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मैं संजय के साथ आज डांस क्लब में डिनर Hindi Porn Stories पर आई थी। स्टेज पर डांस चल रहा था। संजय और मैं रिजर्व टेबल पर बैठ गये थे। बैरा ड्रिन्क लाकर रख गया था… मैंने अपने लिये गोवा का मशहूर जिंजर वाईन मंगवाया था। हम दोनों भी उस माहौल में धीरे धीरे रंगने लगे थे। थोड़ी देर में सन्जय मेरे साथ डांस फ़्लोर पर था।
हल्का नशा था … डांस में मजा भी आ रहा था … मैं भी अपने डांस को सेक्सी बनाने लगी। अपनी चूंचियां उछाल उछाल कर सन्जय को रिझाने लगी। इतने में मुझे राज अकेला नाचता हुआ नजर आ गया। मैं चौंक पडी ! ये आज यहां कैसे? तुरन्त मेरे तेज दिमाग में एक प्लान उभर आया।
मैंने सन्जय से कहा,’सन्जू… वो राज है, मेरे पुराने मिलने वालों में से है ! तुम रेस्ट करो ! मैं उस से मिल कर आती हूं !’ संजय वैसे भी ड्रिन्क करना चाहता था। सो वह अपनी टेबल पर चला गया। मेरे दिल में राज को देखते ही हलचल मच गयी थी। मैं डांस करती हुयी राज के पास आ गयी। मुझे देखते ही वो चौंक गया,’अरे रोज़ी तुम ! कैसी हो?’
‘हाय राज ! तुम बताओ शीना की डेथ के बाद अब मिले हो !’
राज़ सकपका गया। शीना मेरी गहरी सहेली थी, उसकी सारी बातें मैं जानती थी, पर राज को ये नहीं पता था कि शीना की कोई हमराज़ भी है।
‘हां ! मैं दिल्ली चला गया था, शीना का बिजनेस भी तो सम्हालना था, आज तो तुम बड़ी सेक्सी लग रही हो !’
‘ऐ !! इधर से नजरें हटाओ, वर्ना मर ही जाओगे !’मैंने उसे अपने स्तनों की तरफ़ इशारा किया, फिर अपनी चूंचीं उछाल दी।
‘हाय ! रोज़ी ! सच में, तुम्हारी इसी अदा पर तो मरता हूं !’
मै उसकी कमर में हाथ डाल कर उससे चिपकने लगी। उसने भी मेरे उरोज अपनी छाती से भींच दिये। मुझे लगा राज दिलफ़ेंक तो है ही, जल्दी पट जायेगा !
‘आऊच ! क्या करते हो, ये तो नाजुक है, जरा धीरे से !’
राज मचल उठा। उसने धीरे से मेरी चूंचियां दबा दी, हाथ मेरे चूतड़ों की तरफ़ बढ चले।
‘मस्त हैं तुम्हारी चूंची तो !’
‘अरे! इतनी अच्छी भाषा बोलते हो !’ मैंने भी उसे बढावा दिया।
‘तो फिर हो जाये एक दौर !!’ राज़ ने चुदाई की ओर स्पष्ट इशारा किया।
‘ कैसा दौर? राज ! साफ़ कहो ना !’
‘तुम और मैं ! और मस्ती का दौर !’
‘चुप ! अभी सन्जू है, कल दिन को रखते है, मैं सीधे तुम्हारे घर पर ही आ जाऊंगी।’ मैंने उसे समय दे दिया और मैं जाने लगी। राज मुझे जाने ही नहीं दे रहा था।
जैसे तैसे मैंने उससे पीछा छुड़ाया और सन्जू की टेबल पर आ गयी।
संजय सब समझ चुका था। हमने डिनर लिया और सजय ने मुझे घर छोड़ा फिर अपने घर चला गया।
अगले दिन –
दिन के ग्यारह बज रहे थे। मैंने बुर्का पहना और राज के घर चली आयी। राज मुझे देखते ही खुश हो गया।
‘मैं फोन करने ही वाला था कि तुम आ गयी।’
‘मेरा फोन नम्बर तुम्हरे पास है क्या’
‘नहीं ! पहले तुम्हारी सहेली को करता उस से नम्बर ले लेता।’ मैंने चैन की सांस ली और बुर्का उतार दिया।
राज ने मुझे खींच कर अपने से चिपका लिया और मुझे चूमने लगा।
‘राज पहले ड्रिंक, फिर मजे करेंगे।’
‘ओके ! तुम्हारे लिये क्या बनाऊं? हार्ड या बीयर?’
‘नहीं बस तुम पियो !’
‘ये हाथ के मोजे तो उतार दो !’
‘नहीं !हाथ जल गया था !’ उसने ड्रिंक लेनी शुरु कर दी, मैं उसके पास ही बैठ गयी। अब वो धीरे धीरे मेरे जिस्म से खेलने लगा। मुझे भी रंग चढने लगा. मैंने उसे चूमना चालू कर दिया। उसने भी जवाबी हमला बोल दिया। उसने सीधे मेरी चून्चियो को दबा डाला।
मुझे एकदम से तरन्ग आ गयी। मैंने अपने बोबे उसके सामने तान दिये, वो मेरे दोनो उरोज पकड़ कर दबाने लगा। मैं अपनो उरोजो को और आगे उभार कर उसके हाथों पर जोर डालने लगी। ऐसे मुझे और भी मजा आने लगा।
‘दबा मेरे राज, ये ले मेरी कड़क चूंचिया, मसल दे हरामी को !’
‘मेरी रोज़ी तू तो बड़ी सेक्सी बातें करती है !’ उसने पूरा गिलास एक झटके में पी लिया, मैंने दूसरा गिलास बना दिया।
‘राज आज मेरे मन की निकाल दे, शीना को तो तूने खूब चोदा है, मुझे क्यों छोड़ दिया था रे !!’
‘मेरी जान अब चुद लो, शीना के होते हुये तुझे कैसे चोद सकता था?’
मै अब खड़ी हो गयी, और अपने गोल गोल चूतड़ उसके चेहरे के सामने कर दिये।
‘राज इन नरम नरम चूतड़ों को भी मसल दो ना, साले बहुत बेताब हो रहे हैं!’
राज मेरे चूतड़ देख कर उतावला हो उठा। उसने अपना गिलास एक बार में खाली कर दिया। और मेरे चूतड़ों को जोर जोर से दबाने लगा। मैंने अपने चूतड़ और फ़ैला दिये और उसकी ओर निकाल दिये। मैंने उसका गिलास फिर से एक बार और भर दिया। राज़ ने मेरी सफ़ेद पैन्ट नीचे उतार दी और मुझे नन्गी कर दिया। मैंने शर्माने का नाटक किया,’हाय मेरे राज ! मेरी चूत दिख रही है छिपा लो इसे !!’
उसने तुरन्त उपने होन्ठ मेरी चूत से चिपका दिये। मेरे मुख से आह निकल गयी। मैंने अपनी पैन्ट नीचे से पूरी उतार दी। फिर अपना टोप भी उतार दिया। अपनी चूत को मैं अब जोर लगा कर उसके होंठो से रगड़ मार रही थी। मेरे शरीर मे वासना भरती जा रही थी। मुझे मीठी मीठी सी सिरहन होने लगी थी। अब राज़ अपनी जीभ से मेरा दाना चाट रहा था, मेरी चूत फ़ड़क उठी, मैं अपनी चूत उसके मुख पर मारने लगी। फिर जोर लगा कर उसके होठों से रगड़ने लगी। अब मेरी चूत काफ़ी पानी छोड़ चुकी थी। मैंने अपनी चूत दूर करके अब उससे चिपक कर बैठ गयी।
उसका लन्ड पैन्ट से बाहर निकलने को जोर मार रहा था। मैंने उसकी ज़िप खोल कर उसका लन्ड बाहर निकाल लिया। बाहर आते ही जैसे उसके लन्ड ने राहत की सांस ली। फ़नफ़नाता हुआ सांप की तरह खड़ा हो गया, मैंने प्यार से उसे पकड़ कर सहला दिया और उसे अपनी मुट्ठी में भर कर हौले से ऊपर नीचे करने लगी। राज़ मदहोश होता जा रहा था, मैंने उसकी पैन्ट नीचे खींच कर उतार दी। ऊपर के कपड़े उसने स्वय ही उतार दिये। वो नशे में झूम रहा था, मैंने उसके लन्ड दो अब खींचना और मसलना भी चालू कर दिया था। उसकी हालत बेकाबू होती जा रही थी।
‘अरे मादरचोद! रन्डी… अब तो मेरा लन्ड चूत में घुसेड़ ले !’
‘मेरे राजा अभी रूको तो ! तेरे लन्ड की मां तो चोदने दे !’
‘हाय मेरी रानी ! तू कितना मस्त बोलती है रे! घिस दे इस हरामी को!’
मुझे लगा कि थोड़ा और घिसने से ये तो झड़ जायेगा। उसके लन्ड को झूमते देख कर मुझे भी चुदने की लगन लग गयी थी। मैंने अपनी चूत का मुंह खोला और उसका कड़कता लन्ड चूत-द्वार पर रख दिया, उसे कहां चैन था, उसने तुरन्त ही नीचे से धक्का मार दिया। उसका लन्ड मेरी चूत में रास्ता बनाता हुआ गहराई में घुसता चला गया। मेरी मुख से कसकती हुयी आह निकल पड़ी।
मैंने उसे सोफ़े पर ठीक से एडजस्ट किया और मै ऊपर ही उठने बैठने लगी पर राज़ ने मुझे तुरन्त हटाया और बिस्तर पर ला कर पटक दिया,’अब तेरी चूत का मैं भोसड़ा बनाता हूं ! रूक जा बहन की लौड़ी… !~’
‘हाय राजा ! देख छोड़ना मत मेरी चूत को ! इसकी तो मां चोद दे यार ! ‘
‘ रोज़ी … ये ले … यस यस… क्या मस्त चूत है… आऽऽऽह…’
‘है न मस्त … चिकनी और प्यारी सी… बस फ़ाड़ दे यार… दे धक्का… हाय री…’
‘चुद जा …मेरी जान… ‘ राज़ और मैं गालियां पर गालियां मस्ती में दिये जा रहे थे…
चूत का पानी और धक्के … फ़च फ़च की आवाजें कमरे में गूंजने लगी। मेरी चूत में अब मीठा मीठा सा दर्द और तेज गुदगुदी उठने लगी। उसके धक्के अब मेरी जान निकाल रहे थे… मेरी उत्तेजना बहुत बढ चुकी थी … मेरी चूत अब पानी छोड़ने को मचल रही थी… मैंने अपनी चूत को भींच लिया… मेरी चरमसीमा आने वाली थी … मेरी चूंचियां राज बेरहमी से खींच रहा था… मसल रहा था … उसके चूतड़ तेजी से उछल रहे थे , उसका लन्ड इंजन के पिस्टन की तरह फ़काफ़क चल रहा था…
अचानक मैं छूट पड़ी… मेरा पानी निकलने लगा।
‘राजा मैं गयी … हाऽऽऽऽय्… मेरी चूत छूट गयी … मेरे बोबे छोड़ दे रे … बस… अब बस कर …’
‘कहां मेरी रानी … अभी तो चूत का भोसड़ा बना ही नहीं है…’
‘छोड़ दे … हराम जादे … भोसड़ी के … तेरी मां को घोड़ा चोदे…’
‘अरे … मेरी… रन्डी… छिनाल… चुद जा रे… नखरे छोड़ दे…’
उसी समय उसने मुझे जोर से जकड़ लिया… उसका लन्ड मेरी चूत मे गहराई तक गड़ गया…
‘मैं गया … मेरा निकला… माई चोदी रे… ऊऽऽऽईऽऽऽ… हाय मेरी मां चुद गयी रे… ये…ये… हाय निकल गया मेरी जान …’ उसने तेजी से लन्ड चूत में से निकाल लिया। उसका वीर्य तेजी से पिचकारी के रूप में मेरे बदन पर बरसने लगा… मैंने सारा वीर्य अपने बोबे और पेट पर मल लिया।
उसका लन्ड पकड़ कर खींच खींच कर बाकी का वीर्य भी निकाल कर कर अपने शरीर पर मलती गयी। राज मस्ती में लन्ड उछालता रहा। नशा उस पर चढ चुका था… अब वो सुस्त पड़ने लगा…अब वो बिस्तर पर निढाल हो कर लुढक गया। नशा उस पर पूरा चढ चुका था … उसकी आंखे बन्द होने लगी थी…
मैंने उसकी हालत देखी वो लगभग नींद में था … मैंने तुरन्त ही बिस्तर पर से छलांग मारी और अपने पर्स को खोला… अब एक चमकता बड़ा सा खन्जर मेरे हाथों में था… दूसरे ही क्षण मेरा हाथ बिजली की तरह चला और उसका गरदन का आधा भाग कट गया… उसकी सांस की नली कट चुकी थी… उसकी फ़टी हुयी आंखे मुझे अविश्वाश से देख रही थी…
‘ये मेरी शीना की हत्या का बदला है … बड़े खुश थे ना उसकी असीम दौलत पाकर…।’
और मेरे खन्जर का दूसरा वार सीधे उसके दिल पर था… उसकी आंखे फ़टी कि फ़टी रह गयी … मैं वहीं क्रूरता से मुस्कराती रही… उसकी जान जाते देख कर मुझे असीम शांति मिल रही थी … मेरे मन की आग शान्त हो चुकी थी। उसकी लाश अब मेरे सामने पड़ी थी… उसकी आंखे खुली थी… मैंने अपना खन्जर उसी के कपड़े से साफ़ किया… और उसे फिर से पर्स में रख लिया…
मैंने अपने कपड़े सोफ़े पर से उठा कर पहन लिये। उसका मोबाईल भी अपने हवाले किया। अपना मेक अप ठीक किया… अपने दस्ताने उतार कर पर्स में रखे और ध्यान से कमरे का निरीक्षण किया… सन्तुष्ट हो कर मैंने अपना बुर्का पहना और बाहर झांक कर देखा।
दोपहर का एक बज रहा था … मै चुप से बाहर आ गयी… मैं जल्दी से बाहर आई और पैदल ही एक तरफ़ चल दी… सड़क सूनी पड़ी थी… मै सामान खरीदने एक मोल पर आ गयी… मैंने बाहर ही बुर्का उतारा और एक थैले में रख दिया… कुछ सामान खरीद कर बाहर आ गयी। सारा सामान थैली में रख कर बाहर आकर एक टूसीटर कर लिया … रास्ते में नदी के पुल पर से नदी में राज़ का मोबाईल फ़ेन्क कर रास्ते में उतर गयी। वहां से टेक्सी करके घर के पास उतर गयी… और पैदल ही घर की ओर चल दी… Hindi Porn Stories
हाय! अन्तर्वासना के पाठकों Sex Stories के लिये पेश है पुलकित झा का एक और तोहफा! इस बार यह कहानी मैं सीमा की ओर से उसी के शब्दों में पेश कर रहा हूं।
हाय! मम्मी की डैथ के बाद पापा अकेले हो गये और उन्होंने पीना शुरू कर दिया। पापा के दो दोस्त थे, गुरुबचन अंकल और अकील अंकल। तीनों रोज शाम को किसी एक के घर बैठते थे। जब ये बैठक हमरे घर होती थी तो मैं ही उन्हें पानी नमकीन आदि सर्व करती थी। कुछ ही दिनों में मैंने महसूस किया कि जब भी मैं नमकीन आदि रखने के लिये झुकती हूँ तो अकील मेरे अन्दर झाँकने की कोशिश करते थे।
मैं भी कोई दूध की धुली नहीं थी तीन चार बार चुदवा चुकी थी सो उनका आशय समझ गई। चुदे हुए काफ़ी समय हो चुका था। मेरी चूत में खुजली मचने लगी। मैंने भी चारा डालने का मन बना लिया। आज जब वे आये तो मैंने अपनी ब्रा टाइट की और कुर्ते का ऊपर का एक बटन खोल लिया इससे झुकते ही मेरी जवानी बाहर झलकने लगती थी। पापा वाइन निकालने गये तो मैं नमकीन लेकर पहुँच गई और अकील की ओर मुँह करके प्लेट रखते हुए झुकी और थोड़ा रुक गई। इस बीच जब उनकी ओर निगाह की तो वे टकटकी लगाये देख रहे थे। जब आँखे मिली तो मैं मुस्करा दी। थोड़ा दूर पहुँचकर जब मैंने वापस देखा तो वे मेरी ओर ही देख रहे थे मैं फिर मुस्करा दी। मेरा संदेश उन तक पहुँच चुका था अब तो जबाव की बारी थी। गुरू अंकल ने भी यह सब नोट कर लिया था। बीच में जब पापा बाथरूम गये तो मैंनें उनकी बातें सुनी … …
उसकी बेटी पर लाइन मार रहा है क्या??? यह गुरू की आवाज थी।
जवानी सम्भाल नहीं पा रही है साली … … … अकील ने मुस्कराते हुए आँख मारी।
पट जायेगी????
पट तो चुकी है। … हाय!!! बस एक बार मौका मिल जाये तो लौड़े पर उछाल उछाल के चोदूंगा … … …
अकेले अकेले मत चोद लेना … … … ।
चिंता मत कर … । कल ऐसा करना … यहां आने के बाद इसके बाप के साथ दारू लेने चले जाना … पीछे से मैं सब सैट कर दूँगा … और हाँ … आना आराम से …
तभी पापा आ गये। मैं रोमांचित हो रही थी, मन कर रहा था कि अभी जाके गोद में बैठ जाऊँ पर इन्तजार तो करना ही था। दूसरे दिन मैंनें अपनी झांटें साफ़ कीं। शाम को जब वे आये तो आते ही गुरू बोले- अरे यार आज दारू लाना तो भूल ही गया …
चलो मैं ले आता हूं … … पापा ने कहा।
तो गुरू बोले- मैं भी चलता हूँ … … … …
फिर वे चले गये तो अकील ने मुझे आवाज दी … ।
मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था। आज मैंने टी शर्ट पहने थी जिसमें से मेरे स्तन बाहर निकले पड़ रहे थे। जब मैं पहुँची तो वह मुस्कराते हुए बोला- आ न … मैं अकेला बोर हो रहा हूँ … … मैं जब उसके सामने बैठने को हुई तो उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया … …
कुछ देर चुप रहने के बाद उसने अपना एक हाथ मेरे कन्धे पर रखा और बोला- आज बडी क्यूट लग रही है … पर … कल के बराबर नहीं … … …
मैंने उसकी ओर देखा तो उसने मुस्कराते हुए आँख मार दी तो मैं भी मुस्करा दी। और उसने जब अपनी ओर खींचा तो मैं खिंची चली गई। उसने मुझे अपनी गोद में लिटा लिया और अपने होंठ मेरे होंठों पर जमा दिये और एक हाथ से चूचियां दबाने लगा। मैं तो पहले से ही मरी जा रही थी सो कोई विरोध नहीं किया। जैसे ही उसका चूचियों वाला हाथ चूत पर पहुंचा मैं उससे लिपट गई। जैसे ही उसने होंठ छोड़े मैंने एक लम्बी सांस ली।
उसने अपना हाथ मेरे लोअर में डाल दिया और बोला … आज तेरे पापा को ज्यादा पिला दें?????
क्यों????
गहरी नींद में सो जायेगा … फ़िर???? चूत पर उंगली दबाते हुये जोर का चुंबन दिया। मैंने आंखें बंद कर ली … तो उसने अपना हाथ चड्डी में डाल दिया।
बोल ना … चुदवायेगी … … …? वह चूत की दरार में उंगली चलाने लगा।
पर?? गुरू अन्कल भी तो हैं … … … अब मैं पूरी तरह से खुल चुकी थी।
उसे भी दे देना … … … वह चूत के छेद पर उंगली दबाते हुए बोला।
नहीं … … … दोनों से नहीं !!
अरे बहुत मजा आयेगा … … चुदवा तो चुकी है ना पहले????
मैं चुप रही।
फिर क्या प्राब्लम है? …
और फ़िर उसने मुझे सोफ़े पर सीधा लिटाया और लोअर को नीचे खिसकाना शुरू किया तो मैंने रोका- वे लोग आने वाले होंगे … … … …
चलने से पहले गुरू काल करेगा … … …
अच्छा!!! तो सारा प्लान बना कर आये थे … … … मैं लिपटते हुए बोली।
और क्या … तूने भी चूत हमारे लिये ही तो चिकनी की है … … … उसने मेरा लोअर व चड्डी उतार दी और चूत भींचते हुए बोला।
पहले तेरे पापा को डाउन कर देंगे फ़िर तेरी चिकनी चूत को जमकर चोदेंगे … … … फ़िर उसने अपना पैंट उतारा। उसका 7 इंच का मोटा तगड़ा लंड तना हुआ था। मेरी खुजली और बढ़ गई।
आजा ! जब तक वे आयें एक राउन्ड कर लें। और उसने वहीं जमीन पर लिटा लिया तो मैंने भी टांगे उपर उठा ली। उसने मेरा शर्ट गले तक उठाया और दोनों चूचियां थामते हुए लन्ड चूत पर टिका दिया जिसे मैंने हाथ से छेद पर लगा दिया। अकील ने दबाव बढ़ाया तो मेरे मुँह से आह निकल गई … …
उसने फ़िर एक जोरदार धक्का दिया तो लन्ड चूत की दीवार को चीरता हुआ जड़ तक समा गया …
आआह्ह्ह्ह्ह्ह् … … … … … मेरी चीख निकल गई।
उसने पूरा लन्ड बाहर खींचा और फ़िर पूरी ताकत से पेल दिया।
आह्ह्ह … … मारोगे क्या … … !
चुपचाप पड़ी रह बहन की लौड़ी … … आज बरसों के बाद नई चूत मिली है … और फिर वह रुका नहीं … सचमुच एक पक्का मर्द था … … उसकी हर एक चोट पर मुझे लगता था कि मेरी कमर टूट जायेगी … उसने दनादन चोदना शुरू कर दिया। मैं आह्ह आह्ह करती रही और वह चोदता रहा। लगभग 200 चोट मारने के बाद हम दोनों एक साथ झड़े। झड़ते समय उसने लन्ड बाहर खींच लिया और सारा पानी चूत के ऊपर निकाल दिया। फ़िर लन्ड चूत में वापस डालकर मेरे उपर लेट गया।
मजा आया मेरी जान को … … …? वह चूमते हुए बोला तो मैंने उसके गले में बांहे डालकर कई चुंबन ज़ड दिये।
अब सैकिण्ड राउंड में इससे भी बढ़िया चुदाई होगी … … मैं और कस के लिपट गई।
तेरी चूत का हलवा बना देंगे … … और फ़िर गुरू का काल आने तक हम यूँ ही लेटे रहे। जैसे ही गुरू का काल आया, हम सीधे बाथरूम में गये, जहाँ मैंने उसके लंड को और उसने मेरी चूत को साफ किया एक बड़े किस के साथ अलग हुए। फ़िर उनका दौर चला। अपने प्लान के मुताबिक उन्होंने पापा को ज्यादा पिला दी जिससे वे 9:30 तक ही लुढ़क गये तो वे उन्हें सुला आये। सोने से पहले पापा ने उनसे वादा लिया कि वे अपना कोटा पूरा करके ही जायेंगे। जैसे ही उन्होंने पापा के कमरे का दरवाजा बन्द किया मेरी धड़कने तेज हो गई। पहले तो जोश में चुदवा लिया पर अब दो, वो भी एक साथ, की कल्पना से डर लग रहा था। मैं दरवाजे की ओर पीठ करके लेट गई। वे धीरे से मेरे कमरे में घुसे तो मेरी साँस अटकने लगी। अकील मेरे पीछे से लेट गया और मुझे भींच कर बोला …
तो चुदने के लिये तैयार है मेरी रानी …
आज रहने दो, पापा की नींद कच्ची है … फ़िर किसी दिन कर लेना … मेरी बात में दम था सो वे मान गये
… इस बीच गुरू भी आगे से मेरे पास बैठ गया और मेरा चेहरा उठा कर बोला … मुझे प्यासा ही छोड़ देगी क्या … ?
मैंने कुछ नहीं कहा।
तो ऐसा कर गुरू से तो चुदवा ही ले … मैं बाहर तेरे पापा का ध्यान रखूंगा … अकील बोला।
जा तू बाहर ध्यान रख जब तक मैं इससे परिचय कर लूँ … गुरू अकील से बोला तो अकील बाहर चला गया।
गुरू ने मुझे अपनी बांहों व टांगों में भींचकर लिपटा लिया मैंने भी अपनी बाँह उसकी कमर में डाल दी और लिपट गई। गुरू तो इस मौके के इंतजार में ही था और पूरी तरह गरम भी था जिसका एहसास उसके लंड की सख्ती से, जो कि चूत पर दस्तक दे रहा था, से मुझे हो रहा था। जल्दी ही उसने मुझे नंगा किया और खुद भी हो गया। फ़िर वह सीधे ऊपर आया और लंड चूत पर टिका कर मेरे होंठ चूसने लगा।
मैं भी गरम हो चुकी थी सो बोली … … जल्दी करो … !!
तो ले … मादरचोद … और उसने एक ही झटके में लौड़ा चूत में उतार दिया। अकील की तरह उसका लंड भी खूब बड़ा और मोटा था। मैंने टांगे फ़ैला दी और फ़िर वह मेरी कमर तोड़ने में जुट गया। उसकी ताबड़तोड़ चुदाई से मैं कराहने लगी … पर वह तो भूखे भेड़िये की तरह टूट पड रहा था। थोड़ी देर बाद उसने मुझे चौपाया बनाया और फ़िर पिल पडा। उसकी चुदाई अकील से भी ज्यादा भारी थी। लगभग आधा घंटे चोदने के बाद वह झड़ गया तब जाकर मुझे कुछ चैन मिला। वे चले गये पर मेरा शरीर सारी रात दर्द करता रहा। Sex Stories
मैं एकदम चौंक पड़ी। अभी Hindi Porn Stories कुछ बोलती ही कि एक हाथ आकर मेरे मुँह पर बैठ गया। कान में कोई फुसफुसाया- जानेमन, मैं हूँ, सुरेश। कितनी देर से तुम्हारा इंतजार कर रहा था।
मैं चुप !
सुरेश, वही स्मार्ट-सा छोरा जो लड़कियों के बहुत आगे पीछे कर रहा था। मैं दम साधे लेटी रही। कमरे के अंधेरे में वह मुझे स्वीटी समझ रहा है।
“मुझे यकीन था कि तुम आओगी। एक एक पल पहाड़ सा बीत रहा था तुम्हारे इंतजार में। तुमने मुझे कितना तड़पाया !”
मेरा कलेजा जोरों से धड़क रहा था। कुछ बोलना चाहती थी मगर बोल नहीं फूट रहे थे।
स्वीटी गुपचुप यह किसके साथ चक्कर चला रही है?
मुझे तो वह कुछ बताती नहीं थी !
मेरे सामने तो वह बड़ी अबोध और कड़ी बनती थी।
इस कमरे में आज उसे सोना था। मगर वह दूल्हे को देखने मंडप चली गई थी। मुझे नींद आ रही थी और रात ज्यादा हो रही थी इसलिए उसके कमरे में आकर सो गई थी।
चादर ढके बिस्तर पर दूसरा कौन सो रहा है देखा नहीं।
सोचा कोई होगी।
शादी के घर में कौन कहाँ सोएगा निश्चित नहीं रहता। अभी लेटी ही थी कि यह घटना !
“स्वीटी जानेमन, तुम कितनी अच्छी हो जो आ गई।” उसका हाथ अभी भी मेरा मुँह बंद किए था।
“आइ लव यू।” उसने मेरे कान में मुँह घुसाकर चूम लिया।
चुंबन की आवाज सिर से पाँव तक पूरे बदन में गूँज गई। मैं बहरी-सी हो गई। कलेजा इतनी जोर धड़क रहा था कि उछलकर बाहर आ जाएगा।
मन हो रहा था अभी ही उसे ठेलकर बाहर निकल जाऊँ। मगर डर और घबराहट के मारे चुपचाप लेटी रही।
वह मेरी चुप्पी को स्वीकृति समझ रहा था। उसका हाथ मेरे मुँह पर से हट गया।
उसने अपनी चादर बढ़ाकर मुझे अंदर समेट लिया और अपने बदन से सटा लिया। उसके सीने पर मेरे दिल की घड़कन हथौड़े की तरह बजने लगी।
“बाप रे कितनी जोर से धड़क रहा है।” उसने मानों खुद से ही कहा। मुझे आश्वस्त करने के लिए उसने मुझे और जोर से कस लिया- जानेमन आई लव यू, आई लव यू ! घबराओ मत।
मेरा मन कह रहा था- जूली, अभी समय है, छुड़ाओ खुद को और बाहर निकल जाओ। शोर मचा दो। तब यह समझेगा कि चुपचुप लड़की को छेड़ने का क्या नतीजा होता है। शादी अटेन्ड करने आया है या यह सब करने ?
मगर अब उससे जोर लगाकर छुड़ाने के लिए हिम्मत चाहिए थी। एक तरफ निकल जाने का मन हो रहा था दूसरी तरफ यह भी लग रहा था कि देखूँ आगे क्या करता है ! डर, घबराहट और उत्सुकता के मारे मैं जड़ हो रही।
उसका हाथ मेरी पीठ पर घूम रहा था। गालों पर उसकी गर्म साँसें जल रही थीं। मुझे पहली बार किसी पुरुष की साँस की गंध लगी। वह मुझे अजीब सा लगी। हालाँकि उसमें कुछ भी नहीं था। पर वह मुझे वह बुरी भी नहीं लगी। वह मेरी किंकर्तव्यमूढ़ता का फायदा उठा रहा था और मुझे आश्चर्य हो रहा था कि मैं कुछ कर क्यों नही रही। मुझे उसे तुरंत धक्का देकर बाहर निकल जाना चाहिए था और उसकी करतूत की अच्छी सजा देनी चाहिए।
मैंने सोच लिया अब और नहीं रुकूंगी। मैं छूटने के लिए जोर लगाने लगी। अब चिल्लाने ही वाली थी … कि तभी उसके होंठ ढूंढते हुए आकर मेरे मुँह पर जम गए।
मैं कुछ बोलना चाह रही थी और वह मेरे खुलते मुँह में से मेरी साँसें खींचते मुझे चूम रहा था। मेरी ताकत ढीली पड़ने लगी। दम घुटने लगा।
मुझे निकलना था मगर लग रहा था मैं उसकी गिरफ्त में आती जा रही हूँ। मेरे दोनों हाथ उसकी हाथों के नीचे दबे कमजोर पड़ने लगे। मैं छूटना चाहती थी मगर अवश हो रही थी।
उसका हाथ पीछे मेरी पीठ पर ब्रा के फीते से खेल रहा था। कब उसने पीछे मेरे फ्रॉक की जिप खोल दी थी मुझे पता नहीं चला।
उसका हाथ मेरी नंगी पीठ पर घूम रहा था और ब्रा के फीते को खींच रहा था। पहली बार पुरुष की हथेली का एक रूखा और ताकत भरा स्पर्श महसूस हुआ।
मैं जड़ रहकर अपने को अप्रभावित रखना चाह रही थी मगर उसके घूमते हाथों का सहलाव और बदन पर बाँहों के बंधन का कसाव मुझे अलग रहने नहीं दे रहे थे। मुझे यह सब बहुत बुरा लग रहा था मगर अस्वीकार्य भी नहीं।
मैं सोच भी नहीं सकती थी कि कभी यह सब मैं अपने साथ होने दूंगी। मगर …
वह मेरे ब्रा के फीते को खोलने की कोशिश कर रहा था मगर हुक खुल नहीं रहा था। बेसब्र होकर उसने दोनों तरफ से पकड़कर जोर से झटके से खींच दिया। हुक टूट गया और फीते अलग हो गए। मुझे अपने बगलों और छाती पर ढीलेपन का, मुक्ति का एहसास हुआ। अभी तो वह बस पीठ छूकर ही पागल हो रहा था। आगे क्या होगा !
उसके होंठ मेरे होंठों से उतरकर गले पर आ रहे थे। उसके सांसों की सोंधी गंध दूर चली गई। वह फ्राक को कंधों पर से छीलने की कोशिश कर रहा था।
उसने मेरी एक बांह फ्राक से बाहर निकाल दी और उसे सिर के ऊपर उठाकर उस हाथ को ऊपर से सहलाते हुए नीचे उतरकर मेरे बगल को हथेली में भर लिया।
गर्म और गीली काँख पर उसका भरा भरा कसाव मादक लग रहा था।
मुझसे अलग रहा नहीं जा रहा था। पहली सफलता से उत्साहित होकर उसने मुझे बाँहों में लपेटे हुए ही थोड़ा दूसरे करवट पर लिया और थोड़ी कोशिश से फ्राक की दूसरी बाँह भी बाहर निकाल दी।
मेरे दोनों हाथों को ऊपर उठाकर उसने अपने हाथों में बांध लिया और मेरे बगलों को चूमने लगा। उसके गर्म नमकीन पसीने को चूसने चाटने लगा।
उसकी इस हरकत पर मुझे घिन आई मगर मुझे गुदगुदी हो रही थी और नशा-सा भी आ रहा था। मुझे नहीं मालूम था कि बगलों का चूमना इतना मादक हो सकता है।
मैंने हाथ छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी। मेरी सासें तेज होने लगीं।
वह खुशी से भर गया। उसे यकीन हो गया कि अब मैं विरोध नहीं करूंगी।
उसने मुझे सहारा देकर बिठाया और फ्राक सिर के ऊपर खींच लिया। ब्रा मेरी छाती पर झूल गई। उसने उसके फीते कंधों पर से सरकाकर ब्रा को निकालना चाहा मगर मैंने स्तनों को हाथों से दबा लिया। हाथों पर ब्रा के नीचे मुझे अपनी चूचियों की चुभन महसूस हुई।
मेरी चूचियाँ टाइट होकर होकर खड़ी हो गई थीं। मैं शर्म से गड़ गई।
उसने मुझे धीरे धीरे लिटा दिया। मेरे हाथ छातियों पर दबे रहे। वह अब ऊपर से ही मेरे मेरे छातियों पर दबे हाथों को और ऊपर नीचे की खुली जगह को इधर से उधर से चूमने लगा। दबकर मेरे उभारों का निचला हिस्सा हाथों के नीचे थोड़ा बाहर निकल आया था। उसने उसमें हलके से दाँत गड़ा दिया।
चुभन के दर्द के साथ एक गनगनाहट बदन में दौड़ गई और छातियों पर हाथों का दबाव ठहर नही सका। तभी उसने ब्रा नीचे से खीच ली और मेरे हाथों को सीधा कर दिया।
अब मैं कमर के ऊपर बिल्कुल नंगी थी। गनीमत थी कि अंधेरा था और वह मुझे देख नहीं सकता था। उसके हाथ मेरी छातियों पर घूमने लगे। उसने चूचियों को चुटकी में लेकर हलके से मसल दिया।
आह, ये क्या हो रहा था! यह सब इतना विह्वल कर देने वाला क्यों था! मैं कराह रही थी और वह फिर मुझे बार बार मुँह पर चूम रहा था। मुझे उसके होठों पर अपने बगलों के नमकीन पसीने का स्वाद आया। मैंने उसके होठों को चाट लिया।
वह अब नीचे उतरा और मेरी एक चूची को मुँह में भरकर चूसने लगा। मैं गनगना उठी।
एक क्षण के लिए वह एक बच्चे का सा खयाल मेरे मन में घूम गया और मैंने उसका सिर अपने स्तन पर दबा लिया। लग रहा था चूचियों से तरंगें उठकर सारे बदन में दौड़ रही हैं। वह कभी एक चुचूक को चूसता कभी दूसरे को।
मुँह के हटते ही उस चुचूक पर ठंडक लगती और उसी समय दूसरी चूची पर गर्माहट और होंठों के कसाव का एहसास मिलता। मैं अपने जांघों को आपस में रगड़ने लगी। जोर से चलती सांसों से ऊपर नीचे होती मेरी छातियाँ मानों खुद ही उसे उठ उठकर बुला रही थीं।
अब वह मेरी नाभि को चूम रहा था। मानो उसके छोटे से छेद के भीतर से किसी को बुला रहा हो। इच्छा हो रही थी वहीं से उसे अपने भीतर उतार लूँ। अपने बहुत भीतर, गर्भ के अंदर में सुरक्षित रख लूँ। मुझे एकाएक भीतर बहुत खाली सा लगा- आओ, मुझे भर दो।
उसने बिना भय के मेरी सलवार की डोरी खींच ली और ढीली सलवार के भीतर हाथ डालकर मेरे फूले उभार को दबाने लगा। मेरी पैंटी गीली हो रही थी।
उसने पैंटी के उपर से भीतर के कटाव को उंगलियों से ढूंढा और कटाव की लम्बाई पर उंगली रखकर भीतर दबा दिया। मैं सिहर उठी। बदन में बिजली की तरंगें दौड़ रही थीं। उसने पैंटी के भीतर हाथ घुसेड़ा और मेरे चिपचिपाते रस भरे कटाव में उंगली घुमाने लगा। उंगली घुमाते घुमाते उसने कटाव के शिखर पर सिहरती नन्ही कली को जोर से दबाकर मसल दिया।
मैं ओह ओह कर हो उठी।
मेरी वह कली उसकी उंगली के नीचे मछली सी बिछल रही थी। मैं अपने नितंब उचकाने लगी। उसने एक उंगली मेरी छेद के भीतर घुसा दी और एक से वह मेरी कली को दबाने लगा। छेद के अंदर की दीवारों को वह जोर जोर से सहला रहा था।
अब उसकी हरकतों में कोमलता समाप्त होती जा रही थी। बदन पर चूँटियाँ रेंग रही थीं। लगता था तरंगों पर तरंगें उठा उठाकर मुझे उछाल रही हैं।
योनि में उंगलियाँ चुभलाते हुए उसने दूसरे हाथ से मेरे उठते गिरते नितंबों के नीचे से सलवार खिसका दी। उसके बाद पैंटी को भी बारी बारी से कमर से दोनों तरफ से खिसकाते हुए नितम्बों से नीचे सरका दिया।
उंगलियाँ मेरे अंदर लगातार चलाते हुए उसने मेरी पैंटी भी खींचकर टांगों से बाहर कर दी। कहाँ तो मैंने उसे अपने स्तन उघाड़ने नहीं दिया था कहाँ अब मैं खुद अपनी योनि खोलने में सहयोग दे रही थी। मैं चादर के भीतर मादरजाद नंगी थी।
अब मुझे लग रहा था वह आएगा। मैं तैयार थी। मगर वह देरी करके मुझे तड़पा रहा था। वह मुझे चूमते हुए नीचे खिसक रहा था। नाभि से नीचे।
कूल्हों की हडिडयों के बीच, नर्म मांस पर। वहाँ उसने हौले से दांत गड़ा दिए। मैं पागल हो रही थी। वह और नीचे खिसका। नीचे के बालों की शुरूआत पर।
अरे उधर कहाँ। मैंने रोकना चाहा। मगर विरोध की सभावना कहां थी। सहना मुश्किल हो रहा था। वह उन बालों को चाट रहा था और बीच बीच में उन्हें मुँह में लेकर दांतों से खींच रहा था। फिर उसने पूरे उभार के मांस को ही मुँह फाड़कर भीतर लेते हुए उसमें दांत गड़ा दिये।
मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई। दर्द और पीड़ा की लहर एक साथ। ओह ओह। अरे यह क्या! मुझे कटाव के शिखर पर उसकी सरकती जीभ का एहसास हुआ।
मैंने जांघों को सटाकर उसे रोकना चाहा। मगर वह मेरे विरोध की कमजोरी को जानता था। उसने कुछ जोर नहीं लगाया, सिर्फ ठहर गया।
मैंने खुद ही अपनी टांगें फैला दी। वह मेरी फाँक को चाटने लगा। कभी वह उसे चूसता कभी चाटता। कभी जीभ की नोक नुकीली और कडी क़रके कटाव के अंदर घुसाकर ऊपर से नीचे तक जुताई करता।
कभी जीभ सांप की तरह सरकती कभी दबा दबा कर अपनी खुरदरी सतह से रगड़ती।
उसके तरकस में तीरों की कमी नहीं थी। पता नहीं किस किस तरह से वह मुझे पागल और उत्तेजित किए जा रहा था। अभी वो जीभ चौड़ी करके पूरे कटाव को ढकते हुए उसमें उतरकर चाट रहा था।
मेरे दोनों तरफ के होंठ फैलकर संतरे की फांक की तरह फूल गए थे। वह उन्हें बारी बारी से मुँह में खींचकर चूस रहा था, उन पर अपने दांत गड़ा दिए। दांत का गड़ाव से दर्द और दर्द पर उमड़ती आनंद की लहर में मैं पछाड़ खाने लगी।
मेरा रस बह बह कर निकल रहा था और वह उसके चूसते मुँह में उतर रहा था। उसने मेरे कटाव के ऊपर थरथराती नन्हीं कली को हांठों में कस लिया और चूसने लगा।
उसे कभी वह दांतों से कभी होंठों से कुचलता। उसने उस कली को भीतर खींचकर चूसा और उसे दाँतो के बीच होठों से मसलने लगा।
आह आह आ: जा जा जा। मैं बांध की तरह फूट पड़ी। अब तक किसी जोर से रोक रखा झरना फूट पड़ा। सदियों से जमी हुई देह मानो धरती की तरह भूकंप में हिचकोले खाने लगी। उसने उंगलियों से खींच कर छेद को दोनों तरफ से फैला दिया और उसमें भीतर मुँह घोप कर चूस चूसकर मेरा रस खींचने लगा।
कुंआरी देह की पहली रस-धार। सूखी धरती पर पहली बारिश सी। वह योनि के भीतर जीभ घुसाकर घुमा घुमाकर चाट रहा था। मानों कहीं उस अनमोल रस की एक बूंद भी नहीं छोड़ना चाहता हो।
मैं अचेत सी हो गई।
कुछ देर बाद जब मुझे होश आया तो मैंने अपने पर उसका वजन महसूस किया। मैंने हाथों से उसे टटोला। वह मुझ पर चढ़ा हुआ था। मेरी हाथों की हरकत से उसे मेरे होश में आने का पता चला। उसने मेरे मुँह पर अपने मुँह रख दिया। एक तीखी गंध मेरे नथुनों में भर गई। उसके होठों पर मेरा लिसलिसा रस लगा था।
मैंने खुद को चखा। एक अजीब सा स्वाद था- नमकीन, तीखा, बेहद चिकना। मैं उसकी गंध में डूब गई। उसने सराबोर होकर मुझे पिया था। कोई हिचक नहीं दिखाई थी कि उस जगह कैसे मुँह ले जाए।
मेरा एक एक पोर उसके लिए प्यार के लायक था। एक कृतज्ञता से मैं भर उठी। मैंने खुद उसे विभोर होकर चूमा और उसके होठों को गालों को अगल बगल सभी को चाटकर साफ कर दिया। अंधेरे में मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया था।
मुझे कोई दुविधा नहीं थी। वह मुझे स्वीटी समझकर कर रहा था। मैं उसका आनंद बिना किसी डर के ले रही थी। मैंने उसे बाँहों में कस लिया।
इस कहानी का अगला व अन्तिम भाग आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर शीघ्र ही पढ़ पाएंगे!
स्वीटी-2 Hindi Porn Stories
दोस्तो, अन्तर्वासना पर मैंने बहुत Hindi Porn Stories कहानियाँ पढ़ीं। बेहद मज़ा आया। सेक्स सिर्फ चुदाई का नाम नहीं है। चुदाई को मसालेदार बनाने के लिए कुछ नया करना पड़ता है। सचमुच मुझे सेक्स में प्रयोग करने में बहुत मज़ा आता है। मैं और मेरे उन्होंने सेक्स में बहुत सारे खेल खेले हैं। उसी प्रकार के खेल के एक हिस्से को मैं आपके सामने पेश कर रही हूँ। अच्छी लगे तो अपने साथी के साथ अपने यौन-जीवन को रंगीन बनाइए।
मेरे मन में मर्द की गुलामी, हर पल चुदाई की बातें चलती रहतीं थीं।
बात उन दिनों की है जब ऑफिस में काम करते हुए मुझे लगा कि मेरा साथी सुनील मुझ में कुछ अधिक ही रुचि दिखा रहा है। धीरे-धीरे मैं उसकी तरफ खिंचती चली गई। हम घंटों साथ रहने लगे।
एक दिन हमें डेट पर जाना था। मैं दो घंटे देर से पहुँची। सुनील बहुत नाराज़ था। मैंने उसे मनाने की कोशिश की। उसका लहज़ा उस वक्त काफी सख्त था। मैंने कान पकड़ कर माफी माँगी। इस पर उसने कहा “तुम जैसी लड़कियों को तो सज़ा मिलनी चाहिए, तभी तुम सुधर सकती हो।”
“सुनील मैं तुम्हारी हूँ, तुम जो सज़ा देना चाहो, दे सकते हो।” मैंने उसे मनाने के लिए कहा।
सुनील ने मेरी छातियों को कसकर मसला तथा मेरी गाँड पर थपाथप ५ चाँटे जड़ दिए। मुझे दर्द तो हुआ, लेकिन मर्द की सख्ती का एहसास पहली बार हुआ। मैं सुनील से बुरी तरह से लिपट गई। सुनील मुझे अपने कमरे पर ले गया।
कमरे में पहुँचते ही सुनील शेर की तरह गुर्राने लगा,”साली, कुतिया… मैं तेरा मालिक हूँ, तू मेरी ग़ुलाम है। मैं तुझे जैसे चाहूँ, वैसे रखूँगा… समझी।”
मैं बुरी तरह से डर गई, लेकिन मुझे कुछ-कुछ हो रहा था। सुनील की बातों में मैं मस्ती ले रही थी। मैं कुतिया की तरह चारों हाथ-पैरों पर झुकी तथा सुनील के पैरों को चूमकर बोली,”मालिक, मैं पूरी तरह से तुम्हारी हूँ, जो चाहो सो करो।”
सुनील ने मुझे पूरी तरह से नंगा कर दिया तथा ख़ुद भी नंगा होकर खड़ा हो गया। उसका १२ इंची लंड मुझे पागल बना रहा था। कुछ ही देर में सुनील ने मुझे कुतिया की तरह गले में पट्टा पहना दिया और एक ज़ंजीर से बाँध दिया। मैं पागल कुतिया की तरह उसका लंड चूस रही थी। मोटा लंड मेरे मुँह में समा नहीं पा रहा था।
अब सुनील ने हाथ में एक मोटा डंडा ले लिया। सुनील का लंड मेरे मुँह में था। सुनील ने डंडे की बाछौर मेरे चूतड़ों पर कर दी। मैं दर्द के मारे कराह उठी, लेकिन मुझे बड़ा मज़ा आया। मैं लंड चूसती रही। सुनील मेरे मुँह को चोदता रहा। उसके बाद उसने अपने संदूक में से रस्सी निकाली और मेरी दोनों छातियों को कस कर बाँध दिया। मैं दर्द से कराह उठी। यह तो अभी शुरुआत थी। सुनील ने हथकड़ी निकाल कर मेरे हाथों को मेरी गाँड के पीछे बाँध दिया।
अब मैं फिर से कुतिया बनी थी। मेरे हाथ बँधे हुए, कमर पर थे। सुनील ने अपना लंड मेरी गाँड की छेद पर रखा. उसके पैरों की ऊँगलियाँ मेरे मुँह के पास थी। बहनचोद, मादरचोद, कुतिया की बच्ची… मुझ पर गालियों की बौछार हो रही थी। सुनील ने मेरी गाँड पर थूक दिया और लंड अन्दर डालने लगा।
मैं चीख रही थी, मेरे हाथ पीठ पर बँधे थे। लंड तेज़ी से मेरी गाँड में चला गया। मैं सुनील के पैरों की ऊँगलियों को चूस रही थी। १५ मिनट तक मेरी गाँड फाड़ने के बाद सुनील ने मेरी चूत में लंड पेलना शुरु कर दिया। मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था।
“मेरे मालिक… मेरी गाँड फाड़ दो… चूत की धज्जियाँ उड़ा दो।” मैं चिल्ला रही थी।
सुनील में गज़ब का दम था। मैं पस्त हो चुकी थी। सुनील ने लंड को चूत से निकाल कर मेरे मुँह की तरफ कर दिया। एक बार फिर से सुनील मेरा मुँह चोदने लगा था। मैं ज़ोर-ज़ोर से लंड का पानी गिराने की कोशिश कर रही थी।
सुनील को झटका लगा। मेरे मुँह में माल गिरने लगा। झड़ने के बाद भी सुनील ने मुझे आज़ाद नहीं किया।
“प्लीज़ सुनील, मुझे घर जाना है। देर हो रही है, जाने दो” मैंने अनुमति मांगी।
सुनील ने मेरे गाल पर ज़ोरदार चाँटा मारा और उठाकर खड़ा कर दिया, हथकड़ी खोली, लेकिन मुझे फिर से कुतिया बना दिया। वो मुझे लेकर इस तरह टहल रहा था जैसे लोग अपने कुत्ते को सैर पर ले जाते हैं।
मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था कुतिया बनने में। १५ मिनट घुमाने के बाद सुनील मुझे अपने तहख़ाने में ले गया। वहाँ पर कुत्ते का एक पिंजरा रखा हुआ था। सुनील ने मुझे पिंजरे में जाने का इशारा किया। मैंने पिंजरे में जाने में आनाकानी की तो सुनील ने मेरे चूतड़ों पर ज़ोर की लात मारी।
मैं अपने चारों हाथों-पैरों से चलती हुए पिंजरे में पहुँच गई। सुनील ने पिंजरे में पानी का कटोरा रखा, फिर दरवाज़े में ताला जड़ दिया। अब मैं पूरी तरह से क़ैद थी। सुनील कुटिल मुस्कान बिखेरता हुआ बोला,”अब देखता हूँ साली, तू घर कैसे जाएगी।”
मैंने कहा,”मालिक, आप जब कहोगे, तभी घर जाऊँगी।”
सुनील मुझे उसी हालत में अकेला छोड़कर वहाँ से चला गया। थोड़ी ही देर में मेरे हाथ-पैरों में दर्द होने लगा। आधा घंटा होते-होते दर्द असहनीय होने लगा।
इतने में दरवाज़ा खुला। सुनील अन्दर आया,”कुतिया… कैसा लग रहा है। तुम्हें इसमें रहने की आदत डालनी होगी। जब तुम मेरी पूरी ग़ुलाम बन जाओगी तो पूरी रात इसी पिजरे में रखूँगा।”
पिंजरे का दरवाज़ा खुलने के बाद मैं जब बाहर निकली तो मुझे खड़ा होने में भारी मशक्कत करनी पड़ी। मैं पूरी नंगी हो सुनील के पीछे चलने लगी। बाथरुम में ले जाकर सुनील ने मुझे फिर से चोदा। इसके बाद मैं बाथरूम गई।
अब सुनील ने मुझे जाने की इजाज़त दे दी। कमरे से बाहर आने के बाद वो बदल गया। अब वो अपनी सख़्ती के लिए माफ़ी माँग रहा था। इतना दर्द होने के बाद भी मुझे वो सख़्त मर्द अच्छा लगा।
“सुनील, मैं तो मुझे माफ़ कर दूँगी, लेकिन तुम शादी के बाद भी मुझे इसी तरह से कुतिया बनाओगे?”
“श्योर” – सुनील ने कहा।
इसके बाद क्या हुआ, अगली कहानी में बताऊँगी। Hindi Porn Stories
बात कुछ साल पुरानी है पर है बिल्कुल Hindi Sex Stories सच्ची। उस समय मैं सेक्स के बारे में बिल्कुल अंजान था। मैंने कभी मुठ भी नहीं मारी थी। गर्मियों की छुट्टियों में मुझे अपनी दीदी की ससुराल में जाने का मौका मिला। दो माह की छुट्टियाँ बिताने मैं और मेरा छोटा भाई दीदी की ससुराल में पहुंचे। उनका घर काफी बड़ा था लगभग १०-१२ कमरे का। कुछ कमरे तो उपयोग में ही नहीं आते थे। उनके घर में दीदी और जीजाजी के साथ ही उनके चाचा-चाची तथा बड़े भाई और उनका परिवार रहता था। जीजाजी के बड़े भाई को हम बड़े जीजाजी कहकर बुलाते थे, वह फॉरेस्ट रेंजर थे तथा एक सप्ताह में दो तीन दिनों तक बाहर जंगल में रहते थे। उनके दो बच्चे थे उनका बड़ा बेटा मुझसे छोटा था।
बड़े जीजाजी बड़े कामुक प्रवृति के इन्सान थे हालाँकि मैं उस समय इस शब्द के बारे में नहीं जानता था। जब भी वे मुझे अकेला पाते, मेरे गाल पर चिकोटी काट देते। कुछ दिनों बाद वे मेरे गालों और ओंठों को चूमने लगे।
एक दिन जब मैं छत पर अकेला खड़ा उड़ती हुई पतंगों को देख रहा था तो वो भी छत पर आ पहुंचे। उन्होंने मुझे पकड़ कर मेरे कूल्हों पर हाथ फेरना शुरू कर दिया। मुझे काफी अटपटा लगा। जैसे तैसे मैं हाथ छुड़ा कर भाग आया। अब मुझे उनके सामने जाने में भी डर लगने लगा, पर वे मौका ताड़ कर मुझसे छेड़-छाड़ करते रहते। अभी तक वह मेरे कूल्हे कपडों के ऊपर से सहलाते थे एक दिन उन्होंने मेरी शोर्ट्स के अन्दर हाथ डालकर कूल्हे सहलाये। मुझे अच्छा तो लगा पर डर भी लगा। मैं उनके इरादों को कुछ कुछ समझने लगा। पर वो क्या करने वाले हैं यह मैं अब भी पूरी तरह नहीं समझ पाया था। मैं उनसे बच कर रहने लगा और उनके सामने ना आने का प्रयास करता।
एक दिन दोपहर को वह अपने कमरे में लेटे कोई किताब पढ़ रहे थे कि दीदी ने मुझे उनको पानी दे आने को कहा। मैं डरते हुए उनके कमरे में गया। उन्होंने पानी लेकर मुझे अपने पास जबरन बिठा लिया तथा मेरी जांघों पर हाथ फिराने लगे। फिर झटके से मुझे बगल में लिटा कर अपनी टांगों के बीच में दबोच लिया। थोड़ी देर तक शांत रहने के बाद वह मेरी शोर्ट्स के अन्दर हाथ डाल कर मेरी जांघ को दबाते हुए मेरे कूल्हे भी दबाने लगे। उन्होंने अपनी पैन्ट की जिप खोल कर अपना लंड मेरी शोर्ट्स के अन्दर जांघ पर रख दिया। मैं सिहर उठा। मेरी सांसे तेज तेज चलने लगी। उन्होंने तभी एक झटका देकर मुझे थोड़ा तिरछा कर दिया। अब मेरी पीठ उनकी और थी। उन्होंने मेरी शोर्ट्स को थोड़ा ऊपर कर मेरे कूल्हे जोर जोर से मसलने शुरू कर दिए तथा अपना लंड मेरे कूल्हों की फ़ांकों में टिका दिया। मैं कसमसा रहा था पर उनकी पकड़ बहुत मजबूत थी। तभी बाहर कुछ शोर सा हुआ, वह थोड़ा अचकचाए और मैं उनकी पकड़ से भाग निकला। उनको बहुत गुस्सा आया तथा वह अगला मौका तलाशने लगे।
उन्हें अगला मौका शीघ्र ही मिल गया। पड़ोस में एक शादी थी जिसकी बारात इलाहाबाद जानी थी। वह मुझे भी जिद करके अपने साथ बारात में ले गए। सबको उन्होंने मुझे इलाहाबाद घुमाने के बहाने राजी कर लिया था। मैं किसी से कुछ कह भी नहीं सकता था। मुझे उनके साथ जाना पड़ा। बारात एक होटल में रुकी थी। उन्होंने सबसे अलग एक कमरा ले लिया। बारात लगने के तुंरत बाद ही वह मुझे लेकर होटल के कमरे में आ गए।
उस समय रात के १२ बजे थे। मुझे लेटते ही नींद आ गई। थोड़ी देर बाद मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि जीजाजी ने मेरी पैंट और चड्डी उतार दी है तथा वह मेरे लंड से खेल रहे हैं। मै अनजान बना लेटा रहा। उन्होंने मुझे तिरछा कर दिया तथा मेरे कूल्हे दबाने लगे। फिर उन्होंने अपनी एक उंगली मेरी गांड में डाल दी। मुझे दर्द हुआ पर मैं चुपचाप लेटा रहा। अब जीजाजी ने अपना लंड निकल कर मेरे चूतड़ों से रगड़ना शुरू कर दिया। थोड़ी देर तक वह ऐसा ही करते रहे। फिर उन्होंने अपने लंड को मेरी गांड के छेद में घुसाने की कोशिश की, पर वह नाकाम रहे। मेरी गांड का छेद काफी टाइट था। दोबारा कोशिश में भी वह अपना लंड छेद में नहीं घुसा सके।
अब उन्होंने मुझे पकड़ कर उल्टा कर दिया तथा वह मेरी टांगों को फैला कर बीच में बैठ गए। उन्होंने मेरे चूतडों की दोनों फांको को पकड़ कर फैलाया और अपना लंड एक जोर का झटका देते हुए मेरी गांड में पेल दिया। मैं दर्द से बिलबिला गया पर डर के कारण मेरी चीख भी नहीं निकली। अब उनका पूरा लंड मेरी गांड के अन्दर था और वह धीरे धीरे लंड को अन्दर बाहर कर रहे थे। शुरू में तो मुझे काफी दर्द हुआ पर बाद में मजा आने लगा। १५ -२० मिनट के बाद उन्होंने पिचकारी मेरी गांड में ही छोड़ दी और वह मेरे ऊपर से उठ कर बगल में लेट गए। मेरी गांड में लंड पेलने के कारण पेट में काफी गैस बनने लगी थी तथा मुझे लगा कि खून भी मेरी गांड से निकल रहा है, यह अहसास भी मुझे हुआ। पर में बिल्कुल अंजान बना लेटा रहा।
थोड़ी देर में जीजाजी उठे और उन्होंने रुमाल में पानी लगाकर मेरी गांड पोंछी तथा मेरे चूतड सहलाये। मुझे राहत महसूस हुई। जीजाजी का लंड शायद फिर से खड़ा हो गया था। वह फिर से मेरी टांगों के बीच में बैठ गए लेकिन इस बार उन्होंने मुझे कमर में हाथ डाल कर घोड़े जैसी की अवस्था में कर लिया।
अब मेरी गांड का छेद ज्यादा खुल गया था। उन्होंने मेरे दोनों चूतड पकड़ कर फैला दिए तथा अपना लंड एक बार फिर से मेरी गांड में पेल दिया। इस बार मैंने भी अपनी गांड मराई का मजा लिया तथा कूल्हे हिला हिला कर जीजाजी का पूरा लंड गांड के भीतर जाने दिया। जीजाजी ने पूरे जोश से मेरी गांड मारी। उस रात सुबह होने से पहले जीजाजी ने तीसरी बार मेरी गांड मारी। इस बार उन्होंने मुझे पूरी तरह से नंगा कर मेरी गांड पिलाई की।
दोस्तों यह कहानी बिल्कुल सच्ची है। जीजाजी से गांड मराने के बाद कई दिनों तक मैं उनके सामने आने में शरमाता रहा पर वह अब भी मौका मिलते ही मुझसे छेड़-छाड़ अवश्य करते रहते थे। लेकिन उन्हें दोबारा मेरी गांड मरने का मौका घर में नहीं मिल सका। पर वह चूकने वालो में से नहीं थे।
उन्हें अगला मौका कब और कैसे मिला, पढिये अगली कहानी Hindi Sex Stories
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