अच्छा तय करके रखा था।
मैं नयी जगह और कामकाज के चलते अब तक लोंडियाबाजी में नहीं पड़ पाया था. पर अब मैंने गांव में चूत ढूँढना शुरु किया।
पहले तो मैंने सरपंच के बारे में सोचा।
वह 35 साल की घरेलू महिला थी. ऐसे तो वह काफी गोरी थी थोड़ी सी मोटी पर उसका चेहरा खास मुझे प्रभावित नहीं कर पाया. वैसे भी वह मेरा छोटे भाई की तरह ख्याल बहुत रखती थी तो मेरी नीयत उसके लिए खराब नहीं हो पायी।
मैंने दूसरी भाभियों और लड़कियों के बारे में सोचा।
कुछ भाभियां और लड़कियां मेरे पास काम करवाने अक्सर आया करती थी तो उसमें ही जुगाड़ करने की फिराक में रहने लगा।
दो महीने बाद एक बार मैं ऑफिस के दूसरे कमरे की खिड़की खोल रहा था जिसे कभी कभार ही खोलते थे क्योंकि उस कमरे में पुरानी फाइलें और रेकोर्ड ही रखते थे।
मुझे एक पुरानी फाइल की जरूरत पड़ी थी तो मैं उस कमरे में गया और वहां की खिड़की खोली।
खिड़की से बाहर थोड़ी ही दूर एक जवान औरत कपड़े सुखाती दिखी।
उसकी पीठ मेरी तरफ थी पर मैं तो उसे देखता ही रह गया।
उसका बदन कसा हुआ गठीला और एकदम गुलाबी था जिससे मेरे पैंट में हरकत सी होने लगी।
काफी देर तक मैं उसे निहारता रहा।
फिर वह मेरे सामने घूमी तो देखा कि मैं इसे जानता था।
उसका नाम नाम रेखा था, वह मेरे पास कुछ काम के लिए तीन दिन पहले ही आयी थी।
रेखा सरपंच की रिश्ते में दूर की देवरानी थी और सरपंच के मायके के गांव की ही थी तो सरपंच से उसकी काफी बनती थी।
सरपंच ने मुझे उसका काम जल्दी निपटाने का अनुरोध भी किया था।
काम में व्यस्त होने की बजह से मैंने उस पर ध्यान नहीं गया था पर आज उसका कामुक बदन देख कर मेरे तो तोते उड़ गये थे।
मैंने तुरंत ही एक प्लान बनाया और सरपंच के जरिए उसे संदेश दिया कि उसके दिये कागज में एक दो कागज कम हैं.
तो वह दूसरे दिन ऑफिस आ गयी।
ऑफिस में कोई नहीं था, वह अपने छोटे बच्चे के साथ आयी थी।
मैंने उसे बहुत अच्छी तरह से निहारा।
आज उसने सर पर घूंघट नहीं निकाला था तो मैं जी भर कर उसे निहारता रहा।
शायद उसे भी इस बात का अंदेशा हो गया था।
मैंने उससे हंसते हुए काफी बातें की.
उसने कहा- अरे साहब, ऐसे छोट मोटे कामों के लिए थोड़ा बुलाते हैं आप खुद ही निपटा लेते ना!
वह भी थोड़ी बातूनी और मजाकिया स्वभाव की निकली।
शाम को घर आकर मुझे उसकी कल्पना करते हुए हाथ हिला के आग को शांत करना पड़ा।
रेखा छब्बीस साल की थी और उसका एक चार साल का बच्चा भी था.
उसका फीगर करीब 36-32-34 का होगा।
उसके नाक नक्श ऐसे कि बोलीवुड की हीरोइन से टक्कर ले सकें।
वह ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी पर काफी होशियार थी।
मैंने सोचा कि पति ने भी क्या किस्मत पायी थी।
अब मैं रोज उस कमरे की खिड़की से रेखा को निहारने लगा।
वह अपने पति और बच्चे के साथ अलग रहती थी, उसके घर से सट कर ही उसके ससुर और जेठ के भी घर थे।
उसका घर का मुख्य द्वार बिल्कुल मेरे ऑफिस के पीछे ही पड़ता तो मैं खिड़की से ही उसके घर में भी देख सकता था।
मैंने कई बार कपड़े सुखाते या झाड़ू निकालते समय उसकी ब्रा और क्लीवेज भी देखी थी।
अब उसकी चूत मिल जाए तो जन्नत मिल जाए।
ऐसे ही तीन चार महीने निकल गये।
उसे भी शायद पता लग गया था कि मैं खिड़की से उसे झांकता हूँ।
वह अब मेरे सामने मुंह रख कर कपड़े सुखाती थी और कभी मुस्कुराती भी थी।
बात यहीं आकर रुक गयी थी, कुछ आगे नहीं बढ़ पा रही थी।
उससे बात करने की मेरी हिम्मत भी नहीं हो रही थी।
फिर समय ने करवट बदली और वह एक बार शाम को पांच बजे के आसपास सरपंच से मिलने ऑफिस आयी।
सरपंच ने उसे पारिवारिक काम से बुलाया था।
वैसे मेरे ऑफिस में दोपहर के बाद ज्यादा काम नहीं रहता था पर सरपंच ने अब दोपहर के बाद ऑफिस में बैठना शुरू किया था।
अब यह सिलसिला चल पड़ा की वह सरपंच के साथ गप्पे लड़ाने ऑफिस आ जाती थी।
मेरा टेबल सरपंच के पास ही था तो मैं उसे देखते रहता था और उनकी बात सुनता था।
असल में सरपंच अपने छोटे भाई के लिए रिश्ता ढूँढ रही थी. उसी चक्कर में वह रेखा को बुलाती थी कि फलाना गांव में फलाने आदमी की बेटी अच्छी है।
सरपंच मुझे बहुत मानती थी तो उन दोनों की बातों में मुझे भी शामिल करती थी.
कभी कभी मज़ाक भी हो जाता था।
रेखा बहुत बातूनी थी और हमेशा मजाकिया बातें करती रहती थी।
मैं रेखा को टार्गेट करके बातों के शोट मारता तो वह भी मुझे करारे जवाब देती थी।
सरपंच हमारी बातों का मज़ा लेती थी।
तीन महीने तक ऐसा चलता रहा।
एक बार वह ऑफिस में आयी तो मैं अकेला ही था.
सरपंच किसी काम से बाहर गयी हुई थी.
तो वह वापिस जाने लगी.
उसी वक्त चाय वाला लड़का चाय लेकर आया.
तो मैंने रेखा को रोका और चाय पीने को बोला.
तो वह रुक गयी।
चाय पीते पीते वह बोली- विशाल जी, आपने अब तक सगाई क्यों नहीं की? कोई पसंद नहीं आयी क्या?
मैंने कहा- अभी मेरी उम्र ही क्या है … शादी वादी करके क्या फायदा!
ऐसे थोड़ी देर बात हुई.
फिर जाती हुई वह बोली- जल्दी से कोई ढूँढ लीजिए, कब तक आप यों ही खिड़की से झांकते रहोगे।
मैं कुछ समझ पाऊं … उससे पहले वह इतना बोल कर झट से चली गई।
मुझे समझ आ गया कि वह भी मुझे लाइन दे रही थी।
दूसरे दिन जब मैं खिड़की से उसे झांकने गया तो देखा कि आज वह मेरे सामने ही चेहरा करके मुस्कुराती हुई कपड़े सुखा रही थी।
जाते जाते बाल्टी में बचा पानी उसने जोरदार मुस्कान के साथ मेरी तरफ फेंका।
मैं समझ गया अब इसकी चूत दूर नहीं है।
अब वह खिड़की के पास आकर मुझसे मज़ाक भी कर लेती।
मैंने उसे कई बार शहर घूमने आने का न्योता दिया.
पर वह हमेशा अपने पति के साथ ही शहर आती थी।
एक बार उसने कहा- मेरी मौसी शहर में रहती हैं और मैं उनके घर चार पांच दिन के लिए रहने जाऊँगी.
मौसी के घर का जो पता उसने बताया, वह स्थान मेरे घर से आधा किलोमीटर दूर था।
उसी दौरान मेरी भी दो दिन की छुट्टी थी।
उसने कहा- चलो आप बहुत दिन से निमंत्रण दे रहे थे तो आपकी मेहमान नवाजी भी देख लेते हैं।
मैंने उसे शहर में पास वाले पार्क में मिलने के लिए कहा।
आखिर वह दिन भी आ गया.
वह पार्क में अपने बच्चे के साथ आयी हुई थी।
मैं भी सज-धज के वहां पहुंचा।
उसके बच्चे को अपनी गोद में लेकर मैं उससे बातें करने लगा।
फिर मैंने उसे रूम पर आने को बोला तो थोड़े नखरे दिखा कर वह मान गई।
रूम पर जाकर उसके बच्चे को मेरे बेड पर सुला दिया और हम नीचे चटाई पर बैठ गए।
उसने बताया कि उसकी शादी अठारह की उम्र में हुई थी। शुरू में उसका पति बहुत अच्छे से उसको रखता था फिर बाद में वह सरपंच के पति के संगत में आया और वह पैसों के पीछे पड़ा। वह ट्रांसपोर्ट का बिज़नस करता था जिसमें अच्छी कमाई हो जाती थी. पर अब वह और ज्यादा कमाने के चक्कर में पड़ गया था और राजनीति में भी बड़ा पद पाना चाहता था। सरपंच के पति के अच्छे बुरे सब कामों में वह शामिल रहता है. उस पर पुलिस केस भी चल रहे थे। महीने में करीब बीस दिन घर से बाहर ही रहता था और जब घर आता था तो भी अपने गुट वालों के साथ मीटिंग या पुलिस या कोर्ट वकील या प्रोपर्टी के कामों में व्यस्त रहता। आठ दस दिन घर आता उसमें भी दो तीन दिन ही वह पत्नी और बच्चे के लिए ठीक ठाक समय दे पाता।
दूसरी बात यह थी कि रेखा को अपनी खूबसूरती पर काफी नाज था।
वह चाहती थी कि हर कोई उसकी खूबसूरती का लोहा माने।
पर छोटी उम्र में ही उसकी शादी हो गई और उसके पति ने भी दो तीन साल ही उसकी खूबसूरती को भोगा था। अब वह घर पर होता तो खाली अपनी हवस बुझाने ही रात को रेखा के ऊपर चढ़ जाता और अपने आपको शांत कर के जल्दी ही उतर जाता।
उसमें भी कई बार तो नशे में चूर होकर रेखा को भोगता तो अब रेखा को संतुष्टि नहीं मिलती।
ना तो वह रेखा की तारीफ करता और न उसे समय दे पाता।
पर रेखा की जवानी अब भी बहुत कुछ मांग रही थी जो उसका पति उसे नहीं दे रहा था।
जब रेखा ने मुझे उसके पीछे लट्टू पाया तो उसके अरमान फिर से हरे भरे हो गये।
उसने सरपंच से मेरी काफी तारीफ सुन रखी थी तो वह भी मेरी तरफ आकर्षित हुई थी।
मैं उससे चिपक कर बैठ गया और बातों बातों में मस्के मारने लगा वह भी मुझे करारे जवाब दे रही थी।
वह मुझसे पांच साल बड़ी और एक बच्चे की मां थी आज मैं उसे चोदने जा रहा था।
मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लिया और उसके कंधे पर भी एक हाथ रख दिया।
जब मैंने उसके गालों पर एक चुम्बन लिया तो वह दूर जाने लगी.
पर मैंने उसे पकड़े रखा और फिर उसके होंठों से अपने होंठ लगा दिए।
वह भी मेरा साथ देने लगी।
मैंने उसकी पीठ के खुले हिस्से को काफी सहलाया और चूमा भी!
इससे वह काफी गर्म हो चुकी थी.
फिर मैंने उसके बोबे पकड़ लिये और दबाने लगा।
उसके बोबे फातिमा से भी बड़े थे और वह नम्रता से भी ज्यादा गोरी थी तथा रश्मि की तरह गर्म थी।
उसने खुद ही ब्लाउज और ब्रा उतारी फेंकी।
वह बार बार विशाल कर रही थी.
मतलब था कि वह जल्दी मेरा लौड़ा अपनी चूत में चाहती थी.
पर मैं उसे थोड़ा तड़पाना चाहता था और धीरज के साथ उसकी खूबसूरती को पीना चाहता था।
मैं उसके स्तनों को चूसने और दबाने लगा.
वह भी मदहोश हो गई थी।
मैंने उसके पूरे शरीर को चूमा तो वह पागल सी हो गई और हांफने लगी।
वह बोली- विशाल जल्दी करो, अब सब्र नहीं होता है।
मैंने भी अपने कपड़े उतारे और उसने अपने बाकी बचे कपड़े उतार फेंके।
उसने मेरा लंड अपने हाथ में पकड़ा और सहलाने लगी, फिर टोपा चाटने लगी और फिर पूरा लंड चूसने लगी।
मैं तो जैसे जन्नत में पहुंच गया था क्योंकि एक परी मेरा लंड चूस रही थी।
थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड अपने मुंह से निकला और बेड पर सीधी लेट गई और मुझे कहा- विशाल जल्दी आओ, मुझसे रहा नहीं जाता।
मैं भी उसके उपर चढ़ गया और लंड उसकी चूत में डालने लगा।
उसकी गोरी चूत पर काफी काली झांटें थी तो मुझे चूत का छेद ढूंढने में तकलीफ हो रही थी.
पर उससे रहा नहीं गया और उसने मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत में सेट किया और बोली- अब धक्का मारो।
मैंने एक ही झटके में पूरा लौड़ा उसके अंदर घुसा दिया तो उसके मुंह से आह निकली।
मैं उसे धमाधम चोदने लगा.
वह विशाल आह आह और जोर से जोर से ऐसी आवाजें निकाल रही थी।
मैं भी बोल रहा था- मेरी रानी रेखा, तुम्हें जब से देखा तब से मेरे मन में शोले भड़क रहे थे। आज तू मिली है मेरी जान!
ऐसा बोलते हुए मैं उसे जोर जोर से चोद रहा था।
ज्यादा जोश के कारण दस मिनट में ही मेरा पानी छूटने को हुआ तो मैंने कहा- डार्लिंग, पानी कहां निकालूं?
उसने कहा- अंदर ही निकालो।
मैंने उसके अंदर ही अपना वीर्य निकाल दिया और उसके ऊपर ही लेटा रहा।
काफी देर बाद हम अलग हुए और कपड़े पहन कर एक दूसरे की बाहों में लिपट कर बैठ गये।
उसने कहा- काफी समय बाद किसी ने इतने प्यार से मुझे चोदा है। मेरा पति तो बस दारू के नशे में मुझ पर चढ़ जाता है और पांच ही मिनट में पानी छोड़ कर लुढ़क जाता है। मैं प्यासी ही रहती हूँ।
आधा एक घंटा हमने बातें की।
वह फिर से चुदना चाहती थी तो बार बार अपने बोबे मेरे मुंह पर घिसती और मेरे लंड को सहलाती.
तो मेरा लौड़ा भी अब खड़ा हो गया था।
हमने फिर कपड़े उतारे और फिर से चुम्माचाटी और बोबा दबाई की।
उसने मेरा लंड फिर से चूसा तो वह लोहे की छड़ की तरह खड़ा हो गया।
मैंने फिर से उसकी चूत में लौड़ा डाल दिया और चोदने लगा।
इस बार धैर्य के साथ चुदाई की तो आधा घंटा चोद सका।
फिर से मैंने उसकी चूत में अपना वीर्य छोड़ा।
इस चुदाई के बाद वह अपनी मौसी के यहां गयी।
वह अपनी मौसी के घर पांच दिन तक रुकी और मैंने भी अपनी ऑफिस में छुट्टी ले ली और हम रोज मिलते रहे और चुदाई करते रहे।
फिर गांव आ कर वही सिलसिला खिड़की से झांकने का चालू हुआ।
हम दोनों एक-दूसरे को फ्लाइंग किस करते तथा दिन में चार पांच बार खिड़की पर ही मिलन हो जाता।
ज्यादा कुछ नहीं कर पाते थे क्योंकि उसका पति उसके मौसी के घर से वापस आने के दूसरे दिन ही घर आ गया था।
एक हफ्ते बाद उसका पति वापस काम पर लौटा तो उसने मुझे दोपहर में अपने यहां खाने पर बुलाया।
हमने साथ में खाना खाया और खूब चुदाई की.
ऐसे दो महीने चलता रहा।
बाद में उसने मुझे बताया कि वह मां बनने वाली है और उसके बच्चे का बाप मैं ही हूं।
मेरी गांड फट गई.
मैंने कहा- अब क्या करेंगे?
वह हंसती हुई बोली- बिल्कुल फट्टू हो तुम. इसमें डरने की क्या बात है. यह तो खुशी की बात है।
मैंने कहा- किसी को पता चल गया तो क्या होगा?
उसने कहा कि उसने सोच समझ कर ही बच्चा रखवाया था। वह अपने पति की जगह मेरे बच्चे की मां बनना चाहती थी इसलिए उसने मुझे कभी कोंडोम इस्तेमाल नहीं करने दिया था और मेरा वीर्य अपनी चूत में डलवाती थी।
उसने कहा- तुम तो खुश हो. बस किसी को बताना मत कि यह बच्चा तुम्हारा है. यह बच्चा तो हमारे प्यार की निशानी है।
तब जाके मुझे भी राहत हुईं और मैं भी खुश हुआ।
नौ महीने बाद रेखा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया।
रेखा ने मुझे कहा- यह तुम्हारी बेटी है तो तुम्हीं इसका नाम रखो।
मैंने उसका नाम प्रेरणा रखा।
बाद में मौका मिलने पर मेरी और देशी भाभी चुदाई चालू ही रही।
उसी ने मुझे गांव की कुंवारी चूत भी दिलाई जो आपको बाद में बताऊंगा।
लेखक के आग्रह पर उनकी ईमेल आईडी प्रकाशित नहीं की जा रही है।
मेरा नाम मानसी Antarvasna है। मैंने अपनी कहानी “बहुत प्यार करती हूँ” अन्तर्वासना में भेजी थी, आप सबकी तरफ से बहुत अच्छे उत्तर मिले थे। आज मैं आपको अपनी दूसरी कहानी बताने जा रही हूँ, आशा है आप सबको पसंद आएगी। मेरी पहली कहानी जिन्होंने पढ़ी थी उन्हें उस इंसान के बारे में मालूम ही होगा जिससे मैं प्यार करने लगी थी। जब उसकी शादी हो गई तो मैं खुद को बहुत अकेला महसूस करने लगी थी। हालाँकि मैं जिससे प्यार करती थी, उससे मैंने कभी भी शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाये थे लेकिन फिर भी उसकी कमी मुझे अपनी ज़िन्दगी में महसूस होती थी। उसकी शादी होने के बाद तो मुझे यकीन हो ही गया था कि अब वो इंसान मुझे कभी नहीं मिलेगा। लेकिन मैं जैसे जैसे बड़ी हो रही थी मेरे अन्दर भी हर लड़की की तरह सेक्स की भावना बढ़ती जा रही थी। लेकिन कभी किसी से शारीरिक संबंध बनाने से मैं भी डरती थी लेकिन जब मन करता था तो अकेले ही मुठ मार कर अपना काम चला लेती थी।
मन तो करता था कि कोई हो जो मुझे प्यार करे, जिसके साथ मैं वक़्त बिता सकूँ। लेकिन न कभी किसी और से प्यार हुआ न मेरी ज़िन्दगी में उसके बाद कोई और आया। मैं हर वक़्त यही सोचती रहती थी कि कब मेरी भी शादी हो और मैं भी अपने पति से जी भर कर चुदवाऊँ। लेकिन मेरी शादी होने में अभी वक़्त था। धीरे धीरे मन में सेक्स की भावना इतनी बढ़ गई थी कि मैं यही सोचती कि कब मुझे मौका मिले और मैं जी भर कर ग्रुप सेक्स करूँ। कम से कम छः-सात लड़के मेरी एक साथ चुदाई करें। मैं जानती थी कि ऐसा हो नहीं सकता, लेकिन मन नहीं समझता उसे तो बस चूत की प्यास से मतलब था।
लेकिन मेरी यह इच्छा उस दिन पूरी हो ही गई जब एक दिन मेरे मम्मी-पापा कुछ दिनों के लिए किसी रिश्तेदार के यहाँ गए हुए थे। घर में मैं और मेरा बड़ा भाई थे। मम्मी-पापा एक हफ्ते से पहले वापिस आने वाले नहीं थे। तभी भैया के पास उनके कुछ दोस्तों का फ़ोन आया, उन लोगों को मुंबई जाना था। लेकिन ख़राब मौसम होने की वजह से उनकी उड़ान रद्द हो गई। तो भैया ने उन्हें अपने घर आने के लिए कह दिया। सर्दी के दिन थे, भैया ने उन्हें कहा कि पूरी रात एअरपोर्ट पर कैसे रहोगे, घर आ जाओ। वो लोग मान गए।
वो दस लोग थे। भैया ने उन सबके खाने का इन्तज़ाम किया और उनका इंतज़ार करने लगे। तभी अचानक पापा का फ़ोन आया कि वो जिस रिश्तेदार के यहाँ गए थे उनकी मृत्यु हो गई है और भैया को वहाँ आना पड़ेगा। भैया ने पापा को बताया कि उनके कुछ दोस्त घर पर आ रहे हैं तो पापा ने कहा कि उन्हें मानसी खाना खिला देगी। लेकिन तुम्हारा यहाँ आना ज़रूरी है।
भैया ने अपने दोस्तों को फ़ोन कर दिया कि मुझे जाना पड़ेगा लेकिन मानसी घर पर है, तो तुम लोग आ जाओ और खाना खा कर यही आराम कर लेना। वो लोग राज़ी हो गए। जब वे सब घर पर आये तो मैं पहले तो थोड़ा घबरा गई कि मैं इनके साथ पूरे घर में अकेले कैसे करुँगी लेकिन भैया के दोस्त बहुत अच्छे थे और उन्होंने कहा कि तुम आराम से बैठी रहो और बस हमें यह बता दो कि सब चीज़ें कहाँ हैं हम खुद ले लेंगे। उनमें से दो लोग रसोई में आ गए और बाकी सब कमरे में बैठ कर टी.वी देखने लगे। मैंने उन्हें बता दिया लेकिन रसोई में उनके साथ ही खड़ी रही कि कहीं उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत न हो। उनमें से एक का नाम सागर था। मैंने महसूस किया कि वो जब से आया था तब से मुझे ही देखे जा रहा था और जब मैं उसे देखती थी तो वो अपनी नज़रें मुझ पर से हटा कर कहीं और देखने लगता था।
उसके बाद हम सबने साथ ही खाना खाया। फिर मैं अपने कमरे में सोने चली गई। उनमें से कुछ लोग मम्मी पापा के कमरे में लेट गए और कुछ भैया के कमरे में। मैं नीचे जाकर सो गई और अपने कमरे को अन्दर से बन्द कर लिया। थोड़ी देर के बाद सागर नीचे आया और बोला- मानसी हमें नींद नहीं आ रही है, तुम कुछ फिल्म की सीडी निकाल कर दे दो हम देख लेंगे।
मैंने कहा- ठीक है।
मैं उन्हें सीडी देने गई और सोचा कि नींद तो मुझे भी नहीं आ रही है तो मैं भी इन लोगों के साथ बैठ जाती हूँ।
मैं वहीं सागर की बगल में बैठ गई और थोड़ी देर में ही हम सबके बीच हंसी मजाक शुरू हो गया। तभी अचानक सागर ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और मैं कुछ नहीं बोल पाई। सागर मेरी और ही देख रहा था कि तभी उसका एक दोस्त नितिन बोला- क्या बात है सागर ! जब से आये हो, मानसी को ही देख रहे हो ! अगर पसंद आ गई है तो शादी का प्रस्ताव रख दो। इसके भाई को हम मना ही लेंगे।
उसने कहा- ऐसा कुछ नहीं है।
वैसे उसका हाथ पकड़ना मुझे भी अच्छा लगा। सर्दी के दिन थे हम सब रजाई में बैठे थे इसलिए किसी को पता नहीं चला कि उसने मेरा हाथ पकड़ा है। लेकिन अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ कि वो मेरे होठों पर चूमने लगा। उसके सब दोस्त हैरान रह गए और मैं भी।
मुझे कुछ समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करूँ। पसंद तो वो भी मुझे पहली ही नज़र में आ गया था लेकिन मेरे दिल में यह डर बैठा था कि यह सब मेरे घर में पता चल गया तो क्या होगा। लेकिन उसे छोड़ने का मन मेरा भी नहीं कर रहा था। तभी नितिन ने भी पीछे से आकर मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया लेकिन मैंने झटके से उसे पीछे कर दिया और सागर को भी।
मैंने कहा- आप लोग यह सब क्या कर रहे हो।
तभी सागर ने कहा- मानसी हम सब आज की रात यहाँ हैं और हम चाहते हैं कि तुम पूरी रात हमारे साथ रहो। हम तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहते हैं।
मैंने कहा- पागल हो गए हो क्या तुम सब लोग? मेरे घर में पता चल गया तो पता नहीं क्या होगा।
उन्होंने कहा- हम तुम्हारे भाई को कभी पता नहीं चलने देंगे। हमारा विश्वास करो, आखिर वो हमारा दोस्त है।
मैं उन्हें मना करना चाहती थी कि तभी मैंने सोचा कि मेरा जो ग्रुप सेक्स करने का सपना था वो आज सच हो सकता है। वैसे भी ये दस लोग हैं मैं मना करुँगी तो यह मेरे साथ जबरदस्ती भी कर सकते हैं। तब मैं क्या करुँगी। इस से अच्छा है कि खुद ही राज़ी हो जाऊं। शायद ऐसा मौका दुबारा न मिले और अगर इन्होने मेरे घर में बता भी दिया तो मैं यह कह सकती हूँ कि यह इतने सारे लोग थे इन्होंने मेरे साथ जबरदस्ती की थी। मैं अकेली क्या करती।
तभी सागर ने मुझे पूछा- क्या सोच रही हो मानसी, तुम तैयार हो ना?
मैंने उसे कुछ नहीं कहा और उसके होंठों पर चुम्बन करने लगी। वो समझ गए कि मैं तैयार हूँ। सागर के साथ किस करने में बहुत मज़ा आ रहा था। 15 मिनट तक मैं उसे चूमती रही और मुझे कुछ भी होश नहीं था। जब मैं उससे अलग हुई तो नितिन ने आकर मुझे चूमना शुरू कर दिया। उसके बाद उसके सभी दोस्तों ने मेरे साथ यही किया और ऐसे ही एक घण्टा बीत गया। उस वक़्त तक हम में से किसी ने भी अपने कपड़े नहीं उतारे थे।
तभी सागर ने कहा- मानसी, तुम हम सबके कपड़े उतारो !
तो मैंने कहा- ठण्ड है ! नहीं होगा।
हमने रूम-हीटर चालू किया और उसके बाद मैंने एक एक करके उन सबके कपड़े उतार दिए।
तभी नितिन बोला- अब हम एक खेल खेलेंगे। उसने कहा- मानसी दो दो मिनट के लिए सबके लण्ड चूसेगी और जिसका लंड ज्यादा जल्दी खड़ा होगा वही सबसे पहले चोदेगा।
लेकिन मैं सबसे पहले सागर से चुदवाना चाहती थी। पता नहीं क्यूँ ! शायद वो मुझे पसंद था इसलिए।
उसके बाद मैंने एक एक करके सबके लण्डों को चूसना शुरू किया। मेरे साथ वही सब हो रहा था जो मैं करना चाहती थी। और आज मैं जी भर कर अपनी इच्छा को पूरा करना चाहती थी। इतने सारे लंड एक साथ देख कर मैं पागल सी हो गई थी। मैंने जी भर कर सबके लौड़ों को चूसा और सागर के लंड को मैंने जब अपने मुँह में लिया तो उसे बाहर निकालने का मन ही नहीं कर रहा था। मैंने सागर का लंड 15 मिनट के लिए चूसा जिससे वो भी पूरी तरह गर्म हो गया और उसने मेरे सर को पकड़ कर ऊपर किया, मेरे होंठ जो उसके लंड के पानी से भीगे हुए थे उन्हें चूसने लगा और सबको कहा कि मानसी सबसे चुदवाएगी लेकिन अभी हमारे बीच कोई नहीं आएगा।
सबने वैसा ही किया और सब हमें देखते रहे। मुझे शर्म आने लगी थी लेकिन सागर था कि मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। 15 मिनट मेरे होंठ चूसने के बाद उसने कहा- अब तुम अपने कपड़े उतारो, हम सब तुम्हारी चूत को चाटेंगे।
मैंने सागर से कहा- मेरी चूत पर तो बाल हैं।
उसने कहा- तुम फ़िक्र मत करो।
उसने अपने एक दोस्त को इशारा किया और वो अपने बैग में से रेज़र लेकर आया। सागर ने मुझे अपनी गोद में उठाया और मुझे बाथरूम में ले जा कर बाथ टब में लिटा दिया। उसके बाद उसने मेरी टांगें फैला दी और मेरी चूत को गीला करके उस पर ढेर सारा साबुन लगा दिया। उसके बाद उसका एक दोस्त मेरी चूत के होठों को खोलता जा रहा था और सागर बड़े प्यार से मेरी चूत के बाल साफ़ कर रहा था। सागर का एक दोस्त मेरे होंठों को चूस रहा था, एक मेरे वक्ष मसल रहा था और बाकी सब वहीं खड़े होकर देख रहे थे। यह सब देख कर उनके लौड़े भी तनकर खड़े हो चुके थे। थोड़े बाल साफ़ करने के बाद सागर ने मेरी चूत को पानी से धोया और अपनी जीभ मेरी चूत में डाल दी। मैं काँप उठी जैसे कोई करंट लगा हो।
थोड़ी देर में जब उसने मेरी चूत पूरी तरह साफ कर दी तो उसके बाद नितिन मुझे उठा कर कमरे में ले आया और लाकर मुझे बेड पर लिटा दिया। कमरे में लाते ही सागर मेरी टांगों के बीच आकर बैठ गया और चूत के दोनों होंठों को खोल कर देखने लगा। मुझे शर्म आने लगी और मैंने अपना चेहरा अपने हाथों से ढक लिया।
तभी सागर बोला- क्या चिकनी बुर है। इसे तो मैं जी भर कर चूसूंगा उसके बाद चोदूंगा।
तब उसके सभी दोस्तों ने बारी बारी से मेरी चूत को चाटा। मैंने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था क्यूंकि सब के सब मेरे साथ कुछ ना कुछ कर रहे थे और मैं पागल सी होती जा रही थी।
अब सागर की बारी थी। सागर आकर मेरी टांगों के बीच बैठ गया था। इससे पहले मैं कम से कम तीन बार झड़ चुकी थी।
सागर ने मेरी टांगों को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया और मेरी चूत के होंटों को खोल दिया। उसके बाद सागर ने अपनी एक ऊँगली मेरी गांड में डाल दी और नीचे झुक कर अपनी जीभ मेरी चूत के अन्दर। उसकी गरम जीभ अपनी चूत के अन्दर जाते ही मैं अन्दर तक सिहर गई। मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं किसी स्वर्ग में घूम रही हूँ। मेरी चूत को चाटते हुए सागर घूम गया और उसने अपना लौड़ा मेरे मुँह की तरफ कर दिया और कहा कि मैं उसे अपने मुंह में लूँ।
मैंने जैसे ही उसका गर्म लंड अपने मुंह में लिया वैसे ही उसके बदन में भी एक करंट सा लगा। अब हम 69 अवस्था में थे। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। लगभग आधे घंटे उसी अवस्था में रहने के बाद सागर मेरे ऊपर से हट गया। इस बीच मैं दो बार झड़ चुकी थी और सागर था कि झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था।
सागर ने अपने दोस्तों से कहा- यार, बहुत अच्छा लौड़ा चूसती है, बहुत मस्त माल है।
तभी उसके दोस्त ने कहा- फिर तो इसकी जी भर कर चुदाई करेंगे।
नितिन ने कहा- यार इतना मस्त माल है तो चोदने में मज़ा आ ही जायेगा और वो भी अपने मर्ज़ी से चुदवा रही है।
तभी मेरे दिमाग में ख्याल आया कि अगर मैं इनसे अपनी मर्ज़ी से चुदवाऊँ तो यह लोग बहुत आराम से चोदेंगे लेकिन मैं इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहती थी और जबरदस्त चुदाई करवाना चाहती थी। इसलिए मैंने एक चाल चली। जब सागर मेरे ऊपर से हट कर अलग हुआ तो मैं उठ कर खड़ी हो गई और कहा- बस अब यह सब यहीं ख़त्म करो और मुझे जाने दो।
तभी नितिन ने कहा- जाती कहाँ है साली रंडी ! अभी तो तेरी चुदाई बाकी है।
मैंने कहा- मुझे छोड़ दो !
और मैं कमरे से बाहर जाने लगी कि तभी उसने मुझे खींच कर बिस्तर पर पटक दिया। मैंने सागर की तरफ देखा तब मैंने महसूस किया कि उसे भी शायद यह सब अच्छा नहीं लग रहा और वो भी नहीं चाहता कि यह सब हो लेकिन अब हम कुछ नहीं कर सकते थे। अगर वो अपने दोस्तों को मना भी करता तो कोई उसकी बात नहीं सुनता और सब मेरे साथ जबरदस्ती करते। जबरदस्ती तो वो लोग अब भी कर ही रहे थे क्यूंकि मैं भी यही चाहती थी।
मैंने नितिन से कहा- प्लीज़, मुझे जाने दो !
लेकिन उसने मेरी एक नहीं सुनी और मेरे पास आकर बैठ गया। मैंने उठने की कोशिश की लेकिन तभी उनके दोस्तों ने मेरे हाथ और मेरे पांव पकड़ कर मुझे पूरी तरह जकड लिया और सागर आकर मेरे स्तनों को मसलने और दबाने लगा। नितिन गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगा। साली रंडी दस-दस लोगों से चुदवाने को तैयार है और सीधी बनने की कोशिश करती है। आज देख तेरी ऐसी चुदाई होगी रंडी कि तू सारी ज़िन्दगी याद रखेगी। तेरी चूत का भोसड़ा बनायेंगे आज। ऐसा चोदेंगे कि दुबारा किसी से चुदने से पहले दस बार सोचेगी।
मैं समझ गई थी कि सब लोग गरम हो चुके हैं और मैं भी अपनी चूत में लंड लेने को बेकरार थी। सागर मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठों को चूसने लगा और मम्मों को दबाने लगा। मेरे हाथ और पैर तो उसके दोस्तों ने पकड़ रखे थे। इसलिए मैं हिल भी नहीं पा रही थी। तभी सागर सीधा होकर मेरी चूत के पास घुटनों के बल बैठ गया और मेरी टांगें फैला कर ऊपर की ओर कर दी। उसका एक दोस्त मेरे होंठों को चूसने लगा और नितिन मेरे मम्मों को मसलने लगा। मेरे मम्मों में भी दर्द हो रहा था।
तभी सागर ने अपना नौ इंच लम्बा लंड मेरी चूत पर रखा और एक ही झटके में पूरा का पूरा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर जड़ तक चला गया। मुझे सबने इतने कस कर पकड़ रखा था कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। जैसे ही उसने अपना लंड मेरी चूत में डाला, मैं दर्द के मारे तड़प उठी और हिल ना पाने की वजह से अन्दर ही तड़प कर रह गई। होंठ भी एक लड़के ने अपने होंठों से बंद कर रखे थे तो आवाज़ भी नहीं निकल पा रही थी। दर्द की वजह से मेरी आँखों में आंसू आ गए जिसे देख कर सागर को दुःख हुआ और वो अपना लंड बाहर निकालने लगा।
मैंने इशारे से उसे मना कर दिया। वो थोड़ी देर के लिए रुक गया। और जब दर्द कुछ कम हुआ तो उसने धीरे धीरे धक्के मारने शुरू किये। अब मुझे भी मज़ा आने लगा था तो मैं भी सागर का पूरा साथ देने लगी। मैंने उन्हें अपने हाथ और पैर छोड़ने को कहा। और दो लड़कों के लौड़ों को अपने हाथों में लेकर उनकी मुठ मारने लगी। नितिन का लंड मेरे मुंह में था। दो लड़के मेरे मम्मों को पकड़ कर मसलने लग गए और बाकी सब अपनी अपनी जीभ मेरे पूरे बदन पर रगड़ रहे थे। मेरा पूरा बदन एक साथ चुद रहा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। करीब आधे घंटे चुदाई करने के बाद सागर ने सबको कहा- अब सब झड़ने के लिए तैयार हो जाओ।
मैंने उन सबसे कहा- अपने लौड़ों का पानी मेरे ऊपर डाल दो और सागर से कहा कि तुम मेरी चूत के अन्दर ही झाड़ना।
सागर ने वैसे ही किया। करीब 5 मिनट के बाद चारों लड़के (सागर, नितिन) और जिनके लंड मेरे हाथ में थे, एक साथ झड़े और सबने अपना पानी मेरे ऊपर डाल दिया। सागर का गरम वीर्य मैं अपनी चूत में महसूस कर रही थी। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था।
उसके बाद बाकी सबने भी मुझे बारी बारी से चोदा। उस पूरी रात में मेरी बारह बार चुदाई हुई। बाकी सबने एक एक बार और सागर और नितिन ने मुझे दो-दो बार चोदा। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके बाद सबने बाथरूम में जाकर अपने लौड़ों को साफ़ किया और सुबह के छः बजे जाकर कमरे में सो गए। लेकिन मैं इतनी जबरदस्त चुदाई के बाद उठने की भी हिम्मत नहीं कर पा रही थी। तब सागर ने कहा- मानसी, तुम यहीं रहो, मैं आता हूँ।
और उसके बाद वो बाथरूम में जाकर बाथटब में गरम पानी भर कर आया। और मुझे अपनी गोद में उठा कर बाथरूम में ले गया। उसने जाकर मुझे टब में लिटा दिया और मेरी चूत को हल्के हाथ से सहलाने लगा। इससे मेरी चूत को बहुत आराम मिल रहा था। मेरी पूरी चूत बुरी तरह से लाल थी और बहुत दर्द हो रहा था। उसके बाद सागर ने मुझे लाकर बिस्तर पर लिटाया। और मेरे बदन को पोंछा जिससे मुझे बहुत आराम मिल रहा था। तभी सागर आकर मेरे पास लेट गए और मुझे रजाई में लेकर अपने साथ चिपका लिया। मुझे उसकी बाहों में एक सुकून सा मिला। जिस इंसान की कमी मैं अपनी ज़िन्दगी में महसूस करती थी, लगा कि सागर उस कमी को पूरा कर सकता है। लेकिन यह बात मैं उसे कैसे कहती। उसके सामने ही उसके दोस्तों से चुदी हूँ।
तब सागर ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और कहा- मानसी, मुझे माफ़ कर दो। आज तुम्हारे साथ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मैं ही हूँ। ना मैं शुरुआत करता और ना तुम्हारे साथ यह सब होता। लेकिन मैं सच में तुम्हें पसंद करने लगा हूँ। मैं जानता हूँ कि तुम यही सोच रही होगी कि तुम्हारे साथ ऐसा करने के बाद भी मैं यह सब कह रहा हूँ। लेकिन ये सच है मानसी। मैं तुम्हें पसंद करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ। तुम्हारे भाई के वापिस आते ही मैं उससे तुम्हारा हाथ मांगूंगा।
और मैं भी उसकी बात को स्वीकार करते हुए उसके कंधे पर सर रख कर लेट गई। नींद कब आई पता ही नहीं चला।
जब नींद खुली तो सुबह के 11 बज रहे थे। मैंने जल्दी से उठ कर कपड़े पहने। सब लोग नहा कर तैयार हो गए। पूरा बदन रात की चुदाई से दर्द कर रहा था। लेकिन इस दर्द में उस प्यार का एहसास भी था जो मुझे सागर से मिला था। उसके बाद मैंने सब के लिए चाय बनाईं। सब लोग चाय पीकर निकल गए और जाते जाते सागर ने मुझसे कहा कि मैं उसका इंतज़ार करूँ, वो मुझे लेने आएगा। उसकी बात पर यकीन भी था लेकिन मन में शक भी था। उसके बाद दो साल तक सागर की कोई खबर नहीं आई। ना ही भाई से पूछने की हिम्मत थी उसके बारे में।
तब तक मेरी पढ़ाई भी ख़त्म हो चुकी थी। घर में मेरी शादी की बातें होने लगी थी। लेकिन मुझे तो सागर का इंतज़ार था। कभी कभी लगता कि अगर उसे आना ही होता तो क्या वो इन दो सालों में मुझसे मिलने की बात करने की कोशिश नहीं करता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ इसका मतलब उसने जो कहा शायद वो सब मुझे दिलासा देने के लिए कहा था। मैंने घर वालों को शादी के लिए हाँ कह दी और कहा कि वो जिसे भी मेरे लिए पसंद करेंगे मैं उसी से शादी कर लूंगी।
एक दिन मम्मी ने बताया कि मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं। मन में एक अजीब सा डर समाया हुआ था और सागर की बातें भी दिमाग में घूम रही थी। जब लड़के वाले आ गए तो मुझमें हिम्मत ही नहीं थी कि एक नज़र उठा कर उस लड़के को देखूं। यह शादी तो वैसे भी मैं घर वालों की ख़ुशी के लिए कर रही थी। मैं जाकर कमरे में बैठ गई। थोड़ी देर इधर उधर कि बातें होती रही। लेकिन मैंने एक नज़र उठाकर उस लड़के की ओर एक बार देखा तक नहीं क्यूंकि मुझे सिर्फ सागर का इंतज़ार था। जब मैं उन लोगों के सामने गई तो लड़के की माँ बोली- हमें आपकी बेटी पसंद है।
मैंने सोचा- बिना कुछ पूछे बिना कुछ जाने एक ही नज़र में पसंद कर लिया।
तब लड़के की मम्मी ने कहा- दोनों को एक दूसरे से बात कर लेने दो।
मेरी तो सांस ही अटक गई। क्या बात करुँगी, कैसे करुंगी। तब मेरी बहन हमे ऊपर वाले कमरे में ले गई। मैंने अब तक एक बार भी नज़र उठा कर उस लड़के की ओर नहीं देखा था क्यूंकि यह शादी मेरी मर्ज़ी नहीं मजबूरी थी। कमरे में आने के बाद बहन बाहर चली गई। मैं और वो लड़का बैठ गए।
तब उसने मुझसे कहा- क्या बात है, आप मेरी तरफ देखेंगी नहीं?
आवाज़ जानी-पहचानी सी लगी। चेहरा उठा कर ऊपर देखा तो वो सागर ही था। मैं एक दम से खड़ी हो गई और उसे देखती ही रही। मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला और उसने सिर्फ इतना ही कहा- मानसी, मैंने जो वादा किया था उसे पूरा करने आया हूँ।
उसे देख कर मेरे दिल में जो ख़ुशी थी वो मेरी आँखों में साफ़ दिखाई दे रही थी। लेकिन उसके साथ ही आंसू भी थे। मैंने कहा- अब तुम्हें याद आई मेरी ? दो साल मैंने कैसे बिताए, जानते हो?
उसने बस इतना कहा- दो साल बाद मिल रही हो, गले भी नहीं लगोगी क्या?
मैं उसके गले लग गई और रो पड़ी। उसने कहा- क्या हुआ? रो क्यूँ रही हो?
मैंने कहा- इतने दिनों के बाद आये हो, यह भी नहीं सोचा कि मेरा क्या हाल होगा। तुमने तो कहा था कि भाई के आते ही उससे बात करोगे।
तो उसने कहा- मानसी, जब मैं तुमसे मिला था, उस वक़्त मेरी नौकरी बिल्कुल नई थी, जीवन में स्थापित होने के बाद ही तो तुम्हारे भाई से तुम्हारा हाथ मांगता। पहले मांग लेता तो वो मना कर देता। आज उसे पता है कि मैं अपनी जिन्दगी में सुस्थपित हूँ और तुम्हें खुश रख सकता हूँ इसलिए वो भी मेरे एक ही बार कहने पर मान गया। और इसलिए आज मैं अपने मम्मी पापा को तुम्हारे घर लेकर आया हूँ तुम्हारा हाथ मांगने। और तुम्हारे घर वालों ने इसलिए कुछ नहीं बताया था क्यूंकि मैं तुम्हें आश्चर्य-चकित कर देना चाहता था। अगर तुम्हें पहले पता होता तो मैं तुम्हारे चेहरे के वो भाव ना देख पाता जो मेरी आवाज़ सुनकर तुम्हारे चेहरे पर थे।
मैं उसे कुछ नहीं कह पाई और उसके गले लग गई। आज मैं बहुत खुश हूँ।
दोस्तो, आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए। Antarvasna
मेरी नौकरी शहर में लगने Antarvasna Sex Stories के कारण मेरे भैया ने मुझे शहर में बुला लिया था। मैं एक प्राईवेट संस्था में था जबकि भैया एक फ़ेक्ट्री में ऊंचे पद पर थे। मैं गांव से शहर आ गया था। भाभी ने मुझे अपने घर में बहुत ही प्यार से रखा था। मेरी शादी की बात चल रही थी। लड़की गुजरात से थी, उसका नाम प्रेरणा था। उसकी फोटो तो बहुत ही आकर्षक थी। अक्सर भाभी मुझे लड़की के बारे में कुछ कह कर छेड़ती रहती थी। यूं तो देवर भाभी की मजाक तो चलती ही रहती थी पर उस लड़की का जिक्र आते ही जाने क्यूँ मेरे मन में कोमल भावनायें जाग जाती थी। कितनी बार तो यह सोच सोच कर ही लण्ड खड़ा हो जाता था कि जब मैं उसे अपने नीचे दबा कर चोदूंगा तो कैसा लगेगा, उसकी चूंचियाँ दबाऊंगा तो…. मेरे दिल में इस तरह के विचार आते रहते थे। कभी कभी तो ऐसा लगने लगता था कि काश एक बार भाभी मान जायें तो मैं भी चोदने का मजा भरपूर ले लूँ। बहुत पहले मेरी पास ही रहने वाली पड़ोसन ने मुझे पटा कर चुदवाया था तब मुझे बहुत मजा आया था। पर वो कुछ ही दिन बाद दूसरे शहर चले गये थे। पर वो पड़ोसन मुझे चोदने का एक चस्का लगा गई थी।
मुझे अब भाभी से सेक्स की बाते करने में बहुत मजा आता था। भाभी भी रस ले लेकर सेक्स की बातें करती थी। अक्सर मुझसे भाभी प्रेरणा के बारे में पूछती रहती थी। मुझे मुझे ऐसा मह्सूस भी होता था कि भाभी शायद मुझे पटाना चाहती हैं क्योंकि वो आजकल अपने नीचे गले के ब्लाऊज पहनने लग गई थी। जिसमें से उनकी चूंचियां छलकी पड़ती थी। उनके गोल गोल मस्त उभार मुझे बेचैन कर देते थे। पर वो हमेशा अपने को इससे अन्जान दर्शाया करती थी। मेरा लण्ड कई बार कड़क उठता था। अब तो भाभी का अंग अंग मुझे चुदने को बेताब लगता था। पर ये सब शायद मेरे मन का भ्रम था। वो सब इससे अनजान ही थी। बस मुझे छेड़ने के लिये मुझसे ऐसी बाते करती थी, जाने यह सच था या नहीं ?
मैंने अब कई बार भाभी से पूछा भी था कि भाभी सुहाग रात कैसी होती है, उसमें क्या करते हैं।
भाभी कहती थी कि समय आयेगा तब तुम खुद ही सीख जाओगे। मैं भाभी को खोलने में प्रयास रत था। यह भी पूछ लेता था कि मुझे कुछ तो बताओ ना…. रात को क्या क्या करते हैं।
भाभी मुझे यूँ ही टाल देती थी कि सब बाद में बताउंगी, थोड़ा सबर रखो।
उन दिनों भैया कुछ दिनों के लिये लखनऊ गये हुये थे। आज तो भाभी की उत्तेजक सेक्स की बातें मुझे रात को सोच सोच कर नींद नहीं आ रही थी। मन बहुत बेचैन हो रहा था। मेरा लण्ड रह रह कर कड़क उठता था और मेरा पजामा तम्बू बन जाता था। मुझे लगता कि यदि भाभी चुदने के राजी हो जायें तो मेरा पूरा रस ही उनकी चूत में उतार दूँ। मेरा मन डोल उठा, जाने मेरे मन में क्या आया कि मैं चुपके से भाभी के कमरे की ओर बढ़ गया।
दरवाजा हमेशा की तरह खुला हुआ था। धीमी लाईट जल रही थी। भाभी एक पेटीकोट में सो रही थी जो अभी काफ़ी ऊपर उठा हुआ था। ब्लाऊज की जगह एक ढीला सा टॉप पहना हुआ था। मेरा लण्ड बहुत ही अधीर हो उठा था, पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने अपना साहस बटोरा और कमरे में कदम रखा। तभी भाभी ने करवट ली, मेरी सांसे जैसे अटक गई। लण्ड ठण्डा सा होने लगा। पर कुछ ही पलों में मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा।
मैं भाभी के पलंग के पास आ गया, भाभी की चिकनी मांसल और गोरी जांघें कुछ हद तक दिख रही थी, उनके स्तन भी दोनों बाहों के बीच में भिंच कर बाहर आने को बेताब थे। मेरे हाथ बरबस ही उनकी जांघों पर आ गये और उन्हें सहलाने लगे। भाभी थोड़ी सी कसमासाई और दूसरी तरफ़ करवट ले कर सो गई। पेटीकोट फिर थोड़ा सा और उठ गया, मैंने नीचे झुक कर पेटीकोट के अन्दर झांका तो पीछे से उनकी चूत के दर्शन हो गये। मैं तो आंखे फ़ाड़े चूत को देखता ही रह गया।
“राजू, अरे वहां तू क्या कर रहा है….?” भाभी नींद से जाग गई थी, मैं घबरा गया।
“नहीं …. कुछ नहीं भाभी …. वो चू…. चू…. मेरा मतलब कोई कीड़ा था, हटा दिया मैंने !” मेरी मुख सूखने लगा था। पसीना छलक आया था।
“आ जा बैठ जा…. कुछ काम था क्या….”
“नहीं वैसे ही आ गया था।”
” मुझे तो नींद आ रही है…. तू भी मेरे पास ही लेट जा…. और जो तुझे कहना कह डाल !” भाभी ने फिर से दूसरी ओर करवट ली और पांव पसार कर लेट गई। भैया की जगह मैं लेट गया।
“चल लाईट बन्द कर दे …. और बता …. नींद नहीं आ रही है क्या?”
मैंने लाईट बन्द कर दी और भाभी की बगल में लेट गया। मैं भाभी को हल्के अंधेरे में देख रहा था। मेरा लण्ड फिर से तन उठा। कुछ देर तक तो मैं बेचैन सा रहा, फिर ना जाने मुझे क्या हुआ…. मैंने अपना सयंम खो दिया और पीछे से भाभी से लिपट पड़ा। भाभी इस अचानक हमले से घबरा गई। पर जल्दी ही सब समझ गई।
“राजू, क्या कर रहा है…. देख मैं तेरी भाभी हूँ ….!” भाभी ने कसमसाते हुये कहा।
“प्लीज भाभी, मुझसे रहा नहीं जाता है…. आप बहुत प्यारी लगती हैं…. !” मैं हांफ़ता हुआ बोला। मेरे दिल की धड़कन तेज हो उठी थी, भाभी की चूंचियाँ दोनों हाथों से दबा डाली। भाभी कराह उठी।
“अरे छोड़ मुझे …. चल हट जा….!” भाभी मुझे हटाती हुई कहने लगी। पर मुझे कहाँ होश था। भाभी जैसे ही मेरी तरफ़ पलटी, मैंने उनका पेटीकोट ऊंचा कर दिया और अपना लण्ड निकाल कर उनकी चूत पर दबा दिया। भाभी के चूतड़ बुरी तरह से दबा कर अपने लण्ड की ओर खींच लिया। मैं भाभी से लिपट पड़ा और अपना लोहे जैसा लण्ड चूत के आस पास मारने लगा। एक बार तो लण्ड चूत में घुस भी गया था पर भाभी ने एक झटके से उसे निकाल दिया। तभी मुझे एक तमाचा मार दिया। भाभी तमतमा उठी।
“साला जंगली ….! शरम भी नहीं आती …. इतनी चोट लगा दी !” तमाचा पड़ते ही मुझे जैसे होश आ गया और मैं भाभी के ऊपर से हट गया। मैंने शरम के मारे अपना मुख छुपा लिया।
मेरी आंखों में आंसू निकल आये। भाभी ने हाथ बढ़ा कर लाईट जला दी…. मुझे रोता देख कर उन्हें दया भी आई।
“तू यह क्या करने लगा था…. भला ऐसे भी कोई करता है?” भाभी ने प्यार से मुझे झिड़का। मैं उठ कर जाने लगा ।
“भाभी, माफ़ कर देना, मन में पाप आ गया था….” मैंने रोते हुये कहा। फिर मैं अपने आप ही ग्लानि में डूब गया और भाभी के कमरे से भाग कर अपने कमरे में आ गया। मेरे दिल में धुकधुकी लगी हुई थी कि अब जाने भाभी क्या करेंगी और मुझे मार पड़ेगी। मुझे अपनी नई नौकरी छोड़ कर वापस जाना पड़ेगा। मैं सबकी नजरों में गिर जाऊंगा …. मैं अनायास ही फ़फ़क कर रो पड़ा- हाय मैंने ये क्या कर दिया।
तभी भाभी कमरे में आ गई। मुझे रोता देख कर भाभी ने हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर ही बैठा लिया। “तू तो पागल है…. रो मत …. मर्द कभी रोते हैं …. ?” भाभी ने मेरे सर को अपनी छातियों में भींच लिया, जानकर के अपनी चूंचियों में मेरा चेहरा दबा दिया और बालो में हाथ फ़ेरते हुये बोली,”राजू, मैं तुझे इतनी अच्छी लगती हूँ….?” भाभी ने जैसे मुझे प्यार से बहलाया।
” हां भाभी, आप मुझे बहुत प्यार करती हैं ना…. बस दिल में पाप आ गया….!” उनकी छाती ने मेरा मन फिर से विचलित कर दिया। अपना चेहरा मैं धीरे धीरे उनके स्तनो से रगड़ने लगा। यह मन भी बहुत अजीब है …. अभी ग्लानि से भरा हुआ था अब फिर से वासना छाने लगी थी।
“आह…. तुम फिर से देखो कुछ कर रहे हो ना …. राजू तुम सुधरोगे नहीं !” भाभी ने एक तड़प भरी आह सी भरी। मैंने अपना चेहरा ऊपर उठाया तो भाभी ने आंखें बन्द कर रखी थी। उनका वासना से भरा चेहरा देख कर मेरा डोल उठा। अनायास ही मेरे होंठ भाभी के होंठों से चिपक गये। इस बार भाभी ने मेरे मुँह को अपने होंठों से भींच लिया और प्यार करने लगी। वो सिसक उठी,”अरे पागल…. भाभी तो तेरी ही हूँ ना…. सभी कुछ प्यार से नहीं कर सकता है क्या…. देख तूने मुझे चोट लगा दी…. फिर वहां से भाग के भी आ गया !” भाभी ने शिकायत की।
“भाभीऽऽऽऽ, आप तो गुस्सा हो रही थी ना….?” मेरा मन अब खुशी से भर उठा था।
“हां जंगलीपने से नाराज हो रही थी…. ऐसे ही प्यार से कर ना….तुझे भी मस्ती आयेगी और मुझे भी सुख मिलेगा !” मेरा मन हल्का हो गया। मन में खुशी भरने लगी। मेरा बदन अब वासना से भरने लगा था। लण्ड ने एक बार फिर से अंगड़ाई ली और सीधा खड़ा हो गया। जैसे कि ग्रीन सिग्नल का इन्तज़ार कर रहा हो।
“भाभी सच में आप बहुत ही अच्छी हैं…. आप जैसा कहेंगी वैसा ही करूंगा !” मैंने प्यार से भाभी की चूंचियां सहलाते हुये कहा। जीभ से बार बार भाभी के होंठो को चाट लेता था। भाभी की मस्त चूचियाँ कड़ी हो रही थी, चुचूक भी कठोर हो चुके थे।
“देवर जी, शरम आती है …. कहूँ क्या…. आप मेरी नीचे वाली को प्यार करेंगे?” भाभी वासना भरी आवाज में सकुचाते हुये बोली।
मुझे अब बदन में सनसनी सी होने लगी थी। मुझे भाभी की चूत देखने की तीव्र इच्छा होने लगी थी। भाभी के इस इशारे ने मेरा मन मोह लिया और मैंने भाभी का पेटीकोट ऊपर कर दिया और नीचे साफ़ और चिकनी चूत के पास अपने अधरों को धीरे से लाकर चूमने लगा। चूत में से एक महक आ रही थी, जैसे कि मुझे पास बुला रही हो, बुलावा स्वीकार कर के मैंने चूत को भी प्यार किया, दाना भी मुँह में लेकर चूसा। फिर जीभ चूत में घुसा कर नमकीन रस का आनन्द लेने लगा। भाभी ने अपना पेटीकोट ऊपर से खींच कर उतार दिया। मैंने भी अपना पजामा उतार दिया। वो अपनी चूत को धीरे धीरे आगे पीछे करके पूरा आनन्द ले रही थी। मेरी जीभ भी लपलपा कर सारी चूत को चाट रही थी।
फिर भाभी ने मुझे कहा,”देवर जी आपके केले में कितना रस भरा है…. जरा मुझे चखाओ ना….!” भाभी ने मेरे मोटे कड़क लण्ड की ओर इशारा किया। ये सब मैं पहली बार कर रहा था इसलिये एक नया मजा आ रहा था। मैंने अपना लण्ड देखा और पूछा,”भाभी…. साफ़ कहो ना …. क्या करना है….” मेरा लण्ड रह रह कर कड़क रहा था। भाभी ने अंगुली हिला कर मुँह में डाल दी। मैं शरमा गया। मैं धीरे से उठा और अपना लण्ड भाभी के मुख के पास ले गया। भाभी ने मेरे चूतड़ पकड़ कर अपनी ओर खींच कर लण्ड अपने मुँह में ले लिया। होंठो का नरम सा अहसास, जीभ की गुदगुदी मेरे सुपाड़े को आनन्द देने लगी। मेरा लण्ड और फ़ूल उठा।
भाभी ने मेरे लण्ड का डण्डा थाम कर पूरा सुपाड़ा मुँह में ले लिया और जोर से चूसने लगी। मेरे लण्ड में जैसे आग लग गई। मेरे चूतड़ आगे पीछे हो कर उनका मुँह चोदने लगे। मुझे बहुत ही मजा आने लगा,”भाभी…. आप सच में बहुत प्यारी हैं …. अब मुझे चोदने दो ना….!”
मेरी सीत्कार बढ़ गई थी। भाभी को भी चुदने की लगी थी, सो उन्होंने मुझे ऊपर से हटाया और अपनी दोनों टांगें ऊंची करके आंखें बंद करके चुदने का इन्तज़ार करने लगी।
जैसे ही मेरा लण्ड और भाभी की चूत मिली लगा आग से आग मिल कर और भड़क उठी…. लन्ड चूत को चीरता हुआ अन्दर जाने लगा और आग से जैसे पानी बरसने लगा…. दोनों मिलते ही जैसे एक दूसरे को निगलने लगे। मेरा लण्ड वासना भरी मिठास से भर उठा, और चूत मेरे लण्ड को जैसे लपेटने लगी। मुझे जैसे होश ही नहीं रहा। चूतड़ ऊपर उठ कर आगे पीछे चूत पर रगड़ खाने लगे। लण्ड जोर से अन्दर जाता और फिर बाहर आकर फिर से अन्दर जा कर अपना सर पटकता। भाभी सीत्कारें भरने लगी। मेरी भी सिसकारियाँ निकल पड़ी जैसे कि कमरे में कोई घमासान छिड़ा हुआ हो। भाभी ने मुझे कस कर लपेटा और मुझे नीचे धकेल कर खुद ऊपर आ गई और मेरे ऊपर चढ़ बैठी। ऊपर से भाभी ने बैठे बैठे ही एक जोरदार शॉट मारा और खुद ही चीख पड़ी। लण्ड को पूरा मजा आ गया था। भाभी की चूत में लण्ड गहरा बैठ गया था, शायद अन्दर तक चूत फ़ाड़ कर लण्ड का साईज़ ले लिया था। भाभी का ऐसा ही दूसरा धक्का आया और फिर से चीख उठी…. अरे ये तो आनन्द भरी चीख थी। मेरा लण्ड अन्दर तक ठूंस ठूंसकर ले रही थी, उसमें ही उनको मजा आ रहा था। उनके लगातार जोर से मचल मचक कर लण्ड लेने से मैं भी अति उत्तेजित हो गया था।
“देवर जी, अरे इतने दिन कहाँ रहे थे…. मेरी तो लगता है आज ही इच्छा पूरी हुई है !”
“भाभी…. और मारो ना झटके …. हाय मुझे तो देखो क्या हो रहा है…. और मारो चूत को!”
“साले, अब तो तुझे रोज ही चोदा मारुंगी…. हाय रे क्या लण्ड है…. खींच मेरी चूंची को खींच दे रे !” भाभी मस्ती में झूम रही थी। चुदने का पूरा मजा ले रही थी। मुझे भी ऐसा जोरदार मजा कभी नहीं आया था। अचानक भाभी मुझसे लिपट गई और चूत का पूरा जोर लण्ड पर लगाने लगी। जोर लगाते लगाते उनके मुँह से आह निकलने लगी और उनके होंठ मेरे होंठो से जोर से चिपक गये। इसका असर चूत पर हुआ और और उसमें लहरें चलने का अहसास होने लगा। वो बार बार चूत का जोर लण्ड पर लगाती और आह रे …. पानी छोड़ने लगी। भाभी झड़ रही थी।
मैं भी अपना लण्ड को चूत में पूरा घुसेड़ कर दबाने लगा और फिर अन्दर ही लण्ड ने अपना रस छोड़ दिया। अब हम दोनों आपस में जोर लगा कर अपना अपना वीर्य निकालने में लगे थे। भाभी मुझसे लिपटी हुई पड़ी थी और मैंने उन्हें अपनी बाहों में लपेट रखा था। दोनों ही अभी भी झड़ रहे थे, दोनों के चूतड़ एक दूसरे के चूत और लण्ड दबा रहे थे और अपना पूरा माल निकालने में लगे थे।
भाभी और मैं, दोनों ही नंग धड़ंग एक दूसरे से चिपके हुये बिस्तर पर पड़े हुये थे। कुछ ही देर में भाभी के खर्राटो से पता चल गया कि वो सो गई हैं। मुझे पूर्ण सन्तुष्टि हो चुकी थी, भाभी भी निहाल हो कर सो चुकी थी। मैंने भाभी के नंगे शरीर को देखा और मुस्करा उठा…. अब ये बदन मेरा था…. । मैं बिस्तर से उतरा और एक पतली साफ़ चादर भाभी के शरीर पर डाल दी और स्वयं कपड़े पहन कर सोफ़े पर जाकर सो गया। Antarvasna Sex Stories
हाय पाठको !आपका शुक्रिया कि आपने मेरी कहानी को इतना पसंद किया Antarvasna कि मुझे दूसरी कहानी बताने का हौसला मिला। तो शुरु करता हूं और अपने एक नये अनुभव को आप के सामने पेश करता हूं।
बात उन दिनो कि है जब मैं सर्दी के दिनों में धूप सेंक रहा था, मेरे पड़ोस की कुछ लड़कियां भी हमारे घर की छत पे धूप सेंकने आती थीं क्योंकि हमारे घर की छत पे धूप बहुत अच्छी लगती थी। मेरा एक दोस्त, जिसका नाम बोक्सर भाई था, की बहन भी धूप सेंकने हमारी छत पे ही आती थी। उसका नाम बोबी था। गज़ब की सेक्स बोम्ब थी वो। उसकी मस्त गांड को देखकर किसी का भी लंड खड़ा हो सकता था। उसको चोदने का बहुत मन तो था लेकिन बोक्सर से डर की वज़ह से कभी हिम्मत नहीं हो पायी थी। मेरी और उसकी बहुत अच्छी दोस्ती थी लेकिन शायद बोक्सर भाई को हमारी ये दोस्ती पसंद नहीं थी। वो टाइम टाइम पे मुझे धमकी देता था कि मैं उसकी बहन से किसी तरह की दोस्ती न रखूं, लेकिन आप तो जानते हैं कि लंड की प्यास के आगे हर कोई बेबस है।
उस दिन मोम डोक्टर के पास गयी हुयी थी। मैं घर पे ब्लु मूवी देख रहा था। मुझे पता भी नहीं चला कि कब बोबी मेरे पीछे आ के खड़ी हो गयी। वो मूवी देखने लगी। अचानक उसके हाथ से कुछ टकराया, मैने मुड़कर देखा तो बोबी मेरे सामने थी। मैने पहले तो टीवी ओफ़ किया, मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करुं।
अचानक बोबी ने कहा-तुम तो बहुत गंदे हो, मैंने कहा नहीं बस टाइम पास कर रहा था। उसने कहा बोक्सर भैया ठीक कहते हैं कि तुमसे कोई वास्ता ना रखुं, मुझे उम्मीद नहीं थी कि तुम ऐसी मूवीज़ भी देखते होगे। मैंने कहा-मूवी तो तुमने भी देखी है।तो उसका जवाब था-मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कुछ कहने की
अब मेरी हिम्मत कुछ बढ़ने लगी थी, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया और कहा प्लीज़ मोम या डैड से इस बारे में कुछ नहीं कहना जबकि मैं भी जानता था कि वो कुछ कहने वाली नहीं है। मैंने देखा कि उसने अपना हाथ छुड़ाने की ज़रा भी कोशिश नहीं की। मेरा हौसला और भी बढ़ गया। मैंने उसके हाथ को धीरे धीरे दबाना शुरु किया और उसे अपनी बाहों में भर लिया। शायद फ़िल्म देख के वो भी गरम हो चुकी थी। उसने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसके होठों को हल्का सा चूम लिया और कहा प्लीज़ मोम से मत कहना, उसने जवाब नहीं दिया। मैंने उसकी चूची को चूम लिया और कहा-मोम से मत कहना प्लीज़, उसने कोई जवाब नहीं दिया। वो मस्त हो चुकी थी।
मैंने धीरे धीरे अपना हाथ उसकी कमीज़ में डाल दिया और उसके मोम्मे दबाने लगा। मैंने अब मोर्चा सम्भालना शुरु कर दिया था, मैंने धीरे से उसकी ब्रा के हुक खोल दिये और उसकी कमीज़ और ब्रा को अलग कर दिया शायद वो मज़ा ले रही थी अब उसकी चूचियां मेरे सामने थी, मैने उसकी चूचियों को अपने मुँह मे डाल लिया। वो तड़प उठी, नहीं नितिन ये ठीक नहीं है, मैंने उसके होठों पे अपने होठों को रखते हुये कहा जब मज़ा आये तो सब ठीक हो रहा है, उसने कहा अगर बोक्सर भाई को पता लग गया तो?
मैंने कहा उसने कौन सा तुझे चोदना है जो उसे पता लग पायेगा। हम इस बात को राज़ ही रखेंगे।
और मैंने टाइम ना वेस्ट करते हुये उसकी शलवार को भी अलग कर दिया। अब वो मेरे सामने सिर्फ़ पैंटी में थी। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि बोक्सर की सेक्सी बहन को आज मैं चोदने जा रहा हूं। मैंने उसकी चूचियां चूसते हुये उस की पैंटी को भी उस से अलग कर दिया। मैंने उसे ६९ पोजिशन में लिया और उसकी चूत को चाटने लगा, वो मेरे लंड को चूस रही थी।
वाह क्या आनंद के लम्हे थे वो? वो १५ मिनट में झड़ गयी लेकिन मैंने उसे सीधा लिटाया और उसकी बिना बालों की चूत को उंगली से सहलाना शुरु किया।
अब वो दोबारा जोश में आ रही थी। मैंने उसकी टांगों को ऊपर उठाया और अपना 7″ का लंड उसकी चूत में डाल दिया वो चीख उठी। मैंने उसके मुँह पे हाथ रख दिया ४ -५ धक्के लगाने के बाद जब लंड पूरी तरह अन्दर घुस गया और उसे भी मज़ा आने लगा तब मैंने हाथ हटा दिया। अब उसके मुंह से आआह ऊऊउह फ़क मी की आवाज़ निकल रही थी। अब हम जोश में थे।
डू इट फ़ास्ट, डू इट फ़ास्ट, फ़क मी, फ़क मी, फ़क मी की आवाज़ से कमरा गूंज रहा था। मैंने २० मिनट तक उसको चोदा। हम दोनो खुश थे। उसके बाद वो कहने लगी-तुमने अपना लंड तो टेस्ट ही नहीं करवाया। तो मैंने कहा उसमें क्या बड़ी बात है और फ़िर मेरा लंड उसके मुँह में था। एक बार फ़िर वो मेरा लंड चूस कर मज़ा ले रही थी।
सच बताउं तो दोस्तो जितना मज़ा बोक्सर भाई की बहन को चोद कर आया उतना मज़ा ज़िंदगी में कभी भी नहीं आया। गज़ब का नशा है उसकी चूत में। उस दिन के बाद मैंने कई बार बोक्सर की बहन को चोदा। और बोक्सर आज भी इस बात से बेखबर है।
तो चोदो चुदाओ और लाइफ़ को खुश हाल बनाओ। Antarvasna
विशिंग यू ए लोट हेप्पी लाइफ़ & हेप्पी फ़किंग।
मैं आज अपनी सच्ची कहानी पहली बार Sex Stories आप सबको बताना चाहता हूँ। मैं ३६ साल का ५’११” लंबा ख़ूबसूरत मुंबई में रहता हूँ।
बात १ साल पहले की है. सुरुति नाम था उसका, टेली कालर थी वो, पहली बार जब उसका फ़ोन आया तो मैंने ज्यादा बात नहीं की उससे और ३५ मिनट में कॉल करने को कहा. ठीक ३५ मिनट के बाद उसका कॉल आया तो मैंने उसे कोम्प्लिमेंट दिया और इस तरह हमारी बातों का सिलसिला शुरू हुआ. वो रोज मुझे ऑफिस मैं ठीक उसी समय काल करने लगी और धीरे धीरे हम एक दूसरे को अच्छी तरह जानने लगे तो सोचा कि एक दिन हम कहीं मिलें
तो उसने कहा कि इस रविवार को वो अपनी एक सहेली की शादी में अलिबौग जा रही है चाहो तो तुम भी आ जाओ. हमने एक दूसरे को अभी तक देखा भी नही था इसलिए मिलने की तड़प काफी थी. दोनों तरफ़ आग लगी थी. हमने गेटवे से फेर्री मै जाने का प्लान बनाया और तय समय पे गेटवे पे मिलने का वादा किया.
रविवार के दिन सुबह जल्दी से उठ कर मैं तय जगह पर पहुँच कर उसका इंतज़ार करने लगा. तभी मैंने देखा एक बहुत ही ख़ूबसूरत लड़की ३५-३२-३६ साइज़ वाली मेरी तरफ़ आ कर बोली- विन्स !
मैं तो एक पल के लिए सब कुछ भूल गया और उसे देखने मैं सब कुछ भूल गया, उसने टोका और कहा- कहाँ खो गए !
तो मैंने कहा- इस खूबसूरती में खो गया तो वो शरमा गई और बोली खोने के लिए और भी बहुत कुछ है, अभी यहाँ से चलो.
पूरे सफर में हम एक दूसरे के अंग से अंग रगड़ रहे थे। उसने बताया कि उसकी सहेली की शादी तो एक बहाना था, उसे तो मुझसे मिलना था, मैंने भी अपने दिल की बात उसको बताई तो वो मुझसे लिपट के बोली हम इतने दिनों तक क्यों नही मिले?
मैंने कहा- कोई बात नही देर आए दुरुस्त आए तो उसने पूछा- क्या मतलब?
मैंने कहा थोडी देर मै पता चल जाएगा.
हम अलिबौग पहुँच के थोड़ी देर बीच पे घूमे और पानी में मस्ती करने लगे तो उसके कपड़े गीले हो गए, जिससे उसके छाती के उभार सफ़ेद रंग के कपड़ों में काफी साफ़ दिखाई दे रहे थे. उसने मुझे कहा क्या देख रहे हो?
तो मैंने कहा- कहाँ दिख रहे है तो वो बोली- झूठे ! मुझे पता है तुम क्या देख रहे हो और मुझसे जोर से चिपक गई. उसके बदन की गर्मी से मेरे सारे बदन में करंट सा दौड़ गया और मैंने भी जोर से उसे बाहों में भर लिया. हम १० मिनट तक ऐसे ही खड़े रहे. फिर हमें ध्यान आया कि हम बीच पे हैं। उसने कहा भूख लगी है और कपड़े भी गीले हो गए हैं.
मैं तो जैसे इसी पल का इंतज़ार कर रहा था.तुंरत नजदीक के एक होटल मैं जा के एक कमरा बुक कर लिया और हम दोनों रूम में आ गए. मैंने उससे कहा अपने कपड़े बदल ले नही तो ठण्ड लग जायेगी. तो वो बोली वो तो तुम्हे भी लग जायेगी.हम दोनों ही बदल लेते हैं, खुला ग्रीन सिग्नल मिलते ही मैं तुंरत उसे बाथरूम में ले गया और उसके होठों को चूसने लगा, वो भी साथ देने लगी और धीरे धीरे मैं उसके बब्बो को मसलने लगा तो वो सिस्कारियां भरने लगी और गरम हो गई. धीरे धीरे मैंने उसको पूरा नंगा कर दिया और ख़ुद भी नंगा हो गया. उसके भरे भरे बब्बे देख के मेरा लण्ड तन के खंभे के जैसे खड़ा हो गया तो सुरुति की आँखे एकटक उसे ही देख रही थी।
मैंने पूछा क्या कभी देखा नही क्या तो वो बोली नहीं आज पहली बार देख रही हूँ सिर्फ़ सुना था कि मोटा और लंबा होता है, आज देख के मजा आ गया और मेरे लण्ड को छूकर बोली- माय गोड ! कितना बड़ा है यह !
फिर हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर खूब रगड़ रगड़ के नहाये और बाहर बेड पे आ गए. सुरुति बोली आज तुम मुझे चाहे जैसे प्यार करो जो चाहे वो करो. मैंने कहा- हम ६९ पोसिशन में आ के एक दूसरे का चाटते हैं तो वो शरमा के बोली- पहले आप करो मैं साथ देती हूँ।
मैंने उसे बिस्तर पे लेटा के उसकी कुंवारी चूत को अपनी जीभ से चाटना शुरू किया तो वो सिसकियाँ लेने लगी और पूरा कमरा आह ऊह से भर गया. वो अपनी गांड उठा उठा के अपनी चूत चटवा रही थी. थोडी देर बाद बोली- मुझे भी चॉकलेट खानी है तो मैंने अपने लंड को उसके मुंह की ओर किया और कहा- खा लो.
उसने तुंरत कहा- एक मिनट रुको और अपने बैग से कैडबरी डेरी मिल्क का एक बड़ा पैक ले आई और बोली अब लाओ और उसने डेरी मिल्क का एक टुकड़ा मुंह में लिया और थोड़ा खा के फिर लंड के नजदीक जा के बड़े ही प्यार से सुपाडे पे चॉकलेट का सिंगार किया और चाटने लगी। लंड मिक्स विद चॉकलेट गज़ब का स्वाद बोलते हुए वो लंड को एक सीखी हुई चुद्दकड़ के जैसे चूस रही थी। मुझसे भी रहा नहीं जा रहा था मैंने भी थोडी चॉकलेट मुंह में ली और ६९ पोसिशन में चूत चॉकलेट का मजा लेने लगा. हम दोनों में जैसे होड़ लगी थी कौन कितना अच्छा चूस रहा है. इस बीच अचानक वो बोली- अन्दर कुछ तो हो रहा है जैसे कुछ बाहर आ जाएगा !
तो मैंने कहा- आने दो ! मैं तैयार हूँ पीने के लिए.
वो पूरी तरह से गांड हिला हिला के चुसवा रही थी और चूस रही थी. उसकी चूत से रस की फुहार निकली और मैंने पूरी पी ली। वो निढाल हो के बोली राजा ये क्या था? जो भी था बहुत मजा आया.
“असली मजा तो अब आएगा” मैं बोला तुम लंड चूसती रहो, मेरा भी रस निकलने वाला है।
तो उसने लपालप लंड को अन्दर बाहर करना शुरू किया और पूरा का पूरा मुंह में ले लिया, मेरे रस की फुहार पूरी चूस ली उसने.
सुरुति बोली- राजा मजा आ गया ! मुझे नही पता था लंड तो लंड उसका रस विद चॉकलेट कितना मजेदार होता है. पूरी जवानी के इतने दिन इस सुख से मैं कैसे वंचित रह गई.”
रानी क्यों घबराती हो, आज ऐसे चोदूंगा कि जितना खोया है उससे ज्यादा आज मिल जाएगा.
“सच” बोल के सुरुति चिपक गई फिर से लंड से, और सहलाते हुए बोली- हाय कहाँ था तू मेरे शेर ! कब से चूत तुम्हारे इंतज़ार में थी.
उसने लंड को चाटकर तुंरत ही फिर से घोड़े जैसे किया और बोली- राजा आ जा और चोद मुझे, फाड़ दे मेरी चूत को, बहुत तड़पा रही है मुझे, चूस मेरे इन बब्बो को दबा दबा के और पूरा दूध पी लो इनका !
आज मेरे लंड राजा को सुरुति की चूत मुबारक हो !
मैंने भी तुंरत लंड को चूत पे रखा और धीरे से धक्का दिया, पर सुरुति की कसी हुई कुंवारी चूत में मेरा घोड़े वाला लंड थोड़े ही आसानी से जाता !
वो तो चुदवाने के लिए मरी जा रही थी- हरामखोर ! खुली हुई चूत है, फिर भी तड़पा रहा है, डाल जल्दी से मुझसे नहीं रहा जाता है अब तो !भोसड़ा बना मेरी कुंवारी चूत को !
दो धक्के में लंड चूत में समां गया, सुरुति दर्द से कराह उठी लेकिन बोली- राजा छोड़ो मत ! चोदों मुझे !
८-१० धक्कों में ही वो मस्त हो गई और गांड उठा उठा के मजे लेने लगी। मैं भी मस्त हो के उसे चोद रहा था। अलग अलग आसन लगा के साली को चोदा।
वो भी मदमस्त घोड़ी के जैसे लंड से चुदवा रही थी,”मजा आ गया ! साले लन ऐसा होता है? पता होता तो हम फ़ोन पे फालतू ही गांड मरवा रहे थे। जानू पहले क्यों नही बताया कि चुदाई ऐसी होती है। बहनचोद ! क्या चीज़ है ये लंड और चूत ! मजा आ गया ! आज जिन्दगी का असली सुख मिला है ! जी भर के चोदों मुझे ! बब्बे चूसो मेरे ! चूत का भोसड़ा बना दो ! जैसे चाहो वैसे लो मेरी चूत को ! आज से ये तुम्हारी गुलाम है साली ! लंड राजा आजा !”
३० मिनट तक चोदने के बाद मेरे लंड से गरम गरम रस निकलने को तैयार हुआ तो धक्के और बढ़ गए- सुरुति रानी मैं अब आने वाला हूँ, संभालना ! मेरा घोड़ा तैयार है रस मलाई निकलने को !”
“मेरी चूत भी तैयार है खाने को.”वो बोली.
कुत्ते कुतिया की पोसिशन में उसको ले के जोर जोर से १५-२० कस के शोट लगाये- साली ले ! मैं आ रहा हूँ ! कहते हुए पूरा रस चूत मैंने उड़ेल दिया उसकी चूत के अन्दर तक.
सुरुति के चेहरे से खुशी झलक रही थी. उस दिन शाम तक हमने ५ बार चोदा और फिर शाम को खाना खा के फिर से अगली चुदाई का कार्यक्रम तय कर के मुंबई के लिए निकल पड़े…
अगली बार क्या हुआ? और कहाँ? किसके साथ हुआ? मैं आपके विचार जानकर लिखूंगा. Sex Stories
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